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भारत के अंदरूनी मामलों में बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं : उप राष्ट्रपति

उप राष्ट्रपति एम. वैंकेया नायडू ने इस बात पर जोर दिया कि भारत के अंदरूनी मामलों में बाहरी हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है

भारत के अंदरूनी मामलों में बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं : उप राष्ट्रपति
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नई दिल्ली। उप राष्ट्रपति एम. वैंकेया नायडू ने इस बात पर जोर दिया कि भारत के अंदरूनी मामलों में बाहरी हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। भारतीय संविधान और भारतीय सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वाले मुद्दों पर विदेशी हस्तक्षेप के रुझान के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए नायडू ने कहा कि इस तरह के प्रयास पूरी तरह से नाजायज और अवांछनीय हैं। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि भविष्य में बाहर के लोग इस तरह के बयान नहीं देंगे। सोमवार को नई दिल्ली में 'टीआरजी-एन एनिग्मा' पुस्तक के विमोचन के बाद उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा, "परिपक्व गणराज्य और लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत अपने नागरिकों की चिंताओं का समाधान करने में सक्षम है और ऐसे मामलों में दूसरों की सलाह या निर्देश की कोई जरूरत नहीं है।"

उप राष्ट्रपति ने कहा, "गणराज्य के रूप में 70 वर्ष के अनुभव के आधार पर हमने विभिन्न चुनौतियों का कामयाबी से सामना किया है और तमाम चुनौतियों पर विजय पाई है। हम अब पहले से अधिक एक हैं और किसी को भी इस सम्बंध में चिंता करने की जरूरत नहीं है।"

उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र के रूप में हम हमेशा अपने नागरिकों के प्रति न्याय, स्वतंत्रता और समानता के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारा लोकतंत्र प्रासंगिक मतभेदों और असहमति को स्थान देता है। जब भी नागरिकों के बुनियादी अधिकारों पर खतरा मंडराता है, तो देशवासी एक साथ उसकी सुरक्षा में खड़े हो जाते हैं जैसा कि आपातकाल के दौरान देखने को मिला था।

भारत में शिक्षा के क्षेत्र में 50 वर्षीय योगदान के लिए तिलक राज गुप्ता की प्रशंसा करते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा कि वे मानवीय आधार पर काम करते थे और अपने छात्रों, कर्मियों तथा अभिभावकों के लिए उनके मन में सदैव प्रेम और लगाव का भाव रहा है। अपनी इसी भावना के बल पर वे एक शानदार शिक्षाविद् बने।

नायडू ने कहा कि 21वीं सदी में शिक्षाविदों की भूमिका ज्ञान प्रदान करने तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें बच्चों के लिए एक सच्चा आदर्श बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षाविदों को नई प्रौद्योगिकी को प्राचीन परंपराओं तथा उभरने वाले नए ज्ञान को प्राचीन सांस्कृतिक मूल्यों के साथ जोड़ने की क्षमता रखनी चाहिए।

उप राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने शिक्षा को हमेशा एक मिशन माना है, जिसके तहत शुद्ध भावना के साथ काम करना जरूरी है। उन्होंने प्रत्येक क्षेत्र और प्रत्येक विषय के मेधावियों को सलाह दी कि वे शिक्षा के क्षेत्र में आएं, ताकि विद्यार्थियों के साथ अपने अनुभवों को साझा कर सकें।

नायडू ने कहा कि शिक्षा का अर्थ केवल रोजगार प्राप्त करना नहीं है, बल्कि ज्ञान, शक्ति और मेधा को बढ़ाना है। उन्होंने कहा कि शिक्षा तभी सार्थक है जब उससे व्यक्ति अपना सर्वश्रेष्ठ काम करे और लोगों के प्रति उसमें उदारता पैदा हो। इस समय आवश्यक है कि मूल्य आधारित शिक्षा दी जाए।

भारत के आदर्श 'सर्व धर्म समभाव' का उल्लेख करते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता हमारे राष्ट्र का एक बुनियादी सिद्धांत है और यह प्रत्येक भारतीय में निहित है। उन्होंने कहा कि भारत विश्व के सबसे अधिक जीवंत, विविध और सहिष्णु देशों में शामिल है।

हाल में घोषित पद्म पुरस्कारों के विजेताओं को बधाई देते हुए उप राष्ट्रपति ने कई गुमनाम हस्तियों को सम्मानित करने के लिए सरकार की सराहना की।


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