फिल्म रिव्यु : बॉक्स ऑफिस पर भिड़ी ‘बाटला हाउस’,‘मंगल मिशन’
पहले स्वतंत्रता दिवस पर जो फिल्में बनती थी उसमें स्वतंत्रता सेनानी और देश के लिए शहीद हुए शहीदों की जीवन गाथा होती थी

फिल्म रिव्यु
समय के साथ साथ देश प्रेम के ज़ज़्बे में भी बदलाव आता जा रहा है, पहले स्वतंत्रता दिवस पर जो फिल्में बनती थी उसमें स्वतंत्रता सेनानी और देश के लिए शहीद हुए शहीदों की जीवन गाथा होती थी और पूरा देश उसमें डूब जाता था लेकिन धीरे धीरे बदलाव आया देशभक्ति की फिल्मों में, आज हम नए भारत को देखते हुए 'मिशन मंगल' और 'बाटला हाउस' जैसी फिल्म बना रहे है। 'मिशन मंगल' में अक्षय कुमार पूरी लेडीज टीम लेकर आये है जिसमें विद्या बालन, तापसी पन्नू, सोनाक्षी सिन्हा, कीर्ति कुल्हारी और नित्या मेनन है और साथ में है शरमन जोशी, जिसमें लक्ष्य है अपने मंगलयान को सफलतापूर्वक मंगल तक पहुँचाना। वही दूसरी फिल्म 'बाटला हाउस' जो 13 सितम्बर 2008 को दिल्ली में हुए सीरियल बम धमाकों को दर्शाती है, फिल्म में जॉन अब्राहम, मृणाल ठाकुर, रवि किशन व स्पेशल गेस्ट में नूरा फ़तेही नज़र आती है।
फिल्म रिव्यु - मिशन मंगल
आज़ादी के दिन को और खुशनुमा बनाने के लिए अक्षय कुमार लेकर आये मंगल मिशन। वैसे भी पिछले कुछ वर्षों से लोग देश के प्रति ज्यादा सजग और गर्व महसूस करने लगे है और मंगल मिशन इस गर्व को दिखाने वाली ही फिल्म है।
कहानी - इसरो यानि इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन ने जब मार्स पर जब काम करना शुरू किया तो उस वक़्त इसमें कई महिला साइंसटिस्टस ने अपने परिवार और अपनी निजी समस्याओं को भूलकर इसे कामयाब बनाया और भारत एक ऐसा देश बना जिसने पहली ही बार में सेटलाइट भेजने की कामयाबी पाईं वो भी सबसे कम लागत में। फिल्म की कहानी शुरू होती है जाने माने वैज्ञानिक राकेश धवन यानि अक्षय कुमार से जो जीएसएलवी सी 39 नामक एक मिशन में रॉकेट लांच करता है लेकिन उसमें असफल हो जाता है जिसकी वजह से उसे कई सवालों का जवाब देना पड़ता है यहाँ तक की लोग उसको कमतर समझने लगते है, सारी स्थिति को देखते हुए उसे मार्स प्रोजेक्ट में भेज दिया जाता है। जहाँ पर वो प्रोजेक्ट डायरेक्टर तारा शिंदे यानि विद्या बालन के साथ मिलकर मंगल मिशन में लग जाता है, इस मिशन में अड़चने डालते है नासा से बुलाए गए स्पेशल ऑफिसर दिलीप ताहिर लेकिन इसरो के हेड विक्रम गोखले इस मिशन में उनका पूरा सपोर्ट करते है। अब तारा शिंदे और राकेश धवन के साथ है ऐका गाँधी यानि सोनाक्षी सिन्हा, कृतिका अग्रवाल यानि तापसी पन्नू, वर्षा पिल्लै यानि नित्या मेनन, कृति कुल्हारी, परमेश्वर यानि शरमन जोशी और अनंत अय्यर, यह सभी लोग अपनी अपनी परेशानियों में घिरे है और यहाँ तक की इनको पूरा अनुभव भी नहीं है लेकिन तारा इन सबको एक करती है और इस मिशन को कामयाब बनाती है।
निर्देशन - निर्देशक जगन शक्ति ने इस फिल्म पर काफी मेहनत की है और यह एक सच्ची और ऐतिहासिक स्टोरी है जिसे निर्देशक ने काफी हद तक ईमानदारी से बनाया है लेकिन कहीं कहीं उन्होंने फिल्म बनाने की स्वतंत्रता ले ली है, इसीलिए कई जगह फिल्म ज्यादा ही ड्रामेटिक हो गयी है और यहाँ तक की स्पेशल इफ़ेक्ट भी काफी कमज़ोर नज़र आते है।
एक्टिंग - एक्टिंग की बात करे तो अक्षय कुमार ने राकेश धवन की भूमिका को काफी बेहतर तरीके से निभाया है वही विद्या बालन हमेशा की तरह लाजवाब रही। तो तापसी, सोनाक्षी ने अपने किरदार को बाखूबी निभाया है और शरमन जोशी ने थोड़ा हँसाने की कोशिश की है। मेहमान कलाकारों में संजय कपूर, ज़ीशान अय्यूब नज़र आते है।
गीत संगीत - इसमें अमित त्रिवेदी का संगीत है। वैसे तो इस फिल्म में गीत संगीत की ज़रूरत नहीं थी लेकिन मंगल मिशन गाना अच्छा बन पड़ा है।
फिल्म रिव्यु - बाटला हाउस
जॉन अब्राहम पिछले कुछ वर्षों से देशभक्ति फिल्में करने में ज्यादा अग्रसर नज़र आ रहे है, पिछले वर्ष सत्यमेव जयते फिल्म को अच्छी खासी सफलता मिली थी और इस बार 'बाटला हाउस' को दर्शक किस तरह अपनाते है यह देखना होगा।
कहानी - यह कहानी है दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ऑफिसर की जो इंडियन मुजाहिद आतंकवादियों से मुठभेड़ करता है।13 सितम्बर 2008 दिल्ली में कई जगह पर हुए बम धमाकों से पूरा देश काँप उठा था। दिल्ली पुलिस सेल के अफसर संजीव कुमार यादव यानि जॉन अब्राहम और के के यानि रवि किशन को पता चलता है की आतंकी बाटला हाउस की एक ईमारत में छुपे हुए है तो वो अपनी टीम के साथ उस ईमारत का घेराव करते है, इस मुठभेड़ में एक आतंकी भाग निकलता है और पुलिस ऑफिसर के के की मौत हो जाती है, देश की राजनीतिक पार्टियां व कई सामाजिक संगठन इस एनकाउंटर को फेक बताते है उनका कहना है की इस एनकाउंटर में बेक़सूर स्टूडेंट को आतंकी बता कर मारा गया है इसके बाद संजीव कुमार पोस्ट ट्रॉमैटिक डिसॉर्डर जैसी मानसिक बीमारी का शिकार हो जाता है जिसकी वजह से वो अपनी पत्नी नंदिता कुमार यानि मृणाल ठाकुर से भी दूरी बनाना शुरू कर देता है, लेकिन उसकी पत्नी उसका साथ देती है और कहती है की अपने आपको और अपनी टीम को बेक़सूर साबित करना ही अब तुम्हारा लक्ष्य है। स्वयं को बेक़सूर साबित करने के लिए उसे कई राजनीतिक पार्टियों व अपने डिपार्टमेंट की साजिशों का सामना करना पड़ता है।
निर्देशन - निर्देशक निखिल अडवानी ने पूरी फिल्म को बांधे रखा है, साथ ही उन्होंने इस एनकाउंटर की बारीकियों को भी बाखूबी दिखाया है। फिल्म में देशभक्ति से प्रेरित डायलॉग दर्शको को ताली बजाने पर मजबूर कर देते है। निखिल ने फिल्म में राजनीतिक पार्टी, मानवाधिकार जैसे संगठन, धार्मिक कटरता व मीडिया के आरोप प्रतिरोप भी बाखूबी दिखाए है। फिल्म में कई नेताओ की रियल फुटेज भी दिखाई गयी है।
एक्टिंग - जहाँ तक एक्टिंग की बात करे तो जॉन ने पुलिस ऑफिसर की लाइफ को बेहतरीन तरीके से निभाया है, उसकी जाबाज़ी से लेकर उसकी बेबसी, उसका गुस्सा जॉन ने यादव के किरदार को जिया है। रवि किशन का थोड़ा सा ही रोल था लेकिन जितना भी था उसमें वो अपनी छाप छोड़ गए। मृणाल ठाकुर भी अदाकारी में अपना जोहर दिखाने में कामयाब रही, तो डिफेन्स लॉयर के रूप में राजेश शर्मा छा गए है। नूरा फतेही एक गाने में आती है और सारे दर्शकों को फ्रेश कर जाती है।
गीत संगीत - फिल्म में संगीत तुलसी कुमार का है। बी प्राक का गया हुआ गाना साकी साकी इन दिनों हिट लिस्ट में चल रहा है।
कुल मिलाकर - दोनों ही फिल्में बॉक्स ऑफिस पर ठीक ठीक कमाई कर रही है, लेकिन मंगल मिशन जैसी फिल्मों को टैक्स फ्री कर देना चाहिए जिससे ज्यादा से ज्यादा दर्शक इन फिल्मों को देख सके और बच्चे इससे प्रेरित हो सके।
फिल्म समीक्षक
सुनील पाराशर


