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आधार नहीं है इसलिए स्कूल नहीं जा रहे लाखों बच्चे

आधार कार्ड की अनिवार्यता ने कई तरह की समस्याएं पैदा की हैं जिनके सबसे ज्यादा खतरे गरीब और कमजोर तबके के लोगों को हैं.

आधार नहीं है इसलिए स्कूल नहीं जा रहे लाखों बच्चे
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लखनऊ में रहने वाली नौ साल की राखी और उनके दो भाई-बहनों को स्कूल में होना चाहिए. लेकिन उनकी दोपहर पापा के फोन पर कार्टून देखते गुजरती है. पिछले साल ही वे हरदोई से लखनऊ रहने चले आए थे लेकिन यहां उन्हें स्थानीय स्कूल ने दाखिला देने से मना कर दिया क्योंकि उनके पास आधार नहीं है. राखी जैसे लाखों बच्चे हैं जो इसी कारण स्कूलों से वंचित हैं.

अपनी झोपड़ी के बाहर टॉफी-चॉकलेट जैसी छोटी-मोटी चीजें बेचने वाला यह परिवार कई नाकाम कोशिशें कर चुका है. राखी की मां सुनीता सक्सेना बताती हैं, "जब हम हरदोई में थे तो बच्चे पास के एक प्राइवेट स्कूल में जाते थे. उन्होंने तो आधार नहीं पूछा. पिछले साल बच्चों का आधार बनवाने के लिए हमने बहुत भागदौड़ की लेकिन कुछ नहीं हुआ. हम सोच रहे हैं कि बच्चों को उनके दादा-दादी के पास वापस हरदोई भेज दें ताकि वे पढ़ सकें.”

सरकार कहती है कि किसी बच्चे को दाखिला देने से मना नहीं किया गया है. उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अधिकारी विजय किरण आनंद कहते हैं, "किसी सरकारी स्कूल में आधार ना होने के कारण बच्चों को दाखिला देने से मना नहीं किया गया है.”

भारत ने 2009 आधार व्यवस्था शुरू की थी जिसका मकसद लोगों को कल्याणकारी योजनाओं के तहत होने वाले भुगतान को नियमित करना था. तब से आधार को सभी तरह के कामों के लिए अनिवार्य बना दिया गया है. अब टैक्स भरने से लेकर सरकारी सब्सिडी पाने तक हर काम में आधार कार्ड मांगा जाता है.

यह कार्ड एक पहचान पत्र जैसा है, जिसमें हर व्यक्ति को एक विशेष नंबर दिया गया है. साथ ही उंगलियों के निशान, आंखों का स्कैन और फोटो भी है. सरकारी आंकड़े कहते हैं कि 1.2 अरब से ज्यादा लोगों को आधार कार्ड दिए जा चुके हैं. तब भी करोड़ों भारतीयों के पास अब तक भी आधार कार्ड नहीं हैं. इनमें बेघर, ट्रांसजेंडर, आदिवासी या गरीब तबके के लोग ज्यादा हैंजिनके पास कोई स्थायी पता या रजिस्ट्रेशन के लिए जरूरी अन्य दस्तावेज नहीं हैं.

आधार पर रिसर्च करने वालीं आंबेडकर यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर दीपा सिन्हा इस बात की तस्दीक करती हैं. वह कहती हैं, "गरीब, कमजोर तबके के ऐसे लोग ज्यादा आधार से वंचित हैं जो इसकी मांग करने वाले स्कूलों या संस्थाओं के सामने आवाज ऊंची नहीं कर सकते.”

आधार की समस्याएं

2014 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आधार को कल्याणकारी योजनाओं के लिए अनिवार्यता नहीं बनाया जाना चाहिए. जब सरकार ने पेंशन से लेकर सिम कार्ड तक हर चीज के लिए आधार को अनिवार्य बनाने की कोशिश की तब 2018 में भी सुप्रीम कोर्ट इस पर पाबंदी लगा दी थी.

सिन्हा बताती हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कोई खास असर नहीं हुआ. वह बताती हैं, "हालांकि सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि आधार ना होने के कारण किसी को भी सुविधाओं से वंचित नहीं किया जाना चाहिए लेकिन तब भी ऐसा हो रहा है.”

इसी साल अप्रैल में एक रिपोर्ट में ऑडिटर जनरल ने कहा था कि आधार जारी करने वाली संस्था यूआईडीएआई को पांच साल से कम आयु के बच्चों के लिए आधार की अनिवार्यता पर फिर से विचार करना चाहिए. यूआईडीएआई ने इस रिपोर्ट पर टिप्पणी नहीं की है.

ऐसी खबरें हैं कि गर्भवती महिलाओं और छह साल तक के गरीब बच्चों को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराने वाली योजना के लिए भी अब आधार अनिवार्य किया जाएगा. हालांकि इन खबरों पर टिप्पणी करते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने ट्वीट किया कि बच्चों के लिए आधार अनिवार्य नहीं है लेकिन माता-पिता के पास आधार होना चाहिए.

मानवाधिकार कार्यकर्ता इस फैसले से चिंतित हैं क्योंकि लगभग आठ करोड़ बच्चे इस योजना के तहत भोजन पाते हैं. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक पांच साल से कम आयु के एक चौथाई बच्चों के पास ही आधार कार्ड है. सिन्हा कहती हैं कि इस योजना के लिए आधार अनिवार्य हुआ तो करोड़ों बच्चे इसके दायरे से बाहर हो जाएंगे जिनमें वे परिवार भी होंगे जो अब तक कोविड महामारी के दुष्परिणाम झेल रहे हैं.

प्यू रिसर्च सेंटर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि 2020 में कोविड महामारी के कारण भारत में गरीबों की संख्या यानी ऐसे लोगों की संख्या जिनकी रोजाना आय दो डॉलर या डेढ़ सौ रुपये से भी कम है, साढ़े सात करोड़ बढ़ गई.

सिन्हा कहती हैं, "महामारी के कारण अब बहुत ज्यादा लोग इन कल्याणकारी योजनाओं पर निर्भर हैं. अब तो समय है कि बच्चों को स्कूल या अन्य सामाजिक केंद्रों में वापस लाया जाए ना कि आधार की अनिवार्यता बनाकर उन्हें रोका जाए.” वैसे तो दुनियाभर में ही आधार जैसी व्यवस्थाएं अपनाई जा रही हैं ताकि गवर्नेंस को बेहतर बनाया जा सके लेकिन मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष अधिकारी का कहना है कि डिजिटल आईडी जैसी इन व्यवस्थाओं के कारण कमजोर तबके के लोग पीछे छूट रहे हैं.

पढ़ेंः पाकिस्तान: डिजिटल पहचान पत्र के बिना सेवाओं से वंचित हो रहे लोग

भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ता और तकनीक विशेषज्ञों ने निजता का उल्लंघन और डेटा की सुरक्षा जैसी चिंताएं भी जाहिर की हैं. उनका कहना है कि आधार के तहत जमा किए गए डाटा का गलत इस्तेमाल हो सकता है. हालांकि यूआईडीएआई ने इसकी संभावना से इनकार करते हुए कहा है कि उसकी सुरक्षा व्यवस्था कड़ी है और डेटा व निजता की सुरक्षा के लिए डिजाइन की गई है.


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