बाहुबली रॉकेट LVM3-M6 लॉन्च, इसरो ने रच दिया इतिहास
Isros Bluebird Block-2 Satellite Launch: इसरो ने एकबार फिर से इतिहास रच दिया है। इसरो ने 6100 किलोग्राम वजनी ब्लूबर्ड-2 सैटेलाइट को लॉन्च किया है। यह मिशन इंटरनेट और कनेक्टिविटी की दुनिया को पूरी तरह से बदलने जा रहा है।

ये मिशन है न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) और AST स्पेसमोबाइल के बीच हुए समझौते के तहत किया जा रहा है। इस मिशन से लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में दुनिया का सबसे बड़ा कॉमर्शियल संचार सैटेलाइट तैनात होगा, जो सामान्य स्मार्टफोन को सीधे स्पेस से हाई-स्पीड इंटरनेट प्रदान करेगा।
ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 सैटेलाइट की विशेषताएं ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 AST स्पेसमोबाइल की अगली पीढ़ी की संचार सैटेलाइट्स सीरीज का हिस्सा है। यह सैटेलाइट दुनिया भर में उन इलाकों में मोबाइल कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए डिजाइन की गई है जहां ग्राउंड नेटवर्क नहीं पहुंच पाता।
मुख्य विशेषताएं
वजन: लगभग 6100 से 6500 किलोग्राम (यह LVM3 द्वारा भारतीय मिट्टी से लॉन्च किया गया अब तक का सबसे भारी पेलोड है)।
आकार: इसमें 223 वर्ग मीटर (लगभग 2,400 स्क्वायर फीट) का फेज्ड ऐरे एंटीना लगा है, जो इसे लो अर्थ ऑर्बिट में तैनात होने वाला सबसे बड़ा कॉमर्शियल संचार सैटेलाइट बनाता है।
क्षमता: यह 4G और 5G नेटवर्क सपोर्ट करता है। सामान्य स्मार्टफोन को सीधे स्पेस से हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड प्रदान करेगा।
स्पीड: प्रति कवरेज सेल में 120 Mbps तक की पीक डेटा स्पीड, जो वॉइस कॉल, वीडियो कॉल, टेक्स्ट, स्ट्रीमिंग और डेटा सर्विसेज को सपोर्ट करेगी।
उद्देश्य: यह सैटेलाइट AST स्पेसमोबाइल की ग्लोबल कांस्टेलेशन का हिस्सा है, जो दुनिया भर में 24/7 कनेक्टिविटी उपलब्ध कराएगी। इससे दूरदराज के इलाकों, समुद्रों और पहाड़ों में भी मोबाइल नेटवर्क पहुंचेगा।
पिछली सैटेलाइट्स: कंपनी ने सितंबर 2024 में ब्लूबर्ड 1-5 सैटेलाइट्स लॉन्च की थीं, जो अमेरिका और कुछ अन्य देशों में कंटीन्यूअस इंटरनेट कवरेज प्रदान कर रही हैं। ब्लॉक-2 इससे 10 गुना ज्यादा बैंडविड्थ कैपेसिटी वाली है। यह सैटेलाइट लगभग 600 किलोमीटर की ऊंचाई वाली लो अर्थ ऑर्बिट में तैनात की जाएगी।
मिशन में शामिल सैटेलाइट क्यों खास
1. बिना टावर की रेंज में आए भी मिलता रहेगा सिग्नल
ब्लू बर्ड ब्लॉक-2 उपग्रह एक अगली पीढ़ी (नेक्स्ट जेन) की प्रणाली का हिस्सा है। अगर यह उपग्रह सही कक्षा में स्थापित हो जाता है और कंपनी के परीक्षण सफल होते हैं तो इसके जरिए 4जी और 5जी स्मार्टफोन पर सीधे सेल्युलर ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी मिलेगी। उपभोक्ता को किसी अतिरिक्त एंटीना या कस्टमाइज्ड हार्डवेयर की जरूरत नहीं होगी। फिलहाल सेलफोन को 4जी या 5जी नेटवर्क हासिल करने के लिए मोबाइल टावर की जरूरत होती है, लेकिन इस उपग्रह के सफल होने के बाद टावर का काम खत्म हो सकता है।
2. दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंच
चूंकि उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगाने के साथ कुछ सबसे दूरस्थ स्थानों जैसे हिमालय, महासागरों और रेगिस्तानों तक मोबाइल सेवा पहुंचा सकता है, ऐसे में इन क्षेत्रों में 4जी-5जी नेटवर्क सुविधा पहुंचाना आसान हो जाएगा। इससे वैश्विक स्तर पर डिजिटल असमानता को कम भी किया जा सकता है। यह ग्रामीण क्षेत्रों, खुले पानी और उड़ानों के दौरान नेटवर्क कवरेज की खामियों को खत्म कर सकता है। आमतौर पर इन क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति और यहां पहुंच न होने की वजह से पारंपरिक सेल्युलर नेटवर्क यहां फेल हो जाते हैं। इतना ही नहीं आपदा की स्थिति में जब टेलीकॉम इन्फ्रास्ट्रक्चर तूफान, बाढ़, भूकंप, भूस्खलन या दूसरी प्राकृतिक आपदाओं में तबाह हो जाते हैं, तब भी सैटेलाइट नेटवर्क बेहतर रहता है। इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेश यूनियन डाटा के मुताबिक, 2025 तक दुनियाभर में 200 करोड़ लोग अब भी इंटरनेट या नेटवर्क कवरेज के बिना रहने को मजबूर हैं।
3. बेहतर स्पीड और क्षमता
इस उपग्रह को 5,600 से ज्यादा व्यक्तिगत सिग्नल सेल बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। यह 120 मेगाबाइट्स प्रति सेकंड तक की अधिकतम गति (पीक स्पीड) मुहैया कराने में सक्षम है। यह स्पीड वॉइस कॉलिंग, मैसेजिंग, तेज डाटा ट्रांसफर और बिना रुकावट की वीडियो स्ट्रीमिंग के लिए काफी है।


