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बजट से बाहर रहा पर्यावरण

23 बाढ़-नियंत्रण एवं सिंचाई हेतु आबंटित 11.500 करोड़ रूपये भी कम ही लगते हैं, क्योंकि बाढ़ से हानि काफी अधिक होती है

बजट से बाहर रहा पर्यावरण
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- डॉ. ओ.पी. जोशी

बाढ़-नियंत्रण एवं सिंचाई हेतु आबंटित 11.500 करोड़ रूपये भी कम ही लगते हैं, क्योंकि बाढ़ से हानि काफी अधिक होती है। शहर एवं बाहरी क्षेत्रों में बाढ़ नियंत्रण हेतु हरियाली विशेषकर पेड़ बचाना जरूरी है, परंतु पेड़ शहर एवं जंगल दोनों जगह कम हो रहे हैं। शहरों में विकास के नाम पर तो जंगलों में विद्युत, रेल, सडक, बांध एवं खनन कार्य की परियोजनाओं के नाम पर काटे जा रहे हैं।

23 बाढ़-नियंत्रण एवं सिंचाई हेतु आबंटित 11.500 करोड़ रूपये भी कम ही लगते हैं, क्योंकि बाढ़ से हानि काफी अधिक होती है। शहर एवं बाहरी क्षेत्रों में बाढ़ नियंत्रण हेतु हरियाली विशेषकर पेड़ बचाना जरूरी है, परंतु पेड़ शहर एवं जंगल दोनों जगह कम हो रहे हैं। शहरों में विकास के नाम पर तो जंगलों में विद्युत, रेल, सडक, बांध एवं खनन कार्य की परियोजनाओं के नाम पर काटे जा रहे हैं।

23जुलाई को केन्द्रीय वितमंत्री निर्मला सीतारमण में देश का 2024-25 का 48.21 लाख करोड़ रूपयों का बजट पेश किया था। बजट के जो नौ आधार कृषि, कौशल-विकास, मानव-संसाधन विकास, मेन्युफेक्चरिंग सेवाएं, इंफ्रास्ट्रचर, शहरी-विकास, नवाचार शोध व विकास, ऊर्जा-सुरक्षा एवं आर्थिक सुधार बताये गये, उनमें पर्यावरण की समस्याएं एवं सुधार कहीं नजर नहीं आया। 'केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय' को दिया गया 3330.37 करोड़ रूपयों का आबंटन देश के बिगड़े पर्यावरण के हालातों के मद्देनजर काफी कम है।

संगठन 'आयक्यूएआर' ने इसी वर्ष के प्रारंभ में अपनी रिपोर्ट में बताया था कि विश्व के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में 09 हमारे देश के हैं तथा सबसे ज्यादा प्रदूषित 10 देशो में हमारा देश तीसरे स्थान पर है। देश की 96 प्रतिशत आबादी प्रदूषित वायु में सांस ले रही है। वर्ष 2019 में देश के 138 शहरों में शुरू किये गये 'राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम' के तहत तय किया गया था कि वर्ष 2024-25 तक 'वायु गुणवत्ता सूचकांक' (एक्यूआय) घटाकर 50 के लगभग लाया जाएगा। इसी संदर्भ में मार्च 2022 में संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि ज्यादातर शहरों में वायु गुणवता में सुधार काफी कम हुआ है, अत: बजट बढ़ाया जाए, कार्य में पारदर्शिता लाएं तथा समाज की भागीदारी बढ़ाई जाए।

30 लाख से ज्यादा आबादी वाले 14 शहरों को विकास हेतु 11.11 लाख करोड़ रुपए आबंटित किये गए हैं। ये शहर पर्यावरण को महत्व देकर वायु एवं जल प्रदूषण, नियंत्रण, जलस्त्रोतों के संरक्षण, हरियाली विस्तार एवं वर्षा-जल पुनर्भरण पर ध्यान दें तो आदर्श शहर बन सकते हैं। जलस्त्रोत एवं नदियों के विकास के तहत गंगा सफाई हेतु 30033.83 करोड़ रूपये आबंटित किये गए हैं। बजट में पैसे देने से गंगा साफ नहीं होगी, अपितु इसके प्रदूषण के मूलभूत कारणों को जानकर उन्हें समाप्त करने के प्रयास ईमानदारी से करने एवं करवाने होंगे। अभी हाल ही में 'उत्तरप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल' की रिपोर्ट देखकर 'राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण' (एनजीटी) की प्रधान खंडपीठ ने कहा है कि प्रयागराज में ही गंगा का पानी पीने एवं आचमन के योग्य नहीं है।

'केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल' के अनुसार अध्ययन की गई 521 नदियों में से 351 प्रदूषित पाई गईर्ं। इन नदियों के प्रदूषण-स्तर की गणना कर उस हिसाब से बजट में पैसा दिया जाना था। एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के संदर्भ में सिंचाई के लिए जल एवं भूमि की उर्वरता पर ध्यान देना होगा। प्राकृतिक खेती में यदि प्रदूषित पानी से सिंचाई की गई तो फिर वह कितनी प्राकृतिक रहेगी? 'राष्ट्र्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी संस्थान (नीरी),' नागपुर ने दो वर्ष पूर्व अध्ययन कर बताया था कि देश की लगभग 30 प्रतिशत भूमि में उत्पादकता समाप्त हो गई है।

बाढ़-नियंत्रण एवं सिंचाई हेतु आबंटित 11.500 करोड़ रूपये भी कम ही लगते हैं, क्योंकि बाढ़ से हानि काफी अधिक होती है। शहर एवं बाहरी क्षेत्रों में बाढ़ नियंत्रण हेतु हरियाली विशेषकर पेड़ बचाना जरूरी है, परंतु पेड़ शहर एवं जंगल दोनों जगह कम हो रहे हैं। शहरों में विकास के नाम पर तो जंगलों में विद्युत, रेल, सडक, बांध एवं खनन कार्य की परियोजनाओं के नाम पर काटे जा रहे हैं। मध्यप्रदेश में रतलाम-खंडवा ब्राडगेज रेललाइन तथा उत्तरप्रदेश में कावड़ियों के एक मार्ग हेतु क्रमश: 80 हजार एवं 30 हजार पेड़ काटना प्रस्तावित है।

कुछ अन्य कारणों से शहरों एवं जंगलों में पेड़ों की कमी से गर्मी एवं लू का प्रकोप बढ़ता जा रहा है जिसे वर्ष 2024 में अभी तक महसूस भी किया गया। सिक्किम में लू के दिनों की संख्या दहाई में हो गई है एवं उत्तराखंड की कई नदियां जून में ही उफन गई हैं। हिमालय के पहाड़ी राज्यों में वनों की आग की रोकथाम तथा समावेशी विकास हेतु ज्यादा राशि दी जाना थी।

उत्तराखंड में ही नवम्बर 23 से जून 24 तक लगभग 950 आगजनी की घटनाएं हुईं जिससे 4000 हेक्टर के सारे पेड़ जल गए। पर्यटन बढ़ाने के चक्कर में राज्य पहाड़ों की सारी पारिस्थितिक व्यवस्था बिगाड़ चुके हैं जिससे कई स्थानों की हालत जोशीमठ के समान हो गई है। उत्तरप्रदेश सरकार को भी ज्यादा राशि दी जानी थी, क्योंकि वहां की 99.4 प्रतिशत आबादी प्रदूषित हवा में सांस ले रही है।

पर्यावरण सुधार के कई कार्य राज्य सरकारों एवं स्थानीय निकायों को करना होता है, परंतु उनकी आर्थिक स्थिति खराब होने से वे भी सही ढंग से नहीं कर पाते हैं। प्रदूषण नियंत्रण का कार्य 'केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल' के साथ राज्य के क्षेत्रीय कार्यालय भी करते हैं। अप्रेल 2024 में 'एनजीटी' को दी गई रिपोर्ट में बताया गया कि प्रदूषण नियंत्रण निकायों में 50 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। पर्यावरण-प्रदूषण से जुड़े कई अन्य विभागों में भी कई पद खाली हैं। कम बजट एवं खाली पदों की स्थिति में पर्यावरण सुधार एवं प्रदूषण नियंत्रण कैसे संभव होगा?
(स्वतंत्र लेखक हैं तथा पर्यावरण के मुद्दों पर लिखते हैं।)


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