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पिछले 10 सालों में सर्पदंश से 4सौ लोगों की मौत

 बारिश के साथ ही जमीन पर रेंगती मौतों ने लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है

पिछले 10 सालों में सर्पदंश से 4सौ लोगों की मौत
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जांजगीर। बारिश के साथ ही जमीन पर रेंगती मौतों ने लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। हर साल सर्पदंश से दर्जनों लोगों की जान चली जाती है। ज्यादातर मामलों में लोग सर्पदंश के बाद अस्पताल के बजाय मरीज को नीम हकीम के पास ले जाते हैं। समय पर इलाज नहीं मिलने और झाड़ फूंक के फेर में पड़ने के कारण लोग काल के गाल में समा जाते हैं। पिछले दस सालों की बात करें तो चार सौ से ज्यादा लोग विषधरों के शिकार बनें हैं।

इस वर्ष के बीते सात माह में दो दर्जन से ज्यादा लोग चपेट में आ चुके हैं। बारिश के मौसम में सांप, बिच्छू सहित अन्य जहरीले जन्तुओं का आतंक बढ़ जाता है। सर्पदंश से जिले में जनवरी से जून तक पांच लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं जिला अस्पताल में आए दिन सर्पदंश पीड़ित अपना ईलाज करा रहे हैं।

अस्पताल में एक माह के भीतर के भीतर ही सर्पदंश के दर्जन से अधिक मरीजों ने अपना ईलाज कराया है। जो लोग सांप काटने के बाद तुरंत अस्पताल पहुंचते हैं उनकी जान बच जाती है। पुलिस आकड़ों के अनुसार 10 सालों में सांप के काटने से 417 लोगों की मौत हुई है। जिले के ग्रामीण इलाकों में आज भी लोग जमीन पर चटाई बिछकार सोते हैं। इससे लोगों को सर्प, बिच्छू का खतरा बना रहता है।

बारिश के दिनो में लोगों को सोने के लिए खाट, पलंग का उपयोग करना चाहिए। इससे कुछ हद तक सांपों के शिकार से बचा जा सकता है। जिले में अधिकांश आबादी गांवों में रहती हैं। ग्रामीण आज भी अंधविश्वास के चलते झाड़ फूंक पर विश्वास करते आ रहे हैं। इसके चलते सर्पदंश से पीड़ित मरीजों को अस्पताल लाने के बजाय गांव में रहने वाले बैगा, तांत्रिकों से झाड़ फूंक कराते हैं।

सर्पदंश से पीड़ित मरीज के शरीर में जहर तेजी से फैलने लगता है लेकिन उचित ईलाज के अभाव में अधिकांश मौत इन्हीं कारणों से हो जाती है। हालांकि जानकारों के मुताबिक 90 प्रतिशत सांप जहरीले नहीं होते। ऐसे सांपों के काटने से झाड़फूंक करने वाले बैगा द्वारा लोग ठीक हो जाते हैं। इससे ग्रामीणों को विश्वास हो जाता है कि सांप के काटने पर झाड़ फूंक कराना ही काफी है। लेकिन जहरीले सांप के काटने के बाद भी लोग झाड़ फूंक के चक्कर में फंस जाते हैं, ईलाज सफल नहीं होने की हालात में गंभीर अवस्था में डाक्टरों के पास लाया जाता है। तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और लोगों को जान से हाथ धोना पड़ता है।

न्यूरोटाक्सिन जहर से हो रही मौत

डॉक्टरों की कहना है कि मानव के शरीर में सांप का जहर दो प्रकार से फैलता है। जिसे हीमोटाक्सिक व न्यूरोटाक्सिक जहर कहा जाता है। हीमोटाक्सिक जहर मानव के शरीर में खून का थक्का जमा देता है। इससे मांसपेशियां फटने लगती है और हृदय की गति रूक जाती है। न्यूरोटाक्सिक जहर स्नायु तंत्र पर असर डालता है।

इससे मांसपेशियां काम करना बंद कर देती है। पीड़ित को सांस लेने में परेशानी होने के साथ उसकी मौत हो जाती है। इलाके में अधिकतर मौत सांप के न्यूरोटाक्सिक जहर से होती है।


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