Top
Begin typing your search above and press return to search.

फिल्म के हर फ्रेम पर रहती थी मणि कौल की पारखी नजर, नए-नए प्रयोगों से करते थे सभी को हैरान

भारतीय सिनेमा के जाने-माने निर्देशक रहे मणि कौल सिनेमा के सच्चे प्रेमी थे। उनके लिए फिल्में केवल मनोरंजन का साधन नहीं थीं, बल्कि कला, भावनाओं और विचारों का जरिया हुआ करती थीं

फिल्म के हर फ्रेम पर रहती थी मणि कौल की पारखी नजर, नए-नए प्रयोगों से करते थे सभी को हैरान
X

मुंबई। भारतीय सिनेमा के जाने-माने निर्देशक रहे मणि कौल सिनेमा के सच्चे प्रेमी थे। उनके लिए फिल्में केवल मनोरंजन का साधन नहीं थीं, बल्कि कला, भावनाओं और विचारों का जरिया हुआ करती थीं। वह घंटों तक फिल्में देखते रहते थे। चाहे वह रोमांस हो या कॉमेडी, मणि कौल हर फिल्म के हर फ्रेम का ध्यान रखते और उसमें छिपे नए प्रयोग को समझने की कोशिश करते।

उन्होंने अपने इस सिनेमा प्रेम और गहरी समझ से भारतीय फिल्मों की दुनिया में एक अलग पहचान बनाई।

मणि कौल का जन्म 25 दिसंबर 1944 को राजस्थान के जोधपुर शहर में हुआ। वह एक कश्मीरी परिवार से थे। बचपन से ही उन्हें कला और साहित्य में गहरी रुचि थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने जयपुर विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया और आगे फिल्म बनाने का सपना देखा। इसके लिए वह पुणे के फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) में पहुंचे। वहां उन्होंने निर्देशक ऋत्विक घटक से अभिनय और निर्देशन का प्रशिक्षण प्राप्त किया।

उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1969 में फिल्म 'उसकी रोटी' से की। यह फिल्म उनके लिए सिर्फ पहला प्रोजेक्ट नहीं थी, बल्कि उनके नए सिनेमा प्रयोगों की शुरुआत थी। उनकी फिल्मों की खासियत यह थी कि वे छोटी-छोटी चीजों को भी बड़े ध्यान से दिखाते थे। वह फिल्म के हर दृश्य को समझते, रंगों और कैमरे के हर प्रयोग को नोट करते और उसी से अपनी फिल्म की नई तकनीक सीखते थे।

उनकी अगली फिल्म 'आषाढ़ का एक दिन' (1971) मोहन राकेश के नाटक पर आधारित थी। इसके बाद 1973 में उन्होंने 'दुविधा' बनाई, जो समानांतर सिनेमा का एक मील का पत्थर मानी गई। इस फिल्म में एक नवविवाहिता के जीवन की कहानी है, जिसमें उसका पति शादी के अगले दिन ही व्यापार के लिए घर छोड़ देता है और बीच में भूत का रूप लेकर लौटता है। मणि कौल ने इस फिल्म में हर दृश्य को बेहद ध्यान से शूट किया।

मणि कौल ने केवल भारतीय साहित्य पर आधारित फिल्में ही नहीं बनाई, बल्कि रूसी और यूरोपीय सिनेमा से भी प्रभावित होकर नई तकनीक अपनाई। उन्हें रूसी भाषा के महान साहित्यकार फ्योदोर दोस्तोवस्की की कहानियों से भी गहरी प्रेरणा मिली। उनकी फिल्म 'इडियट' इसी का उदाहरण है। उनके लिए हर फ्रेम, हर कैमरा एंगल और हर दृश्य किसी नई कहानी की तरह था।

मणि कौल को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले। उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से दो बार सम्मानित किया गया। 1974 में उन्हें 'दुविधा' के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और 1989 में उनकी डॉक्यूमेंट्री 'सिद्धेश्वरी' को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। इसके अलावा, उन्होंने चार बार फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवॉर्ड भी जीता। उनके करियर में कम बजट में भी बड़ी फिल्में बनाने की कला और नए प्रयोगों के लिए हमेशा सराहना मिली।

मणि कौल का निधन 6 जुलाई 2011 को हरियाणा के गुरुग्राम में हुआ।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it