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रिटायरमेंट से पहले ताबड़तोड़ फैसले सुनाना दुर्भाग्यपूर्णः सुप्रीम कोर्ट

सीजेआई सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ ने जजों द्वारा रिटायरमेंट से ठीक पहले दनादन फैसले सुनाने की इस प्रवृति को एक दुर्भाग्यपूर्ण चलन करार दिया। पीठ ने ये टिप्पणी तब की जब मध्य प्रदेश के एक प्रधान जिला न्यायाधीश द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

रिटायरमेंट से पहले ताबड़तोड़ फैसले सुनाना दुर्भाग्यपूर्णः सुप्रीम कोर्ट
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नई दिल्ली। देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस सूर्यकांत ने इस बात पर गहरी चिंता और नाराजगी जताई है कि देश में न्यायिक भ्रष्टाचार के मामले बढ़ते जा रहे हैं। उन्होंने इस प्रवृति पर गहरी आपत्ति जताई कि रिटायर होने से पहले जज दनादन फैसले सुनाते हैं। उन्होंने इसे फाइनल ओवर में छक्के पर छक्के मारने जैसा बताया और कहा कि न्यायपालिका में यह खतरनाक चलन बनता जा रहा है। न्यायिक भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर एक दुर्लभ कबूलनामे में सीजेआई ने ये अहम टिप्पणी की है।

सीजेआई सूर्यकांत, जस्टिस जॉयमाल्य बागची और जस्टिस विपुल एम पंचोली की पीठ ने जजों द्वारा रिटायरमेंट से ठीक पहले दनादन फैसले सुनाने की इस प्रवृति को एक दुर्भाग्यपूर्ण चलन करार दिया। सीजेआई ने ये टिप्पणी तब की जब सुप्रीम कोर्ट मध्य प्रदेश के एक प्रधान जिला न्यायाधीश द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें रिटायरमेंट से ठीक 10 दिन पहले उनके निलंबन को चुनौती दी गई थी। कथित तौर पर यह निलंबन जज द्वारा पारित दो न्यायिक आदेशों से जुड़ा था।

बुधवार को सुनवाई के दौरान सीजेआई सूर्यकांत ने टिप्पणी की, "याचिकाकर्ता ने रिटायरमेंट से ठीक पहले छक्के लगाने शुरू कर दिए। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण चलन है। मैं इस पर और विस्तार से बात नहीं करना चाहता।" सीजेआई ने आगे कहा कि सेवानिवृत्ति से ठीक पहले न्यायाधीशों की बहुत सारे आदेश पारित करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।

30 नवंबर को होने वाले थे रिटायर

दरअसल, याचिकाकर्ता, जिला न्यायाधीश मूल रूप से 30 नवंबर को रिटायर होने वाले थे, लेकिन दो न्यायिक आदेशों के कारण 19 नवंबर को उन्हें निलंबित कर दिया गया। हालांकि वह शुरू में 30 नवंबर को रिटायर होने वाले थे, लेकिन 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को उनके रिटायरमेंट को एक साल के लिए टालने का निर्देश दिया, क्योंकि राज्य ने अपने कर्मचारियों की रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाकर 62 साल कर दी थी।

सीजेआई ने किया कटाक्ष

इस स्थिति पर कटाक्ष करते हुए सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि जब न्यायिक अधिकारी ने वे दो आदेश पारित किए, तो उन्हें नहीं पता था कि उनकी रिटायरमेंट की उम्र एक साल बढ़ा दी गई है। रिटायरमेंट से ठीक पहले इतने सारे आदेश पारित करने का चलन बढ़ रहा है। बेंच ने यह भी सवाल किया कि जिला न्यायाधीश ने अपने निलंबन को चुनौती देने के लिए हाई कोर्ट का रुख क्यों नहीं किया? जज की पैरवी कर रहे वकील ने शीर्ष अदालत को बताया कि चूंकि यह पूरे कोर्ट का फैसला था, इसलिए न्यायिक अधिकारी को लगा कि निष्पक्ष सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करना बेहतर होगा।

अपील की जा सकती है, निलंबन नहीं

जिला जज की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील विपिन सांघी ने कोर्ट को अधिकारी के प्रभावशाली करियर के बारे में बताया और कहा कि उन्हें अपनी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में बहुत अच्छी रेटिंग मिली है। सांघी ने पूछा कि एक अधिकारी को ऐसे न्यायिक आदेशों के लिए कैसे निलंबित किया जा सकता है जिनके खिलाफ अपील की जा सकती है और उच्च न्यायपालिका द्वारा उन्हें सुधारा जा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई से इनकार

इस पर शीर्ष न्यायालय ने कहा कि गलत आदेश पारित करने के लिए किसी न्यायिक अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती। इसके लिए उसे निलंबित नहीं किया जा सकता। लेकिन अगर आदेश स्पष्ट रूप से बेईमानी वाले हों तो? यह देखते हुए कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां हाई कोर्ट ने न्यायिक पक्ष में फुल कोर्ट के फैसलों को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से चार हफ्ते के अंदर उस पर फैसला लेने का निर्देश दिया है।

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट जाने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि न्यायिक अधिकारी RTI एप्लीकेशन के ज़रिए अपने सस्पेंशन के कारणों की जानकारी मांग रहा था। कोर्ट ने कहा कि वह इस संबंध में एक रिप्रेजेंटेशन दे सकता था। एक सीनियर न्यायिक अधिकारी से यह उम्मीद नहीं की जाती कि वह जानकारी पाने के लिए RTI का रास्ता अपनाए।


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