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लॉकडाउन में गुम हुई खुशियों पर बजने वाली किन्नरों की ताली

मांगलिक कार्यों के दौरान लोगों के घरों में जा कर नाचने-गाने और आशीर्वाद देकर आजीविका कमाने वाले किन्नरों की तालियां लॉकडाउन में गुम हो गई है

लॉकडाउन में गुम हुई खुशियों पर बजने वाली किन्नरों की ताली
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पटना। मांगलिक कार्यों के दौरान लोगों के घरों में जा कर नाचने-गाने और आशीर्वाद देकर आजीविका कमाने वाले किन्नरों की तालियां लॉकडाउन में गुम हो गई है।

घर में खुशी आए, शादी-निकाह हो, किसी नन्हे मेहमान का आना हो तो दरवाजे पर किन्नरों का आना, बधाई देना बहुत शुभ माना जाता है। समाज से दूर रहने वाले किन्नरों को बधाई गाकर जो मिलता है, उससे ही उनका गुजारा होता है। दूसरों की खुशियों में अपनी खुशी ढूंढने वाले किन्नरों पर भी कोरोना ने कहर ढ़ाया है। कोरोना संकट के कारण लॉकडाउन हुआ तो इनकी आजीविका भी लॉक हो गई है। इसी के साथ हर खुशी के मौके पर बजने वालीं तालियां भी खामोश हैं।

पहले से बचा कर रखी कमाई के भरोसे वे गुजारा कर रहे हैं। बताया जाता है कि देश भर में किन्नरों की संख्या लगभग 35 लाख है। इनमें से कई तो नौकरीपेशा हैं। जो किन्नर नाच-गाकर गुजारा करते हैं, उनके समक्ष तो लॉकडाउन के कारण आजीविका का संकट खड़ा हो गया है। लॉकडाउन के कारण किन्नर समुदाय की सभी गतिविधियां थम गई हैं।

किन्नरों की आवाज बुलंद करने वाले संगठन दोस्ताना सफर की संचालक रेशमा प्रसाद ने ‘यूनीवार्ता’ दूरभाष पर बताया कि कोरोना महामारी किन्नरों के लिए भुखमरी का सबब लेकर आया है। किन्नर समुदाय के जीवन में पहले से ही बहुत सी मुश्किलें हैं। 5000 सालों से सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक दूरी) का सामना कर रहे किन्नर समुदाय को कोविड-19 की लॉकडाउन ने जीवन जीने का एक रास्ता जो बधाई नाच गाने से पूरा होता था वह बंद हो गया है। पेट की भूख मानती नहीं है और यदि दो जून की रोटी ना पूरा हो तो जीवन की लीला समाप्त हो जाए। उन्होंने बताया कि पूरे बिहार में चालीस हजार की संख्या में किन्नर समुदाय के साथी हैं जो नाच-गाना करके जीवन यापन करते हैं।

सुश्री प्रसाद ने बताया कि 99 प्रतिशत ट्रांसजेंडर अपने खुद के घरों में नहीं रहते बल्कि किराए के मकान में रहते हैं और किराया भी सोशल डिस्टेंसिंग के पैमाने से लिया जाता है, जो आम लोगों के मुकाबले अधिक होता है। किन्नरों को रहने के लिए किराया भी देना है और पेट की भूख शांत करने के लिए रास्ता भी ढूंढना है। समाज के बहुत से लोगों ने उन्हें सहयोग किया है और उनके बारे में सोचा है। उन्होने बताया कि पटना वीमेंस कॉलेज, बिहार इलेक्ट्रिक ट्रेडर्स एसोसिएशन, दीदीजी फाउंडेशन, गूंज नई दिल्ली, निरंतर नई दिल्ली ,सेंट जेवियर इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी और भी कितने साथियों ने उन्हें सहयोग किया तो अभी उनका जीवन बचा है। हालांकि पूरे बिहार में मुश्किलें यथावत है इन मुश्किलों को कैसे खत्म की जा सकती है इसके लिए सरकार को मजबूत कदम उठाने चाहिए और उनकी जीवन सुरक्षा के लिए सोचना चाहिए।


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