नई लोकसभा का पहला दिन : गांधी पीछे होंगे!
सांसद चाहे नए हों या पुराने परिवार मित्रों के साथ आने पर शुरुआत गांधी प्रतिमा से करते थे और समापन करते थे उनको सेन्ट्रल हाल में बिठाकर कुछ खिलाते पिलाते हुए

- शकील अख्तर
सांसद चाहे नए हों या पुराने परिवार मित्रों के साथ आने पर शुरुआत गांधी प्रतिमा से करते थे और समापन करते थे उनको सेन्ट्रल हाल में बिठाकर कुछ खिलाते पिलाते हुए। वह सेन्ट्रल हाल भी खत्म कर दिया गया है। वह जहां भारत का संविधान बना था। नेहरू ने भारत की आजादी की घोषणा करते हुए दुनिया के बेहतरीन भाषणों में से एक ट्रिस्ट विद डेस्टिनी ( नियति से साक्षात्कार) दिया था।
पहले नया संसद भवन बनाकर संसद के खुलेपन ताजगी को खत्म कर दिया और अब सौन्दर्यीकरण के नाम पर संसद के विशाल परिसर को एक रिक्त स्थान में परिवर्तित।
18 वीं लोकसभा का पहला सत्र सोमवार से शुरू हो रहा है। इसमें 280 सांसद यानि की आधे से ज्यादा पहली बार जीतकर आ रहे हैं। मगर वे संसद भवन जिसे अब पुरानी कहा जाने लगा है, के सामने बनी विशाल महात्मा गांधी की प्रतिमा के दर्शन नहीं कर सकेंगे। इसी तरह वहीं थोड़ी दूर पर मौजूद संविधान हाथ में लिए उंगली से उस पर चलने का रास्ता दिखाते हुए बाबा साहब डा. आम्बेडकर की चिर-परिचित खड़ी हुई उंची प्रतिमा भी दिखाई नहीं देगी।
वह सारा स्थान एक रिक्ति की तरह शून्य की तरह बन गया है। उसे ही सौन्दर्यीकरण कहा जा रहा है। आप संसद के लिए आइये किसी गांधी को प्रणाम करने की जरूरत नहीं किसी आम्बेडकर से प्रेरणा लेने की जरूरत नहीं।
सारी प्रतिमाएं गांधी, आम्बेडकर, ज्योतिबा फुले, मोतीलाल नेहरू के साथ महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी की भी संसद के सामने से हटाकर प्रधानमंत्री कार्यालय के पीछे पहुंचा दी गई हैं। इसे प्रेरणा स्थल का नाम दिया गया है। यह भी वैसा ही जैसा इंडिया गेट से अमर जवान ज्योति को हटाकर दूसरी जगह पहुंचा दिया गया है। उसका भी नया नाम वार मेमोरियल दे दिया गया है।
मगर जैसे पहले जवानों को अपनी शृदांजलि देने लोग इंडिया गेट पहुंचते थे वैसे वार मेमोरियल नहीं जाते उसी तरह संसद जाने वाले लोग जिनमें छात्रों की तादाद बड़ी होती है अब कोने में पीछे बना दिए गए प्रेरणा स्थल नहीं जा पाएंगे।
हर सांसद गांधी जी को रोज देखता था। अपने साथ जब भी परिवार या मित्रों को लाता था गांधी प्रतिमा के साथ खड़े होकर फोटो खिंचवाता था। सेल्फी लेता था। ऐसे ही छात्र और अन्य आगंतुक गांधीजी को नमन करने के साथ फोटो खिंचवाते थे। दरअसल यह प्रतिमा संसद भवन में ठीक उस पत्थर के सामने लगी थी जिस पर अंग्रेजों ने संसद भवन के शिलान्यास की घोषणा खोदी थी। यह अंग्रेजों के मुंह पर करारा तमाचा था कि जिस संसद भवन को तुमने हमें गुलाम रखने के कायदे कानून बनाने के लिए बनवाया था उसी के ठीक सामने उन कानूनों की धज्जियां उड़ाकर जिस शख्स ने देश आजाद करवाया है वह बैठा है। मगर अब उस शख्स को, गांधी को पीछे धकेल दिया गया है। और 1921 में संसद के शिलान्यास का पत्थर सामने लगा हँस रहा है। अपने प्रधानमंत्री चर्चिल की वह बात याद करके कि भारत का शासन ऐसे लोगों के हाथों में चला जाएगा जो अपने छोटेपन से कभी मुक्त नहीं हो पाएंगे। हालांकि चर्चिल ने तो इससे बहुत ज्यादा खराब शब्दों में भविष्यवाणी की थी। जो लिखने लायक भी नहीं हैं।
जैसा हमने बताया कि सांसद चाहे नए हों या पुराने परिवार मित्रों के साथ आने पर शुरुआत गांधी प्रतिमा से करते थे और समापन करते थे उनको सेन्ट्रल हाल में बिठाकर कुछ खिलाते पिलाते हुए। वह सेन्ट्रल हाल भी खत्म कर दिया गया है। वह जहां भारत का संविधान बना था। नेहरू ने भारत की आजादी की घोषणा करते हुए दुनिया के बेहतरीन भाषणों में से एक ट्रिस्ट विद डेस्टिनी ( नियति से साक्षात्कार) दिया था। हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी के लिए कहा जाता है कि बहुत भाषण देते हैं। दें! मगर उस जैसा संबोधन नियति से साक्षात्कार दुनिया में विरल माना जाता है। जब दुनिया बदलने वाले, उसे दिशा देने वाले, जनता की निराशा दूर करके उसमें उमंग और उत्साह भरने वाले भाषणों का जिक्र आता है तो उनमें मार्टिन लूथर किंग, लिंकन, लेनिन, कैनेडी जैसे विश्वविख्यात नेताओं के ऐतिहासिक भाषणों के साथ नेहरू के भाषण का भी नाम होता है।
अब वह सेन्ट्रल हाल जो इस भाषण का गवाह था वीरान पड़ा है। जब नई लोकसभा का गठन होता था तो राष्ट्रपति यहीं इसी सेन्ट्रल हाल में संसद के दोनों सदनों को संबोधित करते थे। मगर इस बार 18 वीं लोकसभा के सदस्यों को और उनके साथ राज्यसभा सांसदों को वे नई संसद की लोकसभा के सदन में संबोधित करेंगी। नए संसद भवन में सेन्ट्रल हाल है ही नहीं।
सेन्ट्रल हाल मतलब संसद की धड़कन। दोनों सदनों के सदस्य वहां आते थे बैठते थे। दलगत राजनीति खत्म हो जाती थी। तमाम विचारोत्तेजक बहसें होती थीं। संसद कवर करने वाले सीनियर पत्रकार भी वहां होते थे। कभी-कभी सोनिया जी भी आ जाती थीं। वाजपेयी जी आते थे। अरुण जेटली का तो वह अड्डा था। लालू जी भी खूब बैठकें जमाते थे। पत्रकार यहां इस और उस पार्टी को कवर करने वाले नहीं होते थे। हर पार्टी के नेता के साथ बैठकर चाय काफी पीते थे। कुछ ऐसे दुष्ट दोस्त नेता भी होते थे जो आपकी आखिरी सिगरेट भी छीनकर पी जाते थे। यह कहकर कि हाउस में जाना है तुम्हें क्या है बैठो यहां और मंगा लेना। यह उन दिनों की बात है जब सेन्ट्रल हाल में धूम्रपान की अनुमति थी और ज्यादातर पत्रकार पीते थे। बाद में एक स्मोकिंग रूम बगल में अलग कर दिया गया। और फिर तमाम नेताओं और पत्रकारों की भी सिगरेट छूटी। लेकिन रजनीगंधा तुलसी पर झपट्टा मारना चलता रहा। भैरोसिंह शेखावत बड़े शौकीन थे। लालू जी तो अपने पास एक कुल्हड़ रखकर बैठते थे।
खैर, वह लोकतंत्र की जीवतंता हँसी ठहाके। अंदर की बातें। एक दूसरे पर विश्वास की बात बाहर नहीं जाएगी। छोटे-छोटे बिल के लिए लड़ना-झगड़ना कि मेरे पास नहीं हैं। और बिल से ज्यादा अपने प्रिय वेटरों को टिप दे देना सब अतीत की बातें हो गईं। नई संसद में ऐसी कोई जगह ही नहीं है जहां मिला-जुला जा सके। बंद डिब्बे जैसा बना है। किसी का भी मन वहां जाने को नहीं करता।
अगर गुप्त मतदान करवा लिया जाए तो नई बिल्डिंग के पक्ष में मोदीजी के साथ एक-दो लोगों का ही वोट आएगा। सब वापस पुरानी संसद में जाना चाहते हैं। राहुल ने जब यह कहा कि अगर हम जीते तो पुरानी संसद में वापस जाएंगे तो उन्हें इतना समर्थन मिला कि इससे पहले किसी एक बात पर कभी नहीं मिला था। बीजेपी के सांसद मंत्री सब इस मामले में मोदी जी के साथ नहीं राहुल के साथ थे। और क्या बताएं? बाकी उच्चतम पदों पर बैठे लोग भी पुरानी संसद के मोह से मुक्त नहीं हो पा रहे। मगर सब मजबूर हैं।
खैर, सोमवार सुबह नई लोकसभा का पहला दिन होगा। इंडिया गठबंधन को चाहिए कि सदन में जाने से पहले सब एक साथ पहले गांधी और अम्बेडकर की प्रतिमा पर जाएं। थोड़ा अलग से हटकर जाना होगा। पीछे, पुराने भवन के प्रधानमंत्री कार्यालय के पीछे में रखी गई हैं। वहां उनके संघर्ष को याद करके अपने संकल्प को फिर ताजा करें कि लोकतंत्र और संविधान को हर हाल में बचाना है।
व्यवस्थाएं कई स्तर पर भंग कर दी गई हैं। संसद की सुरक्षा से वहां के सुरक्षाकर्मियों को हटा दिया गया है। सीआईएसएफ को नई जिम्मेदारी दी गई है। उसके लिए यह काम नया है। सुरक्षा के साथ पत्रकारों के पास बनाने का काम भी उन्हें दे दिया। उन्हें इसका कोई अनुभव नहीं है। दरअसल संसद का ही नहीं है। वे सांसदों से ही पूछ रहे हैं कि आप कहां जा रहे हैं, क्यों जा रहे हैं। अभी लोकसभा शुरू नहीं हुई। ऐसे ही पत्रकारों से। सांसद, पत्रकार, संसद के अधिकारी, कर्मचारी, डाक्टर, इंजीनियर बहुत लोग होते हैं जिनका आना-जाना होता रहता है। सीआईएसएफ एक कुशल सिक्योरटी फोर्स है मगर यहां के लिए विशेष ट्रेनिंग की जरूरत थी।
लोकसभा अध्यक्ष और महासचिव को संसद की सारी बारीकियां मालूम होती हैं। संसद का नियंत्रण लोकसभा अध्यक्ष के पास ही होता है। यहां प्रधानमंत्री और एक सांसद बराबर होता है। मगर आजकल जैसा राहुल ने कहा कि सभी संस्थाओं की स्वतंत्रता और स्वायत्तता खत्म कर दी गई है। संसद लोकतंत्र की आत्मा है। यह कैसे बचेगी यह अब सत्र शुरू होने के बाद देखना है। विपक्ष पर बड़ी जिम्मेदारी है और सत्ता पक्ष संख्या कम होने से अब कैसे व्यवहार करता करता है यह भी!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


