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ईस्ट एमसीडी में नकली जेई!

  पूर्वी दिल्ली नगर निगम में कार्यरत नकली इंजीनियर न सिर्फ भवन विभाग की संवेदनशीलता को तार-तार कर रहा है बल्कि हर महीने मोटी तनख़्वाह लेकर आर्थिक संकट में फंसे निगम को चूना भी लगा रहा है

ईस्ट एमसीडी में नकली जेई!
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नई दिल्ली। पूर्वी दिल्ली नगर निगम में कार्यरत नकली इंजीनियर न सिर्फ भवन विभाग की संवेदनशीलता को तार-तार कर रहा है बल्कि हर महीने मोटी तनख़्वाह लेकर आर्थिक संकट में फंसे निगम को चूना भी लगा रहा है। उक्त आरोप बृहस्पतिवार को आयोजित स्थायी समिति की बैठक में विपक्षी पार्षद रेखा त्यागी ने लगाए।

उन्होंने कहा कि नाला बेलदार के पद पर तैनात निगमकर्मी भवन विभाग में कनिष्ठ अभियंता (जेई) जैसे महत्वपूर्ण पद पर कैसे पहुंच गया। इसकी जांच होनी चाहिए। वहीं, स्थायी समिति के अध्यक्ष प्रवेश शर्मा ने जेई नरेन्द्र सिंह पर लगे आरोपों की जांच कराने के निर्देश निगमायुक्त को दे दिए हैं। रेखा ने कहा कि जिस अधिकारी पर पूर्वी दिल्ली में वैध-अवैध भवन निर्माण पर निगरानी रखने का दायित्व है, वही व्यक्ति अवैध डिग्री के दम पर सालों से भवन विभाग में तैनात है और निगम से लगातार वेतन भत्ते समेत अनेक सुविधाएं ले रहा है।जो आम जनता के पैसों का दुरुपयोग है।

यह नकली इंजीनियर निर्माणाधीन भवनों की जांच कैसे करता होगा। उचित योग्यता के अभाव में जारी बिल्डिंग प्लान भी संदेह के घेरे में आ गए हैं। इनसे लोगों के जान माल के लिए भी खतरा बना हुआ है। गौरतलब है कि साल 2007 से विश्वास नगर वार्ड 226 में तैनात नाला बेलदार (मेंटेनेंस डिपार्टमेंट) नरेंद्र सिंह ने साल 2008-09 में सिविल डिप्लोमा हासिल करने के बाद निगम में कनिष्ठ अभियंता (जेई) का पद प्राप्त किया था। अब नरेंद्र सिंह पर नकली डिग्री के बल पर इंजीनियर का पद हथियाने का आरोप लगने के बाद उनकी योग्यता पर सवाल खड़े हो गए हैं। इस मामले में निगमायुक्त डॉ रणबीर सिंह ने 24 घंटे में जांच कराने और कार्यवाही करने का आश्वासन दिया है।

रेखा त्यागी ने बताया कि बीते दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि कोई भी डीम्ड यूनिवर्सिटी 2018-19 के सत्र से यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग), एआईसीटीई (अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद्) या डीईसी (दूरस्थ शिक्षा परिषद्) की मंजूरी के बिना दूरस्थ शिक्षा (डिस्टेंस एजुकेशन) का कोई कोर्स नहीं चला सकती हैं।

इसके साथ ही न्यायालय ने चार डीम्ड यूनिवर्सिटीज द्वारा 2005 के बाद पत्राचार और डिस्टेंस एजुकेशन से दी गई इंजीनियरिंग की हजारों डिग्री डिप्लोमा ख़ारिज कर दिए गए। इन चार डीम्ड यूनिवर्सिटीज में जेआरएन राजस्थान विद्यापीठ, राजस्थान के अलावा इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस स्टडीज इन एजुकेशन, राजस्थान, इलाहबाद एग्रीकल्चर इंस्टिट्यूट, उत्तर प्रदेश और विनायक मिशन रिसर्च फाउंडेशन, तमिलनाडु शामिल हैं।

इन चारों ने 2001 से 2005 के बीच डिस्टेंस एजुकेशन से इंजीनियरिंग कोर्स के लिए एआईसीटीई से मान्यता नहीं ली थी। हालांकि 2005 के बाद मान्यता मिल गई लेकिन कोर्ट ने उसे अवैध करार दे दिया। मौजूदा मामले के आरोपी जेई नरेंद्र सिंह ने भी जेआरएन राजस्थान विद्यापीठ से साल 2008 -09 में सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लिया था। जो न्यायालय के आदेशानुसार अवैध है। यह आदेश पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय और उड़ीसा उच्च न्यायालय के दो फैंसलों के खिलाफ दायर याचिका पर आया था।


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