पहली बार मोदी को हार का डर दिख रहा है!
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने जीवन में कई चुनाव लड़े और जीते। मगर यह पहला चुनाव ऐसा है जब वे संशय में पड़े हुए हैं

- शकील अख्तर
कांग्रेस के बैंक खाते सीज हैं। और लेटेस्ट उसको 3567 करोड़ का इनकम टैक्स नोटिस दिया गया है। याद रहे चुनाव की घोषणा के बाद। बीच चुनाव में। पहले फेज के नामांकन हो जाने के बाद। मतलब बीच खेल में नियम बदले जा रहे हैं। बीच खेल में नियम कब बदले जाते हैं जब हार का खतरा होता है। याद है जब बचपन में आप जीतने वाले होते थे तो कहा जाता था नहीं अब लेफ्टी बनकर बेटिंग करो ।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने जीवन में कई चुनाव लड़े और जीते। मगर यह पहला चुनाव ऐसा है जब वे संशय में पड़े हुए हैं। इसके बहुत से कारण हैं जिन्हें हम नीचे बताएंगे। मगर पहले यह कि मोदी का डर दिख कहां रहा है?
यह दिख रहा है विपक्ष को खासतौर पर सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस को चुनाव लड़ने से ही रोकने की कोशिशों से। चुनाव में हार का डर है तो तरीका यह निकाला कि मुख्य विपक्षी दल चुनाव में ही न हो और अगर हो तो विरथ! उसके पास पैसा न हो कोई साधन न हो। ताकि वह बेशुमार पैसा खर्च करने वाले सत्ता पक्ष के सामने खड़ा ही न हो पाए।
कांग्रेस के बैंक खाते सीज हैं। और लेटेस्ट उसको 3567 करोड़ का इनकम टैक्स नोटिस दिया गया है। याद रहे चुनाव की घोषणा के बाद। बीच चुनाव में। पहले फेज के नामांकन हो जाने के बाद। मतलब बीच खेल में नियम बदले जा रहे हैं। बीच खेल में नियम कब बदले जाते हैं जब हार का खतरा होता है। याद है जब बचपन में आप जीतने वाले होते थे तो कहा जाता था नहीं अब लेफ्टी बनकर बेटिंग करो या बालिंग आपकी होती थी तो कहा जाता था कि उल्टे हाथ से बॉल करो! इसी को कहते हैं बीच खेल में नियम बदलना। लेकिन होता क्या था कि आप उसके बावजूद जीत जाते थे। तो जब जीत आने वाली होती है तो नियम बदलने से कुछ नहीं होता।
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट जो बाकी सभी विभागों ईडी, सीबीआई या बाकी सभी संस्थाओं ब्यूरोक्रेसी, न्यायपालिका, मीडिया की तरह सरकार के कहने से काम कर रहे हैं ने केवल कांग्रेस को ही हजारों करोड़ का नोटिस नहीं दिया है बल्कि सीपीआई को भी दिया है। इनकम टैक्स से राजनीतिक दल मुक्त होते हैं क्योंकि उनकी इनकम नहीं होती है जो पैसा आता है वह चंदे से आता है। पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा दिया जाता है। राजनीतिक दलों को इनकम टैक्स से छूट होती है। मगर ऐसे समय में यह कार्रवाई हो रही है कि कांग्रेस या दूसरे राजनीतिक दलों के पास इन पर रोक लगवाने का समय ही नहीं है। अदालतें जिस तरह काम करती हंै उस हिसाब से तो चुनाव के नतीजे भी आ जाएंगे और केस पर दो सुनवाई भी पूरी नहीं होंगी। साथ ही चुनाव के समय अपनी ताकत चुनाव में लगाने के बदले पार्टी कोर्ट कचहरी में उलझी रहेगी।
तो लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं देना डर की साफ निशानी है। इसलिए जैसा हमने कहा कि पहली बार मोदी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं दिख रहे हैं। गुजरात में 2002 में उनके नेतृत्व में पहला विधानसभा चुनाव लड़ा गया था। उसके बाद में 2014 और 2019 लोकसभा का। हर बार उन्हें जीत का विश्वास था और वह जीते भी।
मगर कहते है कि हर चीज का एक अंत होता है और जब वह आता है तो व्यक्ति का अपने ऊपर से विश्वास कम होने लगता है। और वह ऐसे ही मालूम पड़ता है जब वह तैराकी की काम्पिटिशन में प्रतिद्वंदी के हाथ बांधकर उसे पानी में फैंकना है। लेकिन अगर आप खुद बिल्कुल ही नहीं तैर पा रहे हों तो हाथ बंधा हुआ व्यक्ति भी केवल पांव के सहारे आगे निकल सकता है।
मोदी जी की हालत वही हो रही है। उनको अपने किसी दांव पर अब भरोसा नहीं हो रहा है। हिन्दू-मुसलमान चल नहीं रहा है। राम मंदिर का इशु क्लिक किया नहीं। 2029 में यह होगा और 2034 में यह और हजार साल बाद ऐसा, यह जनता को अपने साथ किया जा रहा मजाक लग रहा है।
उसकी हालत आज खराब है। अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन और इंस्टिट्यूट आफ ह्यूमन डेवलपमेंट ने यह आंकड़ा सामने लाकर युवाओं को हिला कर रख दिया कि देश में जितने युवा हैं उनमें 65 प्रतिशत बेरोजगार हैं। और जितना देश में बेरोजगार है। हर उम्र का उसमें 83 प्रतिशत केवल जवान लोग हैं। विस्फोटक रिपोर्ट है। इसमें बताया है कि बेरोजगारी तीन गुना बढ़ गई है।
अब सोचिए कि जो पांच साल बाद, दस साल बाद इतने साल बाद उतने साल बाद की बात कर रहे हैं तो उस समय बेरोजगारी कहां जाएगी? अभी दस साल में तीन गुना बढ़ी है फिर कितने गुना बढ़ जाएगी? और बिना रोजगार के आदमी का क्या होगा? सब पांच किलो मुफ्त अनाज की लाइन में लग जाएंगे।
और एक बात बता दें आपको गरीब विरोधी अर्थशास्त्री कहते हैं कि पांच किलो मुफ्त अनाज देना कोई समस्या नहीं है। इसे अनन्त काल दिया जा सकता है। अमीरों की अमीरी बढ़ती रहे तो सरकार के लिए यह स्कीम कोई घाटे का सौदा नहीं है। और अमीरी का आंकड़ा तो यह है कि देश की 40 प्रतिशत संपत्ति अब केवल एक प्रतिशत अमीरों के पास पहुंच गई है। वर्ल्ड इनइकक्वलटी लैब के अनुसार जितनी असमानता अंग्रेजों के राज में नहीं थी उससे कई गुना ज्यादा 2014 से लेकर 2023 तक बढ़ गई है। और अमीर और अमीर, गरीब और गरीब की यह स्थिति दुनिया में भारत को बहुत नीचे की श्रेणी में ले आई है। भारत से खराब स्थित केवल यमन पेरू जैसे कुछ ही देशों की है।
तो जो हमने ऊपर कहा था कि संशय के कारण बताएंगे। तो ये हैं संशय के कारण। बेरोजगारी, महंगाई, सरकारी चिकित्सा व्यवस्था का खत्म होना, सरकारी शिक्षा का बंद होना, भयानक भ्रष्टाचार और उसमें भी जो मेरे पास आ जाए वह पवित्र और जो विपक्ष में हो उस पर कार्रवाई। एक मुख्यमंत्री जेल में हैं केजरीवाल। दूसरे मुख्यमंत्री झारखंड के हेमंत सोरेन ने गिरफ्तारी से ठीक पहले इस्तीफा दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने सोचा था दोनों डर जाएंगे। मगर दोनों ने जैसी हिम्मत दिखाई उससे मोदी सकते में आ गए। और सबसे बड़ी बात दोनों की पत्नियों ने जिस हिम्मत से बाहर आकर अपनी बात कही। मुकाबला किया उसने तो देश में एक नई हिम्मत पैदा कर दी। सुनीता केजरीवाल और कल्पना सोरेन के गले मिलते फोटो को मीडिया को दिखाना पड़ा। इस एक फोटो ने हजारों शब्दों की कहानी कह दी।
मैसेज चला गया कि कोई नहीं डरने वाला। अब डर का समय बीत गया। रामलीला मैदान की महारैली ने माहौल पलट दिया। विपक्ष का इतना नेता एक साथ खड़ा हुआ कि मोदी का डर अब और सही लगने लगा। इससे पहले जो हमने बताया कि मोदी लगातार जीतते रहे तो उनके खिलाफ विपक्ष इससे पहले कभी इस तरह इक_ा नहीं हुआ था। आज उनके साथ कौन है। उड़ीसा में समझौता करते-करते बीजू जनता दल अचानक छिटक गया। पंजाब में भाजपा के सबसे पुराने सहयोगी अकाली दल ने मना कर दिया।
यही वह कारण हैं जो मोदी को संशय में डाल रहे हैं। इसलिए वे विपक्ष पर छापे, कार्रवाई, जेल, इनकम टैक्स को नोटिस सब हथियार उपयोग करके उसे चुनाव लड़ने से भी महरूम करने की कोशिश कर रहे हैं। वे जितने पैसे से चुनाव लड़ते हैं तो सोच रहे हैं कि बिना पैसे कोई कैसे चुनाव लड़ लेगा?
मगर वे फिर भूल जाते हैं कि जैसे युद्ध में साधन ही सब कुछ नहीं होते साहस सत्य और उद्देश्य प्रमुख होते हैं। इसिलिए विरथ रघुवीरा विजयी होते हैं। और रथी नहीं! क्यों? इसका जवाब विभीषण को राम खुद ही देते हैं-
सुनहु सखा कह कृपानिधाना।
जेहिं जय होई सो स्यंदन आना।।
मतलब जिससे जय होती है वह रथ दूसरा ही है।
सौरज धीरज तेहि रथ चाका।
सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।।
बल बिबेक दम परहित घोरे।
छमा कृपा समता रजु जोरे।।
अब इसका अर्थ बताने की जरूरत नहीं है। सब जानते हैं। शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिए हैं। सत्य शील उसकी मजबूत ध्वजा पताका। बल विवेक दम परोपकार ये चार उसके घोड़े हैं। जो क्षमा, दया, समता की डोर से रथ से जुड़े हुए हैं।
तो अब यह सब किसके साथ हैं। जो विरथ दिख रहा है उसी के। तो लगता है एक बार वह समय फिर आ गया!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


