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26 जून को किसान मनाएंगे 'खेती बचाओ, लोकतंत्र बचाओ दिवस'

कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के प्रदर्शन के बीच शनिवार को किसान आंदोलन को सात महीने पूरे होंगे और 1975 में भारत में आपातकाल की घोषणा के 46 साल भी

26 जून को किसान मनाएंगे खेती बचाओ, लोकतंत्र बचाओ दिवस
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नई दिल्ली। कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के प्रदर्शन के बीच शनिवार को किसान आंदोलन को सात महीने पूरे होंगे और 1975 में भारत में आपातकाल की घोषणा के 46 साल भी। इस दिन को किसान पूरे भारत मे 'खेती बचाओ, लोकतंत्र बचाओ 'दिवस के रूप में मनाएगा। इस अवसर पर सैंकड़ो किसान और अन्य नागरिक कल अपना ज्ञापन राज्यो और केन्द्र शासित प्रदेशों के राज्यपालो के माध्यम से भारत के राष्ट्रपति को भेजेंगे।

किसानों के इन दिन को देखते हुए दिल्ली मेट्रो रेल कॉपोरेशन की तरफ से कहा गया है, दिल्ली पुलिस द्वारा सूचना के बाद सुरक्षा कारणों की वजह से शनिवार को दिल्ली मेट्रो के तीन स्टेशन (विश्वविद्यालय, सिविल लाइन, विधान सभा) सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक बंद रहेंगे।

हालांकि जानकारी के अनुसार, किसान दिल्ली के उपराज्यपाल को ज्ञापन सौंपने के समय अभी भी मांग रहें हैं। लेकिन अभी तक किसानों को समय नहीं दिया गया है।

वहीं किसानों ने ये तय किया है कि, यदि उपराज्यपाल से मिलने जाने के दौरान पुलिस द्वारा दुर्व्यवहार किया गया तो बॉर्डर पर बैठे अन्य किसान दिल्ली की ओर कुच करेंगे।

भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक ने आईएएनएस को बताया कि, ढांसा से कुछ किसान दिल्ली के उपराज्यपाल से मिलने जाएंगे। वहीं यदि उनके प्रदर्शन के दौरान किसी तरह का दुर्व्यवहार किया गया तो बॉर्डर पर बैठे किसान दिल्ली की ओर कूच करेंगे।

दरअसल आज गाजीपुर बॉर्डर पर दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के साथ किसान नेताओ की बैठक हुई, इसमें किसानो ने मांग रखी कि दिल्ली के उपराज्यपाल से मिलने का समय आप हमें लेकर दें।

वहीं दिल्ली पुलिस की तरफ से ये साफ कर दिया गया कि ऐसा मुमकिन नहीं है। इसके बाद दिल्ली पुलिस और किसानों के बीच सहमति नहीं बनी और बैठक को खत्म कर दिया गया।

वहीं एसकेएम के मुताबिक 'खेती बचाओ, लोकतंत्र बचाओ दिवस' आपातकाल की घोषणा की 46 वीं वर्षगांठ और 1975 और 1977 के बीच भारत के आपातकाल के काले दिनों की पृष्ठभूमि के खिलाफ भी है, यह एक ऐसा समय था जब नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर बेरहमी से अंकुश लगाया गया था और नागरिकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन किया।

दूसरी ओर शनिवार को 20वीं सदी के भारत के एक प्रतिष्ठित किसान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती की पुण्यतिथि भी है, जिन्होंने जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।

एसकेएम द्वारा एक बयान साझा कर कहा गया कि, भारत में आज का अधिनायकवादी शासन उन काले दिनों की याद दिलाता है जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, असहमति का अधिकार और विरोध का अधिकार सबों का गला घोंट दिया गया था। यह एक ऐसा समय है जो अघोषित आपातकाल जैसा दिखता है। यह एक ऐसा शासन है जिसने अनुत्तरदायी और गैर-जिम्मेदार बने रहना चुना है।

इस अवसर पर राष्ट्रपति को संबोधित एक ज्ञापन इन सभी मुद्दों को उठाता है और उनसे हमारे संवैधानिक मूल्यों और सिद्धांतों तथा हमारे लोकतंत्र की रक्षा करने के अलावा इसमें हस्तक्षेप करने और किसानों की मांगों को पूरा करने की अपील करता है।

एसकेएम के मुताबिक, शनिवार को जब भारत भर के हजारों किसान विभिन्न राज्यों में राजभवनों तक रैलियों में मार्च करने के लिए तैयार हो रहे हैं, एकजुटता की अभिव्यक्ति के रूप में, भारतीय प्रवासियों ने भी रैलियां निकालने का फैसला किया है। ऐसी ही एक रैली की योजना अमेरिका के मैसाचुसेट्स में बनाई जा रही है।

दूसरी ओर आंदोलन को मजबूत करने के लिए अलग-अलग जगहों पर किसानों की अधिक लामबंदी हो रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और सिसौली से हजारों किसान बीकेयू टिकैत के नेतृत्व में गाजीपुर गेट पहुंचे ।

देश के विभिन्न हिस्सों में लाभकारी गारंटीकृत मूल्यों के लिए गेहूं किसानों, गन्ना किसानों, आम किसानों, सेब किसानों, हरे चने किसानों, धान किसानों, ज्वार किसानों और अन्य लोगों का विरोध जारी है।


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