फिल्म रिव्यु :‘जबरिया जोड़ी’ में चटपटे अंदाज में खास मैसेज
आजकल फिल्मों में प्रदेशवाद ज्यादा ही बढ़ता जा रहा है अगर पिछले कुछ महीनों की फिल्मो पर नज़र डाले तो यूपी के छोटे छोटे शहरों पर कई फिल्में बनी और हिट भी रही, उसी तरह बिहार पर भी कई फिल्में बन चुकी

आजकल फिल्मों में प्रदेशवाद ज्यादा ही बढ़ता जा रहा है अगर पिछले कुछ महीनों की फिल्मो पर नज़र डाले तो यूपी के छोटे छोटे शहरों पर कई फिल्में बनी और हिट भी रही, उसी तरह बिहार पर भी कई फिल्में बन चुकी है जिसमें हिंसा और स्र्त्री पर अत्याचारों का बोल बाला नज़र आता है,वहीँ फिल्मों का दूसरा ट्रेंड है कॉलेज स्टूडेंट के झगड़े और राजनीति। इस सप्ताह रिलीज़ दो फिल्मों में एक चीज़ कॉमन नज़र आती है वो है पॉलिटिक्स। पहली फिल्म जबरिया जोड़ी जिसके निर्देशक प्रशांत सिंह है और जिसमें सिद्धार्थ मल्होत्रा, परिणीति चोपड़ा, जावेद जाफरी, संजय मिश्रा, अपारशक्ति खुराना और चंदन रॉय सान्याल जैसे कलाकार है, इस फिल्म को रोमांटिक कॉमेडी के नाम से प्रोमो में दिखाया जा रहा है लेकिन फिल्म में कॉमेडी थोड़ी ही देर बाद खत्म हो जाती है। दूसरी फिल्म निर्देशक संजीव जायसवाल की फिल्म प्रणाम है जिसमें राजीव खंडेलवाल, समीक्षा सिंह, अतुल कुलकर्णी, अभिमन्यु सिंह, विक्रम गोखले और एस. एम. जहीर है। इसी के साथ हॉलीवुड की डोरा एंड द लॉस्ट सिटी ऑफ़ गोल्ड भी रिलीज़ हुई।
फिल्म रिव्यु - जबरिया जोड़ी
प्रशांत सिंह ने बिहार की पृष्ठभूमि पर जबरिया जोड़ी इस सप्ताह रिलीज़ की है, जिसमें हल्की फुल्की कॉमेडी के साथ है बिहार में प्रचलित है पकड़वा विवाह, जिसमें लड़को को जबरदस्ती अगवा करके उनकी शादी करवा दी जाती है इसी के इर्दगिर्द फिल्म का ताना बाना बुना गया है।
कहानी - पटना के रॉबिनहुड है अभय सिंह यानि सिद्धार्थ मल्होत्रा जो पढ़े लिखे लड़को को अपने गैंग के साथ किडनैप करते है और उनका विवाह एक अच्छी पढ़ी लिखी लड़की से करवा देते है जो दहेज देने में असमर्थ है जिसमें उन्हें कई जगह गालियां मिलती है तो कई जगह तारीफ़, इसलिए कई गरीब माता पिता उसके पास इस काम के लिए आते है और वो पूरी शिद्दत के साथ इस काम को अंजाम देता है। साथ ही उसके पिता हुकुम सिंह यानि जावेद जाफरी उसके इस काम की सराहना करते है और हर जगह कहते है कि मेरा बेटा तो पुण्य का काम कर रहा है। अभय सिंह का बचपन का प्यार है बबली यादव यानि परिणीति चोपड़ा जो उससे बिछड़ चुकी है लेकिन जब मिलती है तो पूरी तरह दबंग स्टाइल में, जो अपनी तरह से जीना चाहती है लेकिन जब कोई किसी को प्यार में धोखा देता है तो वो उसकी जमकर ठुकाई कर देती है। बबली के पिता संजय मिश्रा एक अध्यापक है जो अपने परिवार का सीधे सरल तरीके से लालन पालन कर रहे है, बबली का दोस्त है अपारशक्ति खुराना जो मन ही मन बबली को चाहता है, इसी बीच बबली की मुलाकात एक शादी में अभय से हो जाती है और दोनों का प्यार जवान हो जाता है। उधर इलेक्शन में खड़ा नेता अभय के सहारे चुनाव जीतना चाहता है और अभय को लगता है की वो नेता बनकर कुछ अच्छा कर जाएगा इसीलिए वो प्यार मोहब्बत और शादी से दूर होता चला जाता है। फिर क्या होता है यह फिल्म देखकर ही पता चलेगा।
निर्देशक - निर्देशक प्रशांत सिंह ने फिल्म को मनोरंजक बनाने की कई कोशिशे की लेकिन वो सेकंड हाफ में फिसल जाते है, यहाँ तक की कई सीन तो जबरदस्ती खींचे हुए लगते है। ढाई घंटे की इस फिल्म को काफी छोटा किया जा सकता था।
एक्टिंग - सिद्धार्थ और परिणीति अपनी अदाकारी में कही पर भी बिहारी नहीं लगते और उनकी बिहारी टोन भी दर्शक पूरी तरह से पचा नहीं पाए है। बिहार के बारे में सोचे तो परिणीति और सिद्धार्थ का खूब चमक धमक में रहना और खुल्लम खुल्ला मिलना लोगो को अखरता है क्योकि सभी को पता है बिहार में ऐसा नहीं होता। फिल्म में संजय मिश्रा, अपारशक्ति और जावेद जाफरी तीनो ने ही अपने किरदार को अच्छे से निभाया है।
गीत संगीत - फिल्म में कई संगीत जोड़िया है उसके बावजूद भी पंजाबी गीत के अलावा कोई भी गीत दर्शको की ज़बान पर नहीं आ पा रहा है।
फिल्म की खास बात - फिल्म में कोई खास बात नहीं है अगर आपके पास टाइम है और कोई काम नहीं है तो यह फिल्म देख सकते है।
फिल्म रिव्यु - प्रणाम
राजीव खंडेलवाल कुछ ही फिल्में करते है लेकिन जो भी करते है उसमे उनकी सौ प्रतिशत अदाकारी और दो सौ प्रतिशत सब्जेक्ट होता है, इसीलिए उनकी फिल्मो को देखने के लिए कुछ अलग ही दर्शक आते है। निर्देशक संजीव जायसवाल की इस फिल्म का सब्जेक्ट थोड़ा पुराना तो है लेकिन जो समस्या इसमें दिखाई गयी है वो आज भी उतनी ही वर्तमान है।
कहानी - लखनऊ शहर का रहने वाला अजय यानि राजीव खंडेलवाल पढ़ाई में उत्तम है इसीलिए आईएएस बनने की तैयारी कर रहा है जिसमे वो पूरी शिद्दत से लगा हुआ है क्योकि वो जानता है की उसके पिता दीनानाथ यानि एस. एम. जहीर छोटी सी प्यून की नौकरी करते है और पार्ट टाइम में भी काम करके उसे काबिल बनाना चाहते है। अजय पढ़ाई के साथ साथ मंजरी शुक्ला यानि समीक्षा सिंह को प्यार करता है जो अमीर घर की लड़की है। उसी शहर में है गन्नू भैया यानि अभिमन्यु सिंह, जिसका बैकग्राउंड पॉलिटिकल है और उसकी गुंडा गैंग भी है,जो अपनी बात को मनवाने के लिए किसी का खून करने से भी नहीं कतराती। एग्जाम के टाइम पर गन्नू अपने गुंडे गैंग के साथ मिलकर पेपर लीक करवाते है और उसे मुँह मांगे दामों पर बेचते है। इस यूनिवर्सिटी का चांसलर बनकर आता है तेजप्रताप सिंह यानि विक्रम गोखले जो ईमानदार है वो गन्नू का रास्ता रोकता है और उससे बदला लेने के लिए गन्नू उसकी बेटी को किडनैप कर लेता है जिसको बचाते हुए अजय के हाथ से गन्नू का मर्डर हो जाता है इस केस की तहकीकात करता है राजपाल सिंह यानि अतुल कुलकर्णी, जो अजय पर सारे इल्जाम लगा देता है फिर क्या होता है यह तो फिल्म देखकर पता चलेगा।
निर्देशक - संजीव जायसवाल ने फिल्म को प्रभावित बनाने की कोशिश की है लेकिन कई मसाले होने के बावजूद दर्शको का फिल्म देखने पहुंचना मुश्किल ही नज़र आ रहा है।
एक्टिंग - राजीव खंडेलवाल ने अपने किरदार को बहुत ख़ूबसूरती के साथ निभाया है और अपनी अदाकारी से वो दर्शको का दिल जीत सकते है। लेकिन उनके चहरे पर ऐज नज़र आती है जिसकी वजह से वो स्टूडेंट कम ही लगे है। समीक्षा को जो रोल मिला उसने निभा दिया है। बाकि कलाकार भी ठीक ठीक रहे है।
संगीत - जहाँ तक संगीत की बात है गानों की इस फिल्म में ज़रूरत ही नहीं थी, फिर भी जबरदस्ती डाले गए है।
कुल मिलाकर इस सप्ताह रिलीज़ यह दोनों फिल्मे दर्शकों के दिलों दिमाग पर कोई असर नहीं छोड़ पाती है इसीलिए हम फिर से कहेंगे की जिनके पास कोई काम नहीं है वो इन फिल्मो को देख सकते है।
फिल्म समीक्षक
सुनील पाराशर


