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तेजी से बढ़ रही ऑनलाइन गेमिंग की लत, कर्ज में दब आत्महत्या कर रहे लोग

भारत में ऑनलाइन गेमिंग की लोकप्रियता काफी तेजी से बढ़ी है. अगले चार साल में इस उद्योग के तीन गुना बढ़ने का अनुमान है. अधिकारियों और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े विशेषज्ञों को डर है कि इससे लोगों को जुए की लत लग सकती है.

तेजी से बढ़ रही ऑनलाइन गेमिंग की लत, कर्ज में दब आत्महत्या कर रहे लोग
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भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में रहने वाली 29 वर्षीय बी भवानी रमी जैसे ऑनलाइन कार्ड गेम खेलने के लिए आधी रात को चुपके से अपने बिस्तर से निकल जाती थीं. उन्होंने अपने पति से कई बार वादा किया कि वह यह गेम खेलना छोड़ देंगी, लेकिन इस लत ने उन्हें बुरी तरह जकड़ रखा था. धीरे-धीरे उनकी लत और बिगड़ती चली गई. इसी के साथ भवानी की जमा पूंजी भी खत्म होने लगी और वे कर्ज के बोझ तले दबती गईं.

ऑनलाइन गेमिंग की लत से भवानी और उनके पति भाग्यराज राजेना के करीब 20 लाख रुपये डूब गए. दो बच्चों वाले इस दंपति की जिंदगी परेशानियों से घिर गई. घर में रखे सोने के गहने भी बिक गए. यहां तक कि भवानी को अपनी बहनों से उधार लेना पड़ा. आर्थिक रूप से तबाह हो चुकी भवानी ने आखिरकार बीते जून में खुदकुशी कर ली और एक हंसता-खेलता परिवार बिखर गया.

कर्ज में डूबी और फिर बिखरी जिंदगी

राजेना ने डीडब्ल्यू से फोन पर बातचीत में कहा, "शुरुआत में मेरी पत्नी को कुछ फायदा हुआ. इसके बाद उसने इस गेम में और पैसे लगाए. हालांकि, कुछ समय बाद ही वह अपना पैसा गंवाने लगी, लेकिन इसके बावजूद उसने गेम खेलना नहीं छोड़ा. वह हमसे छिपकर गेम खेलती थी.”कोरोना काल में जिंदगी का हिस्सा बन गए ऑनलाइन गेम्स

राजेना कहते हैं कि हर महीने उनके वेतन का 90 फीसदी हिस्सा उस कर्ज को चुकाने में चला जाता है जो उनकी पत्नी ने लिया था. किसी तरह वे अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं.

तमिलनाडु में पिछले तीन साल में ऑनलाइन गेमिंग की वजह से 17 लोगों ने आत्महत्या की है. भवानी भी उनमें से एक हैं. इस तरह की घटनाओं की बढ़ती संख्या से चिंतित राज्य सरकार ने इस साल अक्टूबर महीने में ऑनलाइन जुए पर रोक लगाने और ऑनलाइन गेम को नियमों के दायरे में लाने के लिए कानून पारित किया. हालांकि, अधिकारियों को डर है कि जिस तरह से भारत में इंटरनेट के बढ़ते प्रसार के साथ अरबों डॉलर वाला ऑनलाइन गेमिंग उद्योग तेजी से बढ़ रहा है उसी तरह लोगों में इसकी लत भी तेजी से बढ़ सकती है.

अनुमान है कि अगले चार वर्षों में इस उद्योग का आकार तीन गुना बढ़ जाएगा. ईवाई-ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में पहले से ही 400 से अधिक ऑनलाइन गेमिंग स्टार्टअप हैं और ऑनलाइन गेम खेलने वालों की संख्या 36 करोड़ तक पहुंच चुकी है. यह आंकड़ा 2020 तक का है.

बच्चों को भी ऑनलाइन जुए की लत का खतरा

मुंबई की एक गैर-लाभकारी संस्था रिस्पॉन्सिबल नेटिज्म ने अपनी साइबर वेलनेस हेल्प लाइन पर लत छुड़ाने वाले कार्यक्रमों और बच्चों के लिए काउंसलिंग सेशन की संख्या को बढ़ाया है. रिस्पॉन्सिबल नेटिज्म के सह-संस्थापक उन्मेश जोशी ने कहा, "हमें हर दिन सैकड़ों माता-पिता के फोन आते हैं, जो रमी जैसे ऑनलाइन गेम खेलने के आदी हो चुके अपने बच्चों के लिए हमसे सलाह लेते हैं. ये बच्चे पैसे से खेलते हैं और हर दिन हजारों डॉलर खर्च करते हैं.”

चीन में बच्चों के लिए ऑनलाइन गेम खेलने के नए नियम बने

भारत के कई राज्यों ने ऑनलाइन जुए की बढ़ती समस्या को हल करने के लिए कई कदम उठाए हैं. जोशी ने कहा, "ऑनलाइन गेमिंग को नियंत्रित करने के लिए तत्काल नियम बनाने और उन्हें लागू करने की जरूरत है. हालांकि, ये नियम उन्हें सिर्फ नियंत्रित करने के लिए हैं, न कि उन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के लिए. इसलिए जरूरत है कि जिन बच्चों को इसकी लत लग चुकी है उन्हें सामाजिक तौर पर सहायता प्रदान की जाए. साथ ही, तकनीकी तौर पर शिक्षित किया जाए.”

मौका और कौशल पर आधारित गेम के बीच अंतर

भारत में मौका (किस्मत) पर आधारित गेम पहले से ही प्रतिबंधित हैं, लेकिन इनसे जुड़ा कानून पूरी तरह स्पष्ट नहीं है. उदाहरण के लिए, फैंटेसी स्पोर्ट्स को ले लें. भारत का सर्वोच्च न्यायालय इसे कौशल पर आधारित गेम मानता है. इसलिए, रमी जैसे गेम को कानूनी तौर पर वैधता मिल जाती है. हालांकि, कई राज्यों की अदालतों में इन गेम को मौका पर आधारित गेम के तौर पर वर्गीकृत किया गया है.

रियल-मनी ऑनलाइन गेम और मौके पर आधारित गेम को जुए के समान माना जाता है और यह भारत के ज्यादातर हिस्सों में प्रतिबंधित है. गैर-लाभकारी समूह ‘ईस्पोर्ट्स प्लेयर्स वेलफेयर एसोसिएशन (ईपीडब्ल्यूए)' ने तमिलनाडु सरकार से आग्रह किया है कि वे कौशल-आधारित खेलों को जुए की कैटगरी से अलग रखें. उनका कहना है कि प्रतिबंध लागू करने से गेमिंग उद्योग पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.

पेशेवर गेमर्स की अलग चिंता

ईपीडब्ल्यूए की निदेशक शिवानी झा ने कहा, "अलग-अलग रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 60 लाख से अधिक पेशेवर ऑनलाइन गेमर्स हैं. अतीत में गेमिंग पर प्रतिबंध लागू होने से उन्हें नुकसान उठाना पड़ा था, क्योंकि उन्हें अपराधी के तौर पर माना गया था. कुछ लोगों की आजीविका ही ऑनलाइन गेम खेलने से चलती है. वे गिग इकोनॉमी का एक बड़ा हिस्सा हैं.” वह कहती हैं, "हमें उम्मीद है कि तमिलनाडु में फिर से ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लागू नहीं किया जाएगा.”

नई दिल्ली में रहने वाले अधिवक्ता आदित्य कुमार का भी कहना है कि भारत सरकार को कौशल और मौका-आधारित गेम के बीच के अंतर को स्पष्ट करना चाहिए. उन्होंने कहा, "हमें स्वतंत्र आयोग स्थापित करने की जरूरत है जो यह तय करे कि कौन से गेम कौशल-आधारित हैं और कौन से मौका-आधारित. इससे सरकार को सट्टेबाजी और जुए से निपटने में मदद मिलेगी. आपसी सामंजस्य बनाकर राज्य और केंद्र सरकार को इससे जुड़े नियम बनाने चाहिए.”

वहीं, भवानी के पति राजेना तमिलनाडु में ऑनलाइन गेमिंग पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की बात का समर्थन करते हैं. उनका मानना है कि इससे युवाओं और बच्चों को ऑनलाइन गेमिंग की लत से बचाया जा सकता है और आत्महत्या के मामले रोके जा सकते हैं.


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