कुछ पता तो करो चुनाव है क्या
सियासत की जिस चालाकी को राहत इंदौरी साहब ने बहुत पहले भांप लिया था, वह अब भी कायम है, बल्कि पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है

मशहूर शायर राहत इंदौरी की पंक्तियां हैं-
सरहदों पर बहुत तनाव है क्या,
कुछ पता तो करो चुनाव है क्या।।
सियासत की जिस चालाकी को राहत इंदौरी साहब ने बहुत पहले भांप लिया था, वह अब भी कायम है, बल्कि पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। अब सरहदों पर ही नहीं, देश के भीतर भी चुनाव आते ही तनाव बनाए जाने की शुरुआत हो जाती है। कुछ वक्त पहले बरेली में आई लव मोहम्मद के पोस्टर पर ऐसा बवाल खड़ा हो गया कि जुमे की नमाज का वक्त तनावपूर्ण हो गया। अपने आराध्य से प्रेम का इजहार कोई नयी बात नहीं है। गोरी सोवै सेज पर, मुख पर डारे केस। चल ख़ुसरो घर आपने, रैन भई चहुं देस, से लेकर मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, जाके सर मोर मुकुट मेरो पति सोई, जैसे भक्तिपद इस देश में सदियों से लिखे जाते रहे और इन पर कभी किसी ने कोई आपत्ति नहीं की। न ही कभी दूसरे की भक्ति का मखौल बनाने के लिए अपने आराध्य से मोहब्बत दिखाई गई। लेकिन अब आई लव मोहम्मद को जवाब देने के लिए आई लव विष्णु, आई लव राम, यहां तक कि आई लव योगी और आई लव बुलडोजर तक के पोस्टर बन गए। हालांकि ऐसा करने वाले लोग इस बात को समझ नहीं पाए कि नफरत दिखाने के लिए भी उन्हें मोहब्बत का ही सहारा लेना पड़ा। बहरहाल, नफरत बनाम मोहब्बत के इस सियासी खेल में भावनाओं की नहीं सत्ता साधने की चालाकी नजर आ रही है।
पाठक जानते हैं कि कर्नाटक चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने बजरंग दल पर प्रतिबंध को बजरंग बली के अपमान से जोड़ा था और मतदाताओं से अपील की थी कि बजरंग बली के नाम पर ही वोट दें। हालांकि उनकी ये अपील कर्नाटक के लोगों ने नहीं सुनी। अन्य राज्यों में भी श्री मोदी ऐसे ही भड़काऊ अपीलें कर चुके हैं। कपड़ों से पहचानना और श्मशान-कब्रिस्तान इस देश के लोगों को याद है। पिछले झारखंड चुनावों में बांग्लादेशी घुसपैठियों के नाम पर मुसलमानों के कब्जे वाला एक वीडियो भाजपा ने जारी किया था, जिसमें शिकायत के बाद रोक लगी थी। अब ऐसे ही सांप्रदायिक नफरत वाला वीडियो असम में प्रसारित हो रहा है, जहां अगले साल चुनाव है। वैसे कुछ दिनों में बिहार चुनाव भी है, जहां भाजपा हिंदुत्व का कार्ड चालाकी से खेल रही है, लेकिन विपक्ष में बैठे महागठबंधन और खासकर लालू प्रसाद की आरजेडी के सामने उसे सांप्रदायिक खेल खेलने के लिए खुला मैदान नहीं मिल रहा है।
मगर असम में भाजपा ने ये खेल अभी से शुरु कर दिया है। एक वीडियो अभी वहां सोशल मीडिया पर काफी चला, जिसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से तैयार किया गया है। इसमें असम पर मुस्लिम लोगों द्वारा 'कब्जा' किए जाने का एक मनगढ़ंत और अपमानजनक परिदृश्य दिखाया गया है और इसे उस कथित भविष्य से जोड़ा गया है जो भाजपा के आगामी चुनाव हारने पर घटित हो सकता है। इस वीडियो को हटाने के लिए कु र्बान अली और वरिष्ठ अधिवक्ता अंजना प्रकाश ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर बुधवार को सुनवाई हुई। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने भाजपा की असम इकाई से इस पर जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया है कि भाजपा असम इकाई ने 15 सितंबर 2025 को अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर एक वीडियो प्रसारित किया, जिसमें यह 'भ्रामक और झूठा नैरेटिव' दिखाया गया कि यदि भाजपा सत्ता में नहीं रही तो मुसलमान असम पर कब्जा कर लेंगे। याचिकाकर्ताओं ने अदालत में कहा कि, 'आगामी चुनावों के सिलसिले में एक वीडियो पोस्ट किया गया है' इसमें दिखाया गया है कि अगर एक खास राजनीतिक दल सत्ता में नहीं आता है, तो एक खास समुदाय सत्ता संभालेगा' इसमें टोपी और दाढ़ी वाले लोग दिखाई दे रहे हैं' (अदालत के निर्देशों के अनुसार) स्वत: संज्ञान लेते हुए एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए' अगर एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है, तो अवमानना की कार्रवाई की जानी चाहिए।' याचिका में तर्क दिया गया कि राज्य सरकार सभी समुदायों की संरक्षक होती है और संविधान उसे धर्म, जाति, भाषा, लिंग या नस्ल के आधार पर भेदभाव करने से स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित करता है, इस प्रकार एक निर्वाचित सरकार पर निष्पक्ष, न्यायसंगत और धर्मनिरपेक्ष बने रहने का दायित्व और भी अधिक होता है। इस वीडियो को तुरंत हटाया जाना आवश्यक है ताकि सांप्रदायिक वैमनस्य, अशांति और नफरत के और प्रसार को रोका जा सके। अब इस पर अगली सुनवाई 27 अक्टूबर को होगी।
इस सुनवाई का नतीजा चाहे जो निकले, लेकिन भाजपा तो अभी से समाज को यह फैसला सुनाने का माहौल बना रही है कि मुसलमान इस देश के नहीं हैं और भाजपा सत्ता में रहेगी, तभी उन्हें कब्जा करने से रोका जा सकेगा। हालांकि ऐसे मूर्खतापूर्ण वीडियो बनाने वालों से पूछा जा सकता है कि पहले इक्का-दुक्का राज्यों में भाजपा की सत्ता होती थी, और केंद्र में भी 96 के बाद से वह काबिज हुई है, तो उस दौरान कांग्रेस या अन्य दलों की सरकारें जब होती थीं, तब किस जगह पर मुसलमानों ने कब्जा किया या ऐसी नीयत दिखाई। दरअसल न हिंदू, न मुसलमान, न सिख, न ईसाई कभी भी किसी धर्म के लोगों ने किसी इलाके पर कब्जे की नीयत दिखाई है, क्योंकि आम भारतीय नागरिक संविधान को मानते हुए चुनाव में भागीदारी करता है और अपनी चुनी हुई सरकार बनाता है। इन सरकारों ने भी कभी कब्जा करने की कोशिश नहीं की, क्योंकि यह संभव ही नहीं है। सत्तारुढ़ दल चाहें या न चाहें, हर पांच साल में चुनाव में उतरना उनकी अनिवार्यता है। इन दलों में जो प्रत्याशी खड़े होते हैं, उन्हें जनता ही चुनती है, इसलिए भाजपा नहीं जीतेगी तो मुसलमानों का कब्जा हो जाएगा, ऐसी गैरजिम्मेदाराना बातों में आने से जनता को बचना चाहिए।
हालांकि भाजपा ने पहली बार ऐसा काम नहीं किया है। झारखंड का उदाहरण ऊपर दिया जा चुका है, पिछले उत्तरप्रदेश चुनाव में आदित्यनाथ योगी ने राज्य को केरल बनने से रोकने की बात कही थी, अमित शाह, गिरिराज सिंह जैसे नेता कांग्रेस जीतेगी तो पाकिस्तान में दीवाली होगी, जैसे बयान दे चुके हैं। ये बयान न केवल धार्मिक वैमनस्य फैलाते हैं, बल्कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का भी उल्लंघन हैं। धारा 123(3 ए) और धारा 125, दोनों ही चुनावों के दौरान धार्मिक आधार पर अपील और दुश्मनी को बढ़ावा देने पर रोक लगाती हैं। आश्चर्य है कि चुनाव आयोग ने असम के विज्ञापन पर अब तक खुद से कोई कार्रवाई नहीं की है।


