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सरकार की गलत नीतियों से किसान कर रहे आत्महत्या : भूपेश

प्रदेश में किसानों के आत्महत्या मामले में काम रोको प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत करते हुए भूपेश बघेल ने सरकार पर तीखे प्रहार किए

सरकार की गलत नीतियों से किसान कर रहे आत्महत्या : भूपेश
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रायपुर। प्रदेश में किसानों के आत्महत्या मामले में काम रोको प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत करते हुए भूपेश बघेल ने सरकार पर तीखे प्रहार किए। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के क्षेत्र में हटकी ब्याज का चलन है। ब्याज देने के पूर्व जमीन गिरवी रख ली जाती है। सूदखोरों को सरकार का संरक्षण है।

आखिर क्यों सरकार कार्रवाई नहीं कर रही है। वहां के किसान ने मृत्यु पूर्व लिखे पत्र में डॉ. रमन सिंह के नाम का उल्लेख किया है उन्होंने कहा कि सरकार की बिजली व धान खरीदी नीति गलत है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है। मनरेगा का भुगतान भी बंद कर दिया गया है। नोटबंदी के बाद किसानों की हालत और ज्यादा खराब हुई है। कर्जा के चलते प्रदेश के किसान आत्महत्या कर रहे हैं। सरकार को सत्ता में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। जरा भी नैतिकता है तो तत्काल इस्तीफा दे। उन्होंने मृतकों के परिवार को एक करोड़ मुआवजे देने मांग की है।

विधानसभा सत्र के पहले दिन प्रदेश में हो रहे किसानो के आत्महत्या के लिये केन्द्र और प्रदेश की भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुये कहा कि आज किसानों की बदतर हालात के लिये केन्द्र सरकार की नोटबंदी जैसे निर्णय पूरी तरह जिम्मेदार है। जब से केन्द्र सरकार ने नोटबंदी की घोषणा की तब से किसानों की हालात बिगड़ी है। जून से अब तक लगभग प्रदेश में 24 किसानों को आत्महत्या करने के लिये मजबूर होना पड़ा। नुकसान के चलते किसानों ने टमाटर बोने के रकबे कम कर दिये है। आज तक वे उस घाटे से उबर नहीं पाये है। यही कारण है कि लोगो ने टमाटर बोना कम कर दिया है जिसके चलते उत्पादन कम हुआ है और टमाटर उपभोक्ताओं को महंगी कीमतो पर खरीदना पड़ रहा है। इस हालात के लिये रमन सरकार और दिल्ली में बैठी हुयी मोदी सरकार जिम्मेदार है। आज लागत मूल्य बढ़ गया है लेकिन किसानों को उत्पादन का लागत मूल्य नहीं मिल रहा है। जिसके चलते किसानों को टमाटर सड़कों में फेकना पड़ा है।

छत्तीसगढ़ का टमाटर केवल हिन्दुस्तान के अन्य राज्यों में नहीं बल्कि विदेशों में बंग्लादेश, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान सब जगह जाता था लेकिन नोटबंदी के कारण ट्रको के पहिये जाम हो गये थे, इसी कारण टमाटर और सब्जी उत्पादक किसान बर्बाद हो गये। जो किसान छत्तीसगढ़ में आत्महत्या किये वे सीमांत कृषक भी थे और मध्यम श्रेणी के किसान भी थे। वे आधुनिक खेती करने वालों में से थे। मुख्यमंत्री के गृह जिले के किसान भूषण गायकवाड़ जो 60 एकड़ में खेती-किसानी कर रहे थे। आत्महत्या के लिये विवश हुआ क्योंकि उसके सब्जियों का लागत मूल्य नहीं मिल पा रहा था। सबसे ज्यादा आड़त छत्तीसगढ़ में है। पूरे देश में 6 प्रतिशत आड़त लिया जाता हैए वहीं छत्तीसगढ़ में 8 प्रतिशत लिया जाता है। यहां सब्जी प्रिजर्वेशन के लिये कोई व्यवस्था नहीं है न ही कोई मार्केट है। सरकार किसानों के हो रहे आत्महत्या को दूसरे रूप देने में लगी है। पीड़ित परिवार में दहशत का वातावरण पैदा कर सच्चाई को बोलने से रोकने का प्रयास कर रहे है।

भूपेश बघेल ने सरकार की फसल बीमा योजना को असफल बताते हुये कहा यहां के किसान बीमा प्रीमीयम का 1 लाख 32 हजार रुपए पटाते है और उसके एवज में उनको 92 हजार रुपए भुगतान प्राप्त होता है। बागबाहरा गांव के आदिवासी किसान ने आत्महत्या की। वहां के किसानो को किसी को 48 रुपए किसी को 42 रुपए किसी को 18 रुपए और किसी को 90 रुपए की बीमा राशि का भुगतान हुआ है। यह किसानो के साथ अन्याय एवं मजाक नहीं तो और क्या है केन्द्र से आये पैसे को भी राज्य सरकार ने बचा लिया।

मुख्यमंत्री के गृहजिले के किसान जिन्होने आत्महत्या किया उनके द्वारा बोये गये गन्ने का शक्कर फैक्ट्री में उचित मूल्य नहीं मिल रहा था अपने खेत की गन्ने की पेराई कर गुड़ की फैक्ट्री लगाने के लिये प्रयासरत था। लेकिन उस फैक्ट्री की डायवर्सन करने के लिये 50 हजार की घुस दी जाती है किन्तु डायवर्सन नहीं हो पाता। कर्ज से लदा किसान आत्महत्या के लिये विवश होता है। ये हालात मुख्यमंत्री के गृहजिले की है तो प्रदेश की कानून व्यवस्था के बारे में क्या कहा जाए।


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