मगही भाषा के लिए साहित्य अकादेमी का भाषा-सम्मान शेष आनंद मधुकर को
साहित्य अकादेमी का प्रतिष्ठित भाषा सम्मान 2016 मगही भाषा तथा साहित्य में उल्लेखनीय योगदान हेतु आज शेष आनंद मधुकर को प्रदान किया गया

नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी का प्रतिष्ठित भाषा सम्मान 2016 मगही भाषा तथा साहित्य में उल्लेखनीय योगदान हेतु आज शेष आनंद मधुकर को प्रदान किया गया। यह सम्मान साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी द्वारा दिया गया। सम्मान स्वरूप स्मृतिफलक, अंगवस्त्रम एवं एक लाख रुपए की राशि प्रदान की गई। कार्यक्रम का संचालन हिंदी संपादक अनुपम तिवारी ने किया और विभिन्न भारतीय भाषाओं के महत्त्वपूर्ण लेखक यशोदा मुर्मू (संथाली), गंगेश गुंजन, केष्कर ठाकुर (मैथिली), जमां आजुर्दा (कश्मीरी) आदि कार्यक्रम में उपस्थित थे।
बिहार के ग्राम दरियापुर, थाना टिकारी, गया (बिहार) में 8 दिसंबर 1939 में पैदा हुए शेष आनंद मधुकर ने मगही भाषा के विकास हेतु व्यापक कार्य किए हैं। उनकी मगही और हिंदी में पांच से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। सम्मान प्रदान करते हुए साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि सभी भाषाएं पूज्य होती हैं और अपने परिवेश को व्यक्त करने के लिए उनसे बेहतर कोई और भाषा नहीं हो सकती। उन्होंने भोजपुरी, अवधी आदि कई भाषाओं के उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया कि भाषाएं नदियों की तरह होती हैं जो मुख्यधारा की भाषा कि नदी को बल प्रदान करती हैं। अत: हर किसी भाषा का अपना वैशिष्ट्य होता है और उसका मुकाबला कोई भी बड़ी भाषा नहीं कर सकती।
शेष आनंद मधुकर ने मगही भाषा में विभिन्न विधाओं में अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं और कहा कि कोई भी भाषा अभिव्यक्ति के मामले में कमजोर नहीं होती है। कार्यक्रम के प्रारंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने भाषा सम्मान प्रारंभ करने के कारणों की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि भारत जैसे बहुभाषाई देश में हर भाषा का सम्मान करना साहित्य अकादेमी का कर्तव्य है और भाषा सम्मान इसी दृष्टिकोण के साथ शुरू किए गए हैं। वर्ष 1996 में शुरू किया गया यह भाषा सम्मान अभी तक 96 लेखकों को प्रदान किए जा चुके हैं।


