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वन अधिकारी संजय रौतिया पर संगीन आरोप

बारनवापारा अभ्यारण्य स्थित ग्राम रामपुर में एक आदिवासी परिवार के साथ विस्थापन को लेकर एक वन अधिकारी ने काफी मारपीट की

वन अधिकारी संजय रौतिया पर संगीन आरोप
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रायपुर। बारनवापारा अभ्यारण्य स्थित ग्राम रामपुर में एक आदिवासी परिवार के साथ विस्थापन को लेकर एक वन अधिकारी ने काफी मारपीट की है। उक्त मारपीट की घटना के बाद से आदिवासी परिवार दहशत और दर्द में है। साथ ही परिवार की शिकायत पुलिस थाने में नहीं लिखी जा रही है। ऐसे में जन संघर्ष समिति बारनवापारा और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन सहित दलित आदिवासी मंच ने मारपीट के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और वन अधिकारी को निलंबित किये जाने की मांग शासन से की है।

उल्लेखनीय है कि 15 जनवरी को बारनवापारा अभ्यारण्य के ग्राम रामपुर में वन विभाग के रेंजर संजय रौतिया ने वन अमले के साथ मिलकर आदिवासी राजकुमार कौंध के साथ मारपीट की। यहां तक कि महिला और चोटे बच्चों के साथ भी मारपीट की गई। मारपीट की शिकायत लिखने पीड़ित परिवार सहित आसपास के ग्रामीण जब थाने पहुंचे तो रेंजर के खिलाफ मामला पंजीबद्ध करने की बजाय पीड़ित परिवार के खिलाफ ही वन विभाग के इशारे पर अपराध कायम किया गया। पुलिस और वन विभाग दोनों ही रेंजर पर कार्रवाई करने की बजाये उसे बचाने का प्रयास रहे हैं।

इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं की पीड़ित राजकुमार को जिसे काफी दर्द हो रहा है उसे इलाज के लिए रायपुर लाते वक्त पुलिस विभाग के द्वारा 4 गाड़ियों में आकर झलप के पास गाड़ी को रोककर जबरन अपने साथ ले गए। उक्ताशय की जानकारी आज एक पत्रकार वार्ता में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के सदस्य आलोक शुक्ला, जन संघर्ष समिति बारनवापारा के अमरध्वज और दलित आदिवासी मंच के राजिम कैतवास ने संयुक्त रूप से दी। उन्होंने बताया कि यह पहला मामला नहीं है बल्कि वन विभाग के द्वारा अभ्यारण्य में बसे ग्रामीणों को अलग-अलग तरीकों से लगातार प्रताड़ित किया जाता रहा है।

विभाग द्वारा लघु वनोपज, सूखी जलाऊ लकड़ी आदि लाने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है। ग्रामीणों के आवागमन में परेशानी पैदा की जाती है, निर्माण कार्यों में स्थानीय ग्रामीणों को जानबूझकर काम नहीं दिया जाता आदि। एक प्रकार से दहशत बनाकर हमसे हमारे जंगल जमीन को जबरन छीनना चाहता है। आज बी वन विभाग अंग्रेजों के बनाये कानूनों के आधार पर चलते हुए आदिवासियों का शोषण कर रहा है। यह दुखद है कि इस देश की संसद ने वनाधिकार मान्यता कानून 2006 बनाया जिसका उद्देश्य है आदिवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को खत्म कर जंगल, जमीन पर उनके वन अधिकारों को मान्यता देकर आजीविका को सुरक्षित करना। वन संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन ग्रामसभाओं को सौंपना। इतने महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कानून का छत्तीसगढ़ में पालन नहीं हो रहा।

शासन एक तरफ बड़े-बड़े रिसोर्ट और होटल बनाकर पर्यटकों करो बुला रही है और पीढ़ियों से बसे आदिवासियों को बेदखल कर रही है। 3 जनवरी को ही राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने स्पष्ट आदश जारी किया है कि किसी भी उद्यान या टाइगर रिजर्व से सहमती के बिना पूर्व पुनर्वास के विस्थापित नहीं किया जा सकता है। इसी प्रकार वनाधिकार मान्यता कानून 2006 में स्पष्ट प्रावधान है कि किसी भी संरक्षित क्षेत्र से विस्थापन के पूर्व वैज्ञानिक अध्ययन पश्चात यह निर्धारण आवश्यक है कि वह क्षेत्र संकट पूर्ण वन्यजीव आवास क्षेत्र है। इसके बाद ही सहमती से गांव को विकसित किया जा सकता है। बारनवापारा अभ्यारण्य के अंदर अभी तक इस प्रावधानानुसार संकट पूर्ण वन्य जदीव आवास घोषित ही नहीं हुआ है फिर विस्थापन किस आधार पर किया जा रहा है?


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