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सिवाए निर्भया कांड के जेल में बाकी तमाम के लिए सबकुछ नया था

करीब सात साल, तीन महीने और तीन दिन बाद निर्भया दुष्कर्म और हत्याकांड के चारों दोषियों को फांसी दिए जाने के मामले में कई दिलचस्प पहलू भी शुक्रवार को सामने आए।

सिवाए निर्भया कांड के जेल में बाकी तमाम के लिए सबकुछ नया था
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नई दिल्ली | करीब सात साल, तीन महीने और तीन दिन बाद निर्भया दुष्कर्म और हत्याकांड के चारों दोषियों को फांसी दिए जाने के मामले में कई दिलचस्प पहलू भी शुक्रवार को सामने आए। निर्भया के चारों मुजरिमों को फांसी पर लटकाने वाला पवन जल्लाद (पुश्तैनी जल्लाद) एकदम नया था। पवन जल्लाद के परदादा लक्ष्मी जल्लाद, दादा कालू जल्लाद और पिता मम्मू सिंह जल्लाद ने पवन से पहले तमाम मुजरिमों को फांसी पर चढ़ाया था। पवन ने भी उन सबके साथ कई फांसियों में जाकर फांसी देने की तकनीक सीखी थी। लेकिन यह पहला मौका था, जब उसे जिंदगी में पहली बार अकेले ही मुजरिम को फांसी पर चढ़ाने का मौका मिला। वह भी एक-दो को नहीं, बल्कि पहली ही बार में चार-चार मुजरिमों को एक साथ।

अब बात करते हैं तिहाड़ जेल के महानिदेशक संदीप गोयल की। संदीप गोयल अग्मूटी काडर के वरिष्ठ आईपीएस हैं। वह दिल्ली सहित देश के कई केंद्र शासित राज्यों में कई महत्वपूर्ण पदों पर तैनात रह चुके हैं। उनके आईपीएस कार्यकाल में भी यह पहला मौका आया, जब उन्हें तिहाड़ जेल का महानिदेशक रहते हुए एक साथ चार-चार अपराधियों को फांसी पर चढ़वाने की कानूनी प्रक्रिया का अनुभव हुआ।

निर्भया के मुजरिमों को फांसी के फंदे तक पहुंचाने की जद्दोजहद भरे ये दो-तीन महीने कैसे थे? इस सवाल का जवाब संदीप गोयल से बेहतर कोई नहीं दे सकता।

जिस तिहाड़ जेल नंबर-तीन के फांसी घर में शुक्रवार तड़के (20 मार्च, 2020) साढ़े पांच बजे फांसी पर टांगा गया, उस जेल के सुपरिंटेंडेंट एस. सुनील की भी जिंदगी में किसी को बतौर जेल सुपरिंटेंडेंट फांसी के फंदे पर चढ़वाना और चढ़ते हुए देखने का यह पहला मौका था। वह भी एक साथ चार-चार मुजरिमों को। एस. सुनील अन्य जेल से कुछ वक्त पहले ही तिहाड़ जेल में ट्रांसफर होकर पहुंचे थे।

तिहाड़ जेल मुख्यालय सूत्रों के मुताबिक, "तिहाड़ जेल नंबर-3 में 6-7 डिप्टी सुपरिटेंडेंट इस वक्त तैनात हैं। एक-दो को छोड़कर ये सब भी नए हैं। यानी इन सबका भी फांसी घर और फांसी की सजा अमल में लाकर अंजाम तक पहुंचाए जाने का पहला अनुभव रहा।"

कमोबेश इसी तरह का आलम तिहाड़ जेल के अपर महानिरीक्षक राज कुमार का भी रहा। राज कुमार तीन साल से तिहाड़ जेल में तैनात हैं। मगर उन्होंने भी अपनी जेल की नौकरी के दौरान कभी किसी को फांसी दिलवाए जाने की जिम्मेदारी इससे पहले नहीं निभाई थी।

इतना ही नहीं निर्भया के चारों मुजरिमों के शव का पोस्टमॉर्टम करने वाले पैनल के चेयरमैन बनाए गए डॉ.बी.एन.मिश्रा की भी कमोबेश यही स्थिति रही। यूं तो डॉ.बी.एन. मिश्रा की गिनती राष्ट्रीय राजधानी के चुनिंदा और पुराने फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट्स के रूप में होती है। एक साथ चार-चार फांसी के मुजरिमों के शव का पोस्टमार्टम करने/कराने का उनकी भी जिंदगी का यह पहला रोमांचक और बेहद जटिल अनुभव रहा। डॉ. बी.एन. मिश्रा दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल, दिल्ली के फॉरेंसिक साइंस विभाग के अध्यक्ष भी हैं।

इतना ही नहीं, तिहाड़ जेल मुख्यालय के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने शुक्रवार को आईएएनएस को नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया, "तड़के करीब चार से पांच बजे के बीच पश्चिमी दिल्ली जिले के उपायुक्त (डिप्टी कमिश्नर) तिहाड़ जेल नंबर चार में कानूनी कार्यवाही के लिए पहुंचे। उनकी नौकरी में भी यह पहला मौका था, जब उन्होंने किसी फांसी के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए हों।"

कुल मिलाकर लब्बोलुआब यही निकल कर सामने आता है कि तिहाड़ जेल में बंद निर्भया के मुजरिम, खुद तिहाड़ जेल और तिहाड़ जेल नंबर तीन के भीतर मौजूद फांसी घर, तथा निर्भया हत्याकांड के अलावा, फांसी वाले दिन तिहाड़ जेल में हर कोई, या फिर सबकुछ नया था। हर किसी के लिए इसे महज इत्तेफाक कहेंगे या फिर कुछ और?


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