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खुद को स्टेटलेस और बेघर महसूस कर रहे दिल्ली पहुंचे अफगानी

दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में अफगानिस्तान दूतावास में सोमवार को पहुंचे अफगान नागरिकों ने कहा कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद वे खुद को बेघर और राष्ट्रविहीन महसूस कर रहे हैं

खुद को स्टेटलेस और बेघर महसूस कर रहे दिल्ली पहुंचे अफगानी
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नई दिल्ली। दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में अफगानिस्तान दूतावास में सोमवार को पहुंचे अफगान नागरिकों ने कहा कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद वे खुद को बेघर और राष्ट्रविहीन महसूस कर रहे हैं और अपने घरों में वापस जाने को लेकर चिंतित हैं।

सोमवार सुबह से ही दिल्ली पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने दूतावास पर पहरा लगा दिया था।

एक अफगान नागरिक सदफ हबीब ने कहा कि वह और उनका परिवार भारत में शरण चाहने वालों के रूप में रह रहे हैं। उनकी मां को तालिबान द्वारा प्रताड़ित किया गया था और उनके पांच दांत टूट गए थे। इसके अलावा उनकी नाक में भी फ्रैक्च र आया है। उन्होंने कहा, यह तालिबान की हिंसा का प्रमाण है। अपने देश को इस स्थिति में देखकर मुझे वास्तव में दुख होता है।

हबीब ने कहा, मैंने अफगानिस्तान से 95 प्रतिशत अंकों के साथ स्नातक की डिग्री प्राप्त की है और जब मैंने और मेरी मां ने पांच साल पहले दिल्ली में शरण मांगी तो उसे सब कुछ छोड़ना पड़ा।

युवा लड़की हबीब ने कहा, मैं उन लड़कियों का दर्द महसूस करती हूं, जो वहां रह रही हैं। मैं इससे गुजर चुकी हूं। मेरा देश खराब स्थिति में है, महिलाओं के लिए सबसे खराब स्थिति है। वे सभी डरी हुई हैं, वे सभी सहमी हुई हैं। अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए अब कोई उम्मीद नहीं है।

उन्होंने आगे कहा, 20 साल का युद्ध, और अब क्या? कुछ नहीं? बीस साल से कुछ भी नहीं। काला अध्याय फिर से शुरू हो गया है। हम स्टेटलेस लोग हैं। हमारे पास वापस जाने के लिए जगह नहीं है।

पिछले चार साल से भारत में शरणार्थी अहमद जकी दो साल पहले यहां पैदा हुए अपने बच्चे के लिए पासपोर्ट बनवाने के लिए दिल्ली में अफगान दूतावास आए हुए थे। उन्होंने आईएएनएस से कहा, उन्होंने मुझसे कहा है कि फिलहाल मुझे अभी कोई पासपोर्ट नहीं मिलेगा। एक सप्ताह बाद हो सकता है।

अफगानिस्तान में स्थिति को बहुत खराब बताते हुए, जकी ने कहा, मैं चार साल से शरणार्थी रहा हूं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यूएनएचसीआर) ने मदद नहीं की है। मेरे पास कोई काम नहीं है। कई अफगान लोगों को मेरी जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।

जकी ने हालांकि कहा कि वह अफगानिस्तान वापस जाना चाहते हैं।

एक अन्य अफगान निवासी अदीबा ने स्थिति को सबसे खराब कहा और बताया कि उन्होंने (तालिबान) अपना असली चेहरा नहीं दिखाया है। वे चतुर हैं। वे (कुछ) सरकारों द्वारा स्वीकार किया जाना चाहते हैं, उसके बाद अफगानिस्तान में उनकी सरकार उनका असली चेहरा दिखाएगी।

अदीबा और उसकी मां 2019 में भारत आए थे। एक वकील और एक नागरिक कार्यकर्ता, अदीबा को तालिबान से धमकियां मिली थीं और वे दिल्ली में एक सुरक्षित जगह खोजने आए थे।

अदीबा ने रविवार से अफगानिस्तान से अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से फोन पर बात की थी। इसके बारे में उन्होंने बताया, स्थिति सामान्य है लेकिन जो फिलिंग आ रही है, वह 20 साल पहले जैसी ही है। उन्हें कैदियों की तरह लग रहा है और उनके घर उनके लिए जेल बन गए हैं।

उन्होंने निराशा भी व्यक्त की, क्योंकि उन्होंने खुद को बेघर, बिना भूमि के और बिना किसी आधिकारिक झंडे के होने पर दुख जताया। अदीबा ने कहा, जल्द ही हमारे देश का नाम बदल जाएगा।

अब्दुल फतेह ने चार साल पहले अफगानिस्तान छोड़ दिया था। उन्होंने कहा, हमारे जीवन को जारी रखने के लिए स्थिति अच्छी नहीं है। लोग एक अच्छा जीवन जीना पसंद करते हैं, लेकिन अब तालिबान सब कुछ तय करेगा - सड़क पर कैसे चलना है, आप स्कूल जाएंगे या नहीं। अफगान लोगों ने कभी स्वीकार नहीं किया है। तालिबान, कभी नहीं। तालिबान ने हमारी सेना, हमारे लोगों का अपमान किया। उन्होंने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया।

अदीबा और फतेह दोनों ने अफगानिस्तान में मौजूदा गड़बड़ी के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया।

उनसे जब एक सवाल पूछा गया कि इसका जिम्मेदार पाकिस्तान क्यों है?, इस पर अदीबा ने कहा, वह (पाकिस्तान) हमेशा हमारा दुश्मन रहा है। वह दोस्त नहीं हो सकता। वे हमारी जमीन चाहते हैं।

फतेह ने कहा, पाकिस्तान, ईरान के साथ हमारी सीमा लगती है। वे कभी भी हमारे देश में शांति नहीं चाहते हैं। पाकिस्तान, ईरान हर समय चाहते हैं कि वे हमारे देश में प्रवेश करें।


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