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रेलवे के स्टॉलों में प्लास्टिक थाली में भोजन

रेलवे स्टेशन में खानपान के स्टालों में प्लास्टिक की थालियों में यात्रियों को भोजन परोसा जा रहा है.....

रेलवे के स्टॉलों में प्लास्टिक थाली में भोजन
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10-12 घंटे पैक रहने से भोजन भी होता है दूषित तय मानकों का नहीं हो रहा पालन
बिलासपुर। रेलवे स्टेशन में खानपान के स्टालों में प्लास्टिक की थालियों में यात्रियों को भोजन परोसा जा रहा है। प्लास्टिक की के थाली में दस से 12 घण्टे तक भोजन पैक रहता है जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है। केन्द्रीय पर्यावरण विभाग ने खानपान की वस्तुओं को प्लास्टिक के बर्तनों में बेचने पर पाबंदी लगा दी थी। मगर आदेश को रेल प्रशासन लागू नहीं कर रहा है।

पर्यावरण विभाग ने नियम बनाया है कि पोलीथीन की तीन माइक्रोन की होनी चाहिए परंतु रेल प्रशासन इसकी जांच नहीं करता। विशेषज्ञों का भी कहना है कि प्लास्टिक के बर्तनों या पोलीथीन का उपयोग खानपान की वस्तुओं के लिए हानिकारक है, इनसे शरीर को नुकसान पहुंंचता है और गंभीर बीमारी होने का अंदेशा बना रहता है। प्लास्टिक के बर्तनों व पोलीथीन के निर्माण में केमिकल का उपयोग होता है। केमिकल का अंश खाद्य वस्तुओं को दूषित कर देता है जबकि राज्य सरकार की पालीथीन पर प्रतिबंध लगा चुकी है।

स्टेशनों में यात्रियों को 5 से 12 घंटे तक पैक परोसा जा रहा है। प्लास्टिक की थाली से भोजन बेस्वाद भी हो जाता है। रेल प्रशासन केन्द्रीय पर्यावरण के नियमों का पालन नहीं कर रहा है। प्लास्टिक की थालियों में भोजन पैक कर स्टेशन के स्टालों में यात्रियों को बेचा जा रहा है। स्टेशन के स्टालों में यात्रियों को बासी भोजन भी परोसा जाता है।

स्टाल संचालक सैकड़ों भोजन एक बार में पैक करके रखते हैं। सुबह से स्टालों में भोजन को पैक किया जाता है जिसे आधी रात तक बेचा जाता है। इससे भोजन दूषित हो जाता है और उसमें से बदबू आने लगती है। प्लास्टिक में मिले केमिकल के कारण किडनी, लीवर को नुकसान पहुंचता है। पर्यावरण विभाग ने तीन ग्राम के माइक्रोन के थैली का उपयोग करने को कहा है परंतु रेल प्रशासन ने आज तक इसकी जांच प्रयोगशाला में नहीं कराई है। बिना जंाच के प्लास्टिक की थालियों के उपयोग का आदेश दे दिया है। जबकि रेल प्रशासन के पास मेडिकल विंग भी है। रेल प्रशासन ने दूसरे विकल्प में पर भी विचार नहीं किया है। केमिकल के बिना प्लास्टिक का निर्माण नहीं हो सकता।


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