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प्रमाण पत्र के लिए दिव्यांग बच्चे के साथ भटकते रहे परिजन

विकलांग प्रमाण पत्र बनवाने के लिए एक परिवार अपने 6 वर्षीय दिव्यांग बच्चे को लेकर दिनभर शहर में भटकता रहा

प्रमाण पत्र के लिए दिव्यांग बच्चे के साथ भटकते रहे परिजन
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बिलासपुर। विकलांग प्रमाण पत्र बनवाने के लिए एक परिवार अपने 6 वर्षीय दिव्यांग बच्चे को लेकर दिनभर शहर में भटकता रहा। बच्चे को गोद में लिये परिवार वाले जिला चिकित्सालय से कलेक्टोरेट के चक्कर लगाते रहे।

शासन की योजनाओं की जानकारी नहीं होने से दिव्यांगो के लिए बनाये गये सुविधाओं का लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है। पथरिया गांव के एक परिवार अपने 6 वर्षीय दिव्यांग बच्चे के विकलांगता प्रमाण पत्र व आधार कार्ड बनवाने के लिए सुबह से शाम तक जिला अस्पताल व कलेक्टोरेट के चक्कर लगाते रहे। समाज कल्याण विभाग द्वारा दिव्यांगो के लिए तरह-तरह की योजनाएं चलाई जा रही है। लेकिन इसका लाभ अब भी लोगों को नहीं मिल पा रहा है। शासन का प्रचार-प्रसार सिर्फ कागजों में चल रहा है। जमीनी स्तर पर खोखला साबित हो रहा है।

दिव्यांग सूरज के बड़े पिता राजू कोशले ने बताया कि विकलांगता प्रमाण पत्र बनवाने के लिये जिला चिकित्सालय गये थे। जहां के कर्मचारियों ने कहा कि प्रमाण पत्र मंगलवार व शुक्रवार को ही बनता है। यह कहते हुए जाने को कह दिया। उसके बाद आधार कार्ड बनवाने के लिए कलेक्टोरेट गये जहां जन्म प्रमाण पत्र लेकर आने की बात कहते हुए आधार कार्ड में अंगूठ के निशान पर उसके पैर के अंगूठे का निशान लगाना पड़ेगा।

सूरज हाथ -पैरों से जन्मजात दिव्यांग

पथरिया टेंगनागढ़ निवासी मनोज बारमते का 6 वर्षीय बच्चा सूरज जन्म से ही दिव्यांग है। उसके दोनों हाथ नहीं है वहीं दाहिना पैर भी खराब है। सूरज बांये पैर से खाना खाता है जो ना खेलकूद सकता और बाकी बच्चों की तरह नहीं रह सकता। उसके जन्म से ही परिवार वाले उसे अपने आसपास ही रखते हैं। वहीं गोद में उठाकर ही उसे लेकर आना जाना करते हैं। दिव्यांग प्रमाण पत्र नहीं बन पाने से बच्चे को शासन की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।

दो दिन बनते हैं प्रमाण पत्र

विकलांगता प्रमाण पत्र मंगलवार व शुक्रवा को ही दिया जाता है। यह दो दिन निर्धारित है। इस दिन दिव्यांग बोर्ड कमेटी में दो विशेषज्ञ डॉक्टर व सिविल सर्जन परीक्षण करने के बाद ही इसकी प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हैं।


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