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एफएटीएफ: वित्त धोखाधड़ी के मामले तेजी से निपटाए भारत

मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी फंडिंग जैसे अपराधों पर नजर रखने वाली संस्था ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत को वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों में अभियोजन में तेजी लाने के लिए कदम उठाना होगा

एफएटीएफ: वित्त धोखाधड़ी के मामले तेजी से निपटाए भारत
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मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी फंडिंग जैसे अपराधों पर नजर रखने वाली संस्था ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत को वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों में अभियोजन में तेजी लाने के लिए कदम उठाना होगा.
मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग से निपटने के लिए बनी वैश्विक संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने गुरुवार को भारत को लेकर एक रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट में भारत से बहुमूल्य धातुओं और पत्थरों से संबंधित नकद लेनदेन पर सख्त सीमाएं लगाने का आग्रह किया गया है, क्योंकि इससे निगरानी के लिए खतरा पैदा हो सकता है.

1989 में स्थापित 40 सदस्यीय एफएटीएफ ने ताजा रिपोर्ट में "मनी लॉन्ड्रिंग की जांच और अभियोजन" के अपने मानकों पर भारत को "मध्यम" प्रभावी माना गया है. दूसरे मामलों में भारत की कार्रवाई पर संतुष्टि जताई गई है.

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भारत को सुधार की सलाह
भारत पर जारी मूल्यांकन रिपोर्ट में एफएटीएफ ने कहा भारत की प्रणालियां प्रभावी हैं, लेकिन इन मामलों में अभियोजन को मजबूत करने के लिए बड़े सुधारों की जरूरत है.

यह टास्क फोर्स मादक पदार्थों की तस्करी, अवैध हथियारों के व्यापार, साइबर धोखाधड़ी और अन्य गंभीर अपराधों के जरिए अर्जित अवैध धन पर नकेल कसने के लिए राष्ट्रीय एजेंसियों के लिए वैश्विक मानक निर्धारित करती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने धन शोधन निरोधक (एएमएल) और आतंकवाद के वित्तपोषण निरोधक (सीएफटी) प्रणाली लागू की है जो कई मायनों में प्रभावी है, लेकिन धन शोधन और टेरर फंडिंग के मामलों में भारत को अभियोजन मजबूत करने की जरूरत है. 368 पन्नों की रिपोर्ट में मनी लॉन्ड्रिंग, टेरर फंडिंग से जुड़े विभिन्न पहलुओं का जिक्र है.

रिपोर्ट में भारत के लिए सुझाव
एफएटीएफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत में मनी लॉन्ड्रिंग का मुख्य स्रोत देश के भीतर अवैध गतिविधियां से उत्पन्न होता है, इसलिए भारत को जरूरत है कि वह अभियोजन को समाप्त करने और टेरर फंडिंग करने वालों को दोषी ठहराने और उचित प्रतिबंध लगाने की ओर ध्यान केंद्रित करे.

निगरानी संस्था के मुताबिक बीते पांच सालों में मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में सजा की संख्या, संवैधानिक चुनौतियों की एक श्रृंखला और अदालती प्रणाली की सीमा से प्रभावित हुई है. भारतीय अदालतों पर लंबित मामलों का बहुत बड़ा बोझ है, जिनमें से कई मामले सालों से लंबित हैं.

इस रिपोर्ट पर भारत के वित्त मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव (राजस्व) विवेक अग्रवाल ने कहा कि सरकार इन मामलों की सुनवाई में तेजी लाने का प्रयास कर रही है. अग्रवाल के मुताबिक, "सरकार के पास अब विशेष अदालतों को अधिसूचित करने की प्रणाली है और हम मुकदमों में तेजी लाने के लिए अधिक अभियोजकों को शामिल कर रहे हैं." उन्होंने कहा कि हाल के बरसों में भारत द्वारा उठाए गए कदमों से उसे बेहतर रेटिंग हासिल करने में मदद मिली है.

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2031 में होगा भारत का आकलन
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की मनी लॉन्ड्रिंग एजेंसी, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पिछले पांच सालों में संदिग्ध वित्तीय अपराधियों की 10.4 अरब डॉलर की संपत्ति जब्त की है, लेकिन दोषसिद्धि के आधार पर जब्त की गई संपत्ति 50 लाख डॉलर से भी कम है. एफएटीएफ ने सुझाव दिया कि "यह महत्वपूर्ण है कि भारत इन मुद्दों पर ध्यान दे, क्योंकि आरोपी व्यक्ति मामलों की सुनवाई और अभियोजन के निष्कर्ष की प्रतीक्षा कर रहे हैं."

एफएटीएफ ने यह भी कहा कि गैर-लाभकारी क्षेत्र को आतंकवाद सबंधी वित्तीय दुरुपयोग से बचाने के लिए उपाय लागू करने चाहिए और जोखिम आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जिसमें संभावित जोखिमों के बारे में इन संगठनों तक पहुंच बनाना भी शामिल है. उसके मुताबिक भारत को जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में सक्रिय समूहों से आतंकवादी वित्तपोषण का खतरा है.

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साल 2010 में भारत इसका सदस्य बना था, टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत को 40 में से 37 मानकों पर टॉप या उसके ठीक बाद की रेटिंग मिली है. रिपोर्ट में भारत को "रेगुलर फालोअप" श्रेणी में रखा गया है और इस श्रेणी में जी20 के सिर्फ चार अन्य देश शामिल हैं. भारत को तीन साल बाद अपनी रिपोर्ट देनी है और फिर भारत का आकलन 2031 में होगा.


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