भारत से दूर हुए विदेशी निवेशक
देश में महामारी के आने के बाद से हालात बदतर हो गए हैं. सुधार की कोशिशें तो जारी हैं लेकिन सुधार होता नज़र नहीं आ रहा है. देश की अर्थव्यवस्था का ग्राफ नीचे की ओर गिर रहा है और बेरोजगारी की दर तेज़ी से बढ़ रही है. सरकार अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए विदेशी निवेश और निजी निवेश की कोशिश कर रही है. लेकिन विदेशी निवेशकों ने भी मुंह मोड़ लिया है. साफ है कि आने वाला समय और मुश्किल भरा हो सकता है.

मोदी सरकार की नीतियों के चलते भारतीय बाजार की ओर विदेशी निवेशक आकर्षित नहीं हो रहे हैं. विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों यानी एफपीआई में लगातार गिरावट आती जा रही है. सरकार दावा कर रही है कि भारत एशिया में सबसे तेजी से रिकवर करने वाली अर्थव्यवस्था है. लेकिन हर महीने अर्थव्यवस्था के संशोधन के जो आंकड़े पेश होते हैं उसमें अर्थव्यवस्था का ग्राफ गिरता ही दिखाया जा रहा है. FPI का रुख भी इस बार भारतीय शेयर बाजार के लिए बेहद परेशानी वाली बना हुआ है. एफपीआई ने अगस्त में भारतीय शेयर बाजारों में केवल 986 करोड़ रुपये का निवेश किया है. निवेशकों को भारतीय बाजार पर भरोसा नहीं हो रहा है. इसी को लेकर मार्निंगस्टार इंडिया के एसोसिएट डायरेक्टर हिमांशु श्रीवास्तव का कहना है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने जब से मौद्रिक नीति रुख को उम्मीद से पहले सख्त करने का संकेत दिया है, भारतीय शेयर बाजारों से विदेशी निवेशकों ने मुंह मोड़ लिया है. दूसरी ओर भारतीय अर्थव्यवस्था भी उम्मीद के अनुरूप रिकवर नहीं कर पा रही है. जिसका असर देखा जा रहा है. कोटक सिक्योरिटीज के एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट श्रीकांत चौहान ने कहा कि भारत को छोड़कर अन्य सभी उभरते बाजारों के प्रति एफपीआई का रुख उत्साहजनक रहा. इस दौरान ताइवान के बाजार को 18.4 करोड़ डॉलर, दक्षिण कोरिया को 16.6 करोड़ डॉलर, इंडोनेशिया को 12.5 करोड़ डॉलर और फिलीपींस को 2.3 करोड़ डॉलर का निवेश मिला. यानी साफ है विदेशी निवेशकों की नजर में भारत की जगह दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था तेजी से सुधर रही है.


