ओडिशा में 'ओमेगा' से रुका पलायन
ज्यादा पुरानी बात नहीं है, जब पश्चिमी ओडिशा के गांव साल के अधिकांश समय वीरान नजर आते थे, क्योंकि यहां के वयस्कों को आजीविका की तलाश में देश के अन्य हिस्सों में पलायन पर मजबूर होना पड़ता था
भुवनेश्वर। ज्यादा पुरानी बात नहीं है, जब पश्चिमी ओडिशा के गांव साल के अधिकांश समय वीरान नजर आते थे, क्योंकि यहां के वयस्कों को आजीविका की तलाश में देश के अन्य हिस्सों में पलायन पर मजबूर होना पड़ता था।
दसियों हजार ग्रामीण निर्माण के क्षेत्र में मजदूरी या अकुशल श्रमिक के तौर पर काम करने के लिए आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात और केरल जैसे अन्य राज्यों में चले जाते थे। जहां इनमें से कुछ को अच्छा पारिश्रमिक मिलता था, वहीं ज्यादातर को थोड़े से पारिश्रमिक के लिए भी बेहद जद्दोजहद करनी पड़ती थी।
लेकिन महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत केंद्र द्वारा प्रायोजित रोजगार गारंटी योजना को सफलतापूर्वक लागू किए जाने के कारण राज्य से खासतौर पर कलाहांडी-बलांगीर-कारोपुट बेल्ट से ग्रामीणों के पलायन में काफी कमी आई है।
मनरेगा के लाभ और ओडिशा सरकार द्वारा इसे सही तरह से लागू किए जाने का असर नजर आ रहा है, जिसके फलस्वरूप जनजातीय इलाकों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत पैदा हुआ है। अब उन्हें साल में कम से कम 100 दिन निश्चित रूप से रोजगार मिलने लगा है।
ओडिशा सरकार ने केंद्र की योजना से प्रेरणा लेते हुए 2012 में ब्रिटेन के डीएफआईडी की मदद से इसी तर्ज पर अपनी एक खास पहल शुरू की -ओडिशा अर्थव्यवस्था आधुनिकीकरण, सरकार और प्रशासन (ओमेगा) कार्यक्रम।
इसका पायलट प्रोजेक्ट दो जिलों के 11 विकास खंडों में शुरू किया गया, जिसके तहत योजना की प्रक्रिया को बेहतर ढंग से व्यवस्थित करके और पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार लाकर मनरेगा का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया गया।
ओमेगा को तकनीकी सहायता प्रदान करने वाले आईपीई ग्लोबल के मुख्य ज्ञान अधिकारी अब्दुल रहीम ने कहा, "दो जिलों में शुरू पायलट परियोजना की मदद से 60 प्रतिशत परिवारों को मनरेगा और अन्य जीवनयापन संबंधी गतिविधियों में शामिल करके पलायन से रोका गया।"
योजना की सफलता को देखते हुए मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने नुआपाड़ा और बलांगीर जिलों में, जो पलायन संभावित इलाके हैं, परिवारों के लिए 150 दिनों के रोजगार की घोषणा की। इस प्रकार राज्य सरकार की इस परियोजना के तहत ग्रामीण परिवारों को 100 दिन अकुशल रोजगार प्रदान करने की केंद्र की योजना में 50 दिन और जोड़ दिए गए।
रहीम ने कहा, "पलायन करने वाले श्रमिक आमतौर पर नवंबर की शुरुआत से जून के अंत तक अन्य राज्यों में चले जाते हैं। हमने हर पंचायत में ऐसे लोगों को विभिन्न गतिविधियों द्वारा बाहर जाने से रोकने का फैसला किया। इसलिए हमने आर्थिक संकट के कारण पलायन संभावित परिवारों को समय पर रोजगार मुहैया कराने के लिए 100 दिनों का अग्रिम काम देना शुरू किया।"
अब, केंद्र और राज्य की संयुक्त परियोजना से बारिश के मौसम में भी ग्रामीणों को रोजगार के अवसर मिलने लगे हैं। रहीम के अनुसार, मंदी के समय में रोजगार प्रदान करने के लिए भूमि विकास और पुलों के निर्माण जैसे काम हाथ में लिए जाते हैं।
सामाजिक कार्यक्रम विशेषज्ञ सुभ्रांशु के. सत्पथी ने कहा कि एक ओर जहां पलायन करने वाले श्रमिकों को समय पर भुगतान सुनिश्चित किया गया, वहीं दूसरी ओर कौशल विकास पाठ्यक्रमों द्वारा बेरोजगार युवकों के कौशल विकास पर ध्यान दिया गया।
उन्होंने कहा, "पंचायतों में नियमित रूप से 'रोजगार दिवस' का आयोजन करके लोगों को काम के लिए आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।" राज्य सरकार की इस पहल से मनरेगा में भी भागीदारी बढ़ी है।
वर्ष 2012-13 में जहां बलांगीर के 26,497 परिवारों को योजना का लाभ मिला, वहीं 2015-16 में यह आंकड़ा बढ़कर 37,220 हो गया। इसी प्रकार नुआपाड़ा में 2012-13 में 31,000 परिवारों को रोजगार मिला, जिसकी संख्या 2015-16 में 51,000 तक पहुंच गई।
आईपीई ग्लोबल में वरिष्ठ संपर्क अधिकारी कृति पांडे ने कहा, "तीन सालों में औसत व्यक्ति दिवसों में 20 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। 2015-16 में नुआपाड़ा जिले से करीब 80 प्रतिशत पलायन संभावित परिवारों ने जिले में ही रहने का फैसला किया।"
वर्ष 2016-17 के लिए आठ करोड़ व्यक्ति दिवस मंजूर किए गए थे, जबकि राज्य सरकार ने 2017-18 के लिए 9.51 करोड़ व्यक्ति दिवसों को मंजूरी दे दी है, जिसके लिए केंद्र की स्वीकृति का इंतजार है।
इतना ही नहीं, कई बार केंद्र से धन मिलने में होने वाली देरी को देखते हुए पारिश्रमिक के समय पर भुगतान के लिए 2017-18 के बजट में 300 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है।


