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नई तकनीकः पहली बार किसी महिला का एचआईवी हुआ ठीक

अमेरिका में ल्युकेमिया से पीड़ित एक महिला का एचआईवी पूरी तरह ठीक हो गया है.

नई तकनीकः पहली बार किसी महिला का एचआईवी हुआ ठीक
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अमेरिका में डॉक्टरों ने एचआईवी पीड़ित एक महिला को ठीक कर दिया है. शोधकर्ताओं ने बताया कि स्टेमसेल ट्रांसप्लांट के एक जरिए इस महिला का इलाज हुआ. स्टेमसेल एक ऐसे व्यक्ति ने दान किए थे जिसके अंदर एचआईवी वायरस के खिलाफ कुदरती प्रतिरोध क्षमता थी.

मध्य आयुवर्ग की यह महिला श्वेत-अश्वेत माता पिता की संतान है. इस मामले को डेनवर में हुई कॉन्फ्रेंस ऑन रेट्रोवायरसऐंड ऑपर्चुनिस्टिक इंफेक्शंस में पेश किया गया. शोधकर्ताओं ने बताया कि इस मामले में उन्होंने जो तरीका अपनाया, उसका इस्तेमाल पहले कभी नहीं हुआ है और यह ज्यादा लोगों के लिए लाभदायक हो सकता है.

डॉक्टरों ने पहली बार गर्भनाल के खून का इस्तेमाल महिला के ल्युकेमिया का इलाज करने के लिए किया. महिला 14 महीने से स्वस्थ है और उसे एचआईवी के लिए भी दवाओं की जरूरत नहीं पड़ी है.

पहली बार महिला का इलाज

इससे पहले दो ऐसे मामले हुए हैं जब एचआईवी मरीज ठीक हो गए. उनमें से एक मामला श्वेत पुरुष का था जबकि दूसरा एक दक्षिण अमेरिकी मूल के पुरुष का. इन दोनों का भी स्टेमसेल ट्रांसप्लांट हुआ था लेकिन वे स्टेमसेल वयस्क लोगों से लिए गए थे.

अंतरराष्ट्रीय एड्स सोसाइटी की अध्यक्ष शैरन लेविन ने एक बयान में इस प्रयोग की सफलता पर संतोष जाहिर किया. उन्होंने कहा, "अब इलाज की तीसरी रिपोर्ट आ रही है. और पहली बार किसी महिला को ठीक किया गया है.”

एचआईवी को हराने वाला पहला व्यक्ति कैंसर से हार गया

यह इलाज अमेरिका में जारी एक विशेष अध्ययन के तहत किया गया. यह अध्ययन लॉस एंजेल्स की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की डॉ. इवोन ब्राइसन और बाल्टीमोर की जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी की डॉ. डेब्रा परसॉड के नेतृत्व में चल रहा है. इस अध्यन का मकसद एचआईवी से पीड़ित 25 लोगों का स्टेमसेल ट्रांसप्लांट के जरिए कैंसर या अन्य गंभीर बीमारियों का इलाज करना है.

कैसे हुआ इलाज?

जो मरीज इस ट्रायल में हिस्सा ले रहे हैं, पहले उनकी कीमोथेरेपी की जाती है ताकि कैंसर कोशिकाओं को खत्म किया जा सके. उसके बाद डॉक्टर विशेष जेनेटिक म्यूटेशन वाले व्यक्ति से स्टेमसेल लेकर उसे मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट करते हैं. शोधकर्ताओं का मानना है कि इस ट्रांसप्लांट के बाद मरीजों में एचआईवी के प्रति रोधक क्षमता विकसित हो जाती है.

जल्दी इलाज मिले तो एड्स के साथ पैदा हुए बच्चे भी जी सकते हैं लंबी जिंदगी

लेविन ने बताया कि एचआईवी पीड़ित ज्यादातर लोगों के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट उचित इलाज नहीं है. उन्होंने कहा, "रिपोर्ट बताती है कि एचआईवी का इलाज संभव है और जीन थेरेपी भविष्य में एचआईवी के इलाज की कारगर रणनीति हो सकती है.”

अध्ययन बताता है कि इस इलाज की सफलता का मुख्य सूत्र एचआईवी-प्रतिरोधक कोशिकाओं का मरीज के शरीर में सफल ट्रांसप्लांट हैं. लेविन कहती हैं, "इन तीनों मामलों को अगर एक साथ देखा जाए, तो सभी मिलकर ट्रांसप्लांट के अलग-अलग तत्वों की इलाज में अहमियत को उजागर करते हैं.”


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