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ऊर्जा विभाग के अधिकारियों पर एमओयू बदलने का आरोप

मध्यप्रदेश विधानसभा में आज कांग्रेस के एक विधायक ने ऊर्जा विभाग के अधिकारियों पर शासन अौर एक कंपनी के बीच बिजली खरीदी के संबंध में हुए एक सहमति पत्र (एमओयू) को बदलने का आरोप लगाया

ऊर्जा विभाग के अधिकारियों पर एमओयू बदलने का आरोप
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भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा में आज कांग्रेस के एक विधायक ने ऊर्जा विभाग के अधिकारियों पर शासन अौर एक कंपनी के बीच बिजली खरीदी के संबंध में हुए एक सहमति पत्र (एमओयू) को बदलने का आरोप लगाया।

प्रश्नकाल के दौरान कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत ने अपने पूरक प्रश्न में सरकार से पूछा कि शासन और एक निजी कंपनी के बीच हुए एमअोयू सोलर प्लेट के लिए थे या सोलर थर्मल के।

इस पर ऊर्जा मंत्री पारस जैन ने इस अनुबंध को थर्मल का हाेना बताया। उन्होंने बताया कि कंपनी से शुरुआत में 15 रुपए प्रति यूनिट की दर पर बिजली खरीदी का अनुबंध था, लेकिन बाद में सरकार ने कम राशि में खरीदी की।

जवाब आने के बाद मूल प्रश्नकर्ता श्री रावत ने कहा कि सरकार ने थर्मल के एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन अधिकारियों ने उसे प्लेट का कर दिया।
उन्होंने दावा किया कि दो उच्चाधिकारियों ने ये एमओयू निरस्त भी करवा दिया था, लेकिन एक अधिकारी विशेष ने साजिश करते हुए इसे बदल दिया, क्योंकि प्लेट में लागत कम है।

उन्होंने इसकी जांच की मांग करते हुए कहा कि उस अधिकारी विशेष ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन दिया है, क्या उसे रोका जाएगा। मंत्री ने अपने जवाब में कहा कि प्रक्रिया नियमानुसार हुई है और विधायक जांच चाहते हैं, तो कोर्ट में चले जाएं।

मंत्री के जवाब से असंतुष्ट प्रश्नकर्ता विधायक इसके बाद विधायकों की एक समिति बनाकर इसकी जांच की मांग पर अड़े रहे। इस बीच उनके और मंत्री श्री जैन के बीच नोक-झाेंक भी हुई, लेकिन मंत्री ने जांच से इंकार करते हुए कहा कि मामला लोकायुक्त में है और वहीं से सब स्पष्ट हो जाएगा।

प्रश्नकाल के ही दौरान भारतीय जनता पार्टी विधायक मुकेश सिंह चतुर्वेदी ने सरकार से बिजली खरीदी अनुबंध में खरीदी नहीं होने के दौरान भी कंपनी को भुगतान के प्रावधान के बारे में जानकारी चाही।

पूरक प्रश्न का जवाब देते हुए मंत्री श्री जैन ने कहा कि नियमित टेरिफ पर एक निश्चित शुल्क देना ही पड़ता है। मंत्री के जवाब से असंतोष जाहिर करते हुए प्रश्नकर्ता विधायक ने कहा कि ऐसा त्रुटिपूर्ण अनुबंध क्यों किया गया।

अपने जवाब में जैन ने कहा कि ये नियामक आयोग के नियम हैं। इस पर विधायक ने इसके 25 साल के होने पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि ऐसा अनुबंध सिर्फ 10 साल के लिए क्यों नहीं किया गया, जिस पर मंत्री ने कहा कि उस समय बिजली खरीदी की जरुरत थी, परिस्थिति के हिसाब से अनुबंध किया गया।


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