मंदबुद्धि
हरपाल चौधरी एक संपन्न किसान था.. खूब संपन्न खेती और गृहस्थी थी

- रेखा शाह आरबी
हरपाल चौधरी एक संपन्न किसान था.. खूब संपन्न खेती और गृहस्थी थी । पचास बीघा खेत और गांव के बीचो-बीच बड़ा सा मकान और और दरवाजे पर चार दुधारू पशु उसके ऊपर ईश्वर की बहुत ही अनुकंपा थी। और उसके लंबे चौड़े मकान के आंगन में खेलते उसके चार बेटे उसके मन की शक्ति थे। जब भी अपने चारों बेटों को आंगन में खेलता हुआ देखता तो यही सोचता --मुझे किस बात की फिक्र है.. जिस दिन मेरे चारों बेटे जवान हो जाएंगे उस दिन मुझसे ज्यादा संपन्न और कौन होगा लोग अपने बुढ़ापे से डरते होंगे मेरे तो चारों बेटे मुझे चारों ओर से घेर कर रखेंगे वह यह सब सोच कर प्रफुल्लित हो उठता था।
ये तो एक इंसान की सोच है लेकिन ऊपर वाले ने किसके लिए क्या सोच कर रखा है कोई भी नहीं जान पाता हैं।किस सुख के पीछे दुख की गठरी छुपा कर रखीं हैं। और किस दुख के पीछे खुशी का खजाना छुपा कर रखा है यह सिर्फ ईश्वर ही समझ सकता है आम इंसान कभी नहीं जान सकता हैं। लेकिन फिर भी हम सब कयास लगाने से नही चूकते हैं।
उसके गांव जगतपुर में यह बात प्रसिद्ध थी कि हरपाल से संपन्न किसान चार जवार में नहीं है। उसके घर लक्ष्मी और सरस्वती दोनों की कृपा एक साथ अपनी अनुकंपा बरसाती हैं।
उसने खूब सपने सजाए थे अपने बेटों के लिए कि किसी को डॉक्टर तो किसी को इंजीनियर बनाऊंगा।
समय अपनी गति समय से बढ़ता रहा और बच्चे भी बड़े होते रहे। अपनी तरफ से चारों बच्चों रोहन, मोहन ,सोहन,कृष्णा को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। रूपए पैसे की कोई कमी नहीं थी सब पढ़ने में होशियार थे इसीलिए आगे बढ़ते चले गए।
लेकिन सबसे छोटा कृष्णा पढ़ने के मामले में मंदबुद्धि निकला । गांव के स्कूल से शहर के स्कूल पढ़ने नहीं जा सका। खेती गृहस्थी तो संभाल लेता था। लेकिन पढ़ाई के मामले में वह आगे नहीं बढ़ सका। हरपाल कृष्णा को देखकर बहुत ही चिंतित रहा करता था। पिता होने के नाते उसकी चिंता जायज भी थी। वह चाहता था कि उसके और बच्चों की तरह.. कृष्णा भी पढ़ लिखकर एक बड़ा आदमी बने लेकिन ऐसा संभव न हो सका। ईश्वर ने उसकी किस्मत में कुछ और लिखा था।
एक बार हरपाल के गांव जगतपुर में एक बड़े ही पहुंचे हुए महात्मा जी मंदिर पर प्रवचन देने के लिए आए थे । तो वह उनके आगे अपना दुखड़ा रोने लगा-- 'बाबा मेरे तीनों बेटे तो बहुत होशियार हैं पढ़ने लिखने में सब चीज में लेकिन मेरा छोटा बेटा कृष्णा वह पढ़ाई के मामले में मंदबुद्धि और एकदम सीधा-साधा है मुझे समझ नहीं आता है मेरे बाद उसका गुजर बसर कैसे होगा'?
महात्मा जी के चेहरे पर बहुत तेज था वह बोले-- बेटा ईश्वर ने सबको जन्म दिया है और उसी ने सबका भाग्य भी लिखा है.. यहां धरती पर चींटी का भी गुजर हो जाता है और शेर का भी गुजर हो जाता है.. तुम अपने जिस बेटे के कारण घुले जा रहे... हो सकता है भगवान ने कुछ अलग और अच्छा ही सोच रखा होगा .. इसीलिए व्यर्थ की चिंता ना करो सब ईश्वर के ऊपर छोड़ दो.. बस कर्म अच्छे करते रहो फल देने वाला तो ऊपर बैठा है और वह किसी के साथ अन्याय नहीं करता हैÓ।
बाबा जी की बात सुनकर हरपाल को संतुष्टि तो नहीं हुई लेकिन फिर ईश्वर के ऊपर छोड़कर वह अपनी दुनियादारी में व्यस्त हो गया।
समय बदलते और बीतते देर नही लगती है ।
बच्चे बड़े हो गए वह बच्चो के खुद बाप बन गए.. घर की खेती बाड़ी विस्तृत थी.. और हाथ बटाने वाला कृष्णा के अलावा कोई न था..। तीनों बेटे तो जैसे लगता था शहर के ही होकर रह गए.. गांव की धूल मिट्टी अब उन्हें रास नहीं आती थी..। शुरू शुरू में तो छुट्टियों में आते भी रहे लेकिन अब तो धीरे-धीरे आना एकदम बंद कर दिए साल में एकाद बार ही आते थे .. जब तक शरीर में हरपाल के जान रही तब तक तो वह शहर में जाकर नाती पोतो से मिल आता था। लेकिन अब 4 महीने हो चुके थे उसे अस्वस्थ रहते हुए लेकिन ना बेटे शहर से देखने आए और ना ही वह पोतो को देखने शहर ही जा सका.. इधर दिन पर दिन स्वास्थ्य गिरता ही जा रहा था.. कुछ उम्र का असर कुछ बीमारियों का असर पूर्ण रुपए से शरीर पर था।
एक दिन कृष्णा को बुलाकर कृष्णा से बोला-- कृष्णा शहर में अपने सभी भाइयों को फोन कर दे.. वह सभी आकर मुझसे मिल ले क्या पता कब आंख मुंद जाए और मुलाकात भी ना हो..-- हरपाल चौधरी बेहद कमजोर आवाज में बोला।
' ठीक है बाबूजी मैं अभी फोन लगाता हूं कह कर कृष्णा हरपाल के पलंग के बगल में रखे फोन से अपने भाइयों को फोन लगाने लगा।
' हेलो भैया..आप बच्चे भाभी के साथ गांव आ जाइए यहां पर बाबूजी की तबीयत बहुत खराब है.. कुछ भी हो सकता है इसलिए आप लोग आकर मिल जाइए.. और साथ ही मोहन, सोहन भैया को भी खबर कर दीजिएगाÓ कृष्णा के बड़े भैया रोहन ने कुछ बातचीत और ताकीद के साथ फोन रख दिया।
इधर हरपाल चौधरी रोज दिन अपने बेटे और नाती पोते के लिए इंतजार करते .. लेकिन शहर से ना किसी को आना था ना आया..। आखिर एक दिन इंतजार करते-करते हरपाल चौधरी को अब समझ में आ चुका था.. उनके बेटों के लिए उनके जीवन का कोई मोल मूल्य नहीं है.. शायद वह कुछ ज्यादा समझदार है।
हरपाल चौधरी को साधु बाबा की बातें भी याद आ रही थी कि ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है.. वह भी अब सोचते हैं कि अगर कृष्णा अपने तीनों भाइयों के जैसा होता तो क्या होता.. अच्छा ही रहा कि थोड़ा मंदबुद्धि है कम से कम उसके अंदर रिश्ते नाते और इंसानियत तो जिंदा है ।
अब वह साफ-साफ साधु बाबा के बातों का मंतव्य समझ चुका था.. और अब उसे कृष्णा के भविष्य की जरा भी चिंता नहीं थी क्योंकि वह समझ चुका था कृष्णा भले ही धन से बहुत ज्यादा अमीर ना बने.. लेकिन इंसान के रूप में वह बहुत अच्छा इंसान भगवान ने बनाया है।
हरपाल का यह सपना.. सपना ही रह गया की अंत समय में उसके चारों बेटे उसे घेर कर खड़े होंगे.. घेर कर तो खड़ा था लेकिन सिर्फ कृष्णा उनके पास खड़ा था।
अब वह भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि हे भगवान हर एक माता-पिता को एक कृष्णा जैसी संतान जरूर देना ताकि.. दुनिया में रिश्ते नाते प्रेमभाव और इंसानियत जिंदा रहे।


