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'मैं गलत पते पर आ गया हूं', इन चंद शब्दों ने बदल दी राकेश बेदी की पूरी जिंदगी

हिंदी सिनेमा में ऐसे बहुत कम कलाकार हैं, जिन्होंने हंसी के साथ-साथ सादगी को भी दर्शकों तक पहुंचाया हो

मैं गलत पते पर आ गया हूं, इन चंद शब्दों ने बदल दी राकेश बेदी की पूरी जिंदगी
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मुंबई। हिंदी सिनेमा में ऐसे बहुत कम कलाकार हैं, जिन्होंने हंसी के साथ-साथ सादगी को भी दर्शकों तक पहुंचाया हो। इन्हीं में से एक हैं अभिनेता राकेश बेदी, जिनकी कॉमिक टाइमिंग और सहज अभिनय ने उन्हें हर पीढ़ी का पसंदीदा कलाकार बना दिया। 70 और 80 के दशक में जब मनोरंजन के साधन बेहद सीमित थे, तब दूरदर्शन के कुछ कलाकार परिवारों का हिस्सा बन चुके थे।

उसी दौर में 'श्रीमान श्रीमती' के दिलरुबा, 'ये जो है जिंदगी' के राजा और 'चश्मे बद्दूर' के ओमी लोगों की रोजमर्रा की बातचीत में शामिल हो चुके थे। उन्होंने कभी मजाक में कहा था कि वह शायद गलत पते पर आ गए हैं, उस समय उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि उनका वही वाक्य उनके जीवन की दिशा तय कर देगा।

राकेश बेदी का जन्म 1 दिसंबर 1954 को दिल्ली के करोल बाग में हुआ। पिता गोपाल बेदी इंडियन एयरलाइन्स में एयरक्राफ्ट इंजीनियर थे और चाहते थे कि बेटा भी पढ़ाई में आगे बढ़े। राकेश ने अपनी शुरुआती पढ़ाई दिल्ली से की, लेकिन उनका मन पढ़ने में कम और अभिनय में अधिक था। उन्होंने कई इंटरव्यूज में बताया कि उन्हें पढ़ाई से ज्यादा मजा मंच पर किसी किरदार को निभाने में आता था। स्कूल के दिनों में ही उन्होंने मोनो-एक्टिंग प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था और कई पुरस्कार भी जीते। इन छोटे-छोटे मंचों पर मिलने वाली तालियों ने उनके भीतर का कलाकार जगाया, लेकिन घर पर इस फैसले का विरोध होता रहा।

उनके माता-पिता चाहते थे कि वे इंजीनियरिंग करें, इसलिए उन्हें इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम देने के लिए भेजा गया। यहीं से उनकी जिंदगी ने नया मोड़ ले लिया। परीक्षा शुरू होने के पांच मिनट बाद ही वह आंसर शीट लेकर बाहर आ गए। बाहर आकर उन्होंने परीक्षकों से सिर्फ इतना कहा, 'मैं गलत पते पर आ गया हूं।' यह सुनकर सब चौंक गए, लेकिन राकेश बेदी के लिए यही पल निर्णायक साबित हुआ। उन्होंने अपने दिल की बात सुनी, जो उन्हें अभिनय की ओर खींच रहा था।

इसी फैसले ने उन्हें पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट (एफटीआईआई) तक पहुंचाया। यहां उन्होंने अभिनय को गहराई से सीखा और थिएटर की दुनिया में कदम रखा। एफटीआईआई के दौरान ही उन्होंने 'लव इन पेरिस, वॉर इन कच्छ' नामक नाटक में शानदार प्रस्तुति दी। इस प्रस्तुति ने दर्शकों में बैठे 'शोले' के निर्माता जे.पी. सिप्पी पर गहरा प्रभाव छोड़ा। सिप्पी ने वहीं खड़े होकर उन्हें अपनी फिल्म 'एहसास' में काम करने का मौका दे दिया। यह उनके लिए किसी कैम्पस प्लेसमेंट से कम नहीं था। यहीं से राकेश बेदी की फिल्मी यात्रा शुरू हुई।

इसके बाद उन्होंने थिएटर, फिल्मों और टीवी, तीनों ही माध्यमों में लगातार काम किया। उनका मशहूर वन-मैन शो 'मसाज' आज भी थिएटर इतिहास में दर्ज है, जिसमें उन्होंने एक ही नाटक में 24 अलग-अलग किरदार निभाए। 150 से ज्यादा फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया, जिनमें 'चश्मे बद्दूर', 'राम तेरी गंगा मैली', 'दिल है कि मानता नहीं', 'गदर', 'उरी' और 'कूली नंबर 1' प्रमुख हैं। दूरदर्शन पर उनका जलवा और भी ज्यादा रहा। 'ये जो है जिंदगी', 'श्रीमान श्रीमती', 'यस बॉस' और बाद में 'भाबीजी घर पर हैं' जैसे सीरियल्स ने उन्हें हर उम्र के दर्शकों का पसंदीदा कलाकार बना दिया।

राकेश बेदी ने अपने करियर में टाइपकास्ट होने की चुनौती भी झेली, लेकिन उन्होंने इसे कभी कमजोरी नहीं माना। उनका कहना है कि उस दौर में फिल्मों में तय टेम्पलेट होते थे, एक हीरो, एक हीरोइन और एक खलनायक। ऐसे में उनके जैसे कलाकारों के लिए कॉमेडी ही सबसे मजबूत रास्ता था और उन्होंने इसे बेहतरीन तरीके से अपनाया। यही कारण है कि आज भी उनके किरदार लोगों की यादों में ताजा हैं।


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