वोट बैंक के लिए अतिक्रमण को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए : हाईकोर्ट
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने हल्द्वानी में रेलवे की भूमि पर से अतिक्रमण हटाने के मामले अहम टिप्पणी करते हुए राजनीतिक दलों व रेलवे को भी अपने कर्तव्यों के लिये आईना दिखाते हुए कहा है कि वोट बैंक के लिये सरकारी भूमि पर अतिक्रमण को बढ़ावा देने की राजनीति बंद होनी चाहिए

नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने हल्द्वानी में रेलवे की भूमि पर से अतिक्रमण हटाने के मामले अहम टिप्पणी करते हुए राजनीतिक दलों व रेलवे को भी अपने कर्तव्यों के लिये आईना दिखाते हुए कहा है कि वोट बैंक के लिये सरकारी भूमि पर अतिक्रमण को बढ़ावा देने की राजनीति बंद होनी चाहिए।
हल्द्वानी निवासी रविशंकर जोशी की ओर से दायर जनहित याचिका पर न्यायमूर्ति शरत कुमार शर्मा व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की युगलपीठ ने तीन दिन पहले मंगलवार को महत्वपूर्ण आदेश जारी किया था। 176 पेज के आदेश में अदालत ने बेहद अहम टिप्पणी भी की है।
अदालत ने प्रदेश के गृह सचिव, पुलिस महानिरीक्षक, रेलवे पुलिस बल के मुखिया, जिलाधिकारी नैनीताल, पुलिस कप्तान नैनीताल और सभी मातहतों को निर्देश दिया कि एक हफ्ते में नोटिस जारी कर रेलवे की भूमि पर से अतिक्रमण हटायें। अदालत ने जरूरत पड़ने पर आवश्यक बल प्रयोग करने को भी कहा है।
अदालत ने इस कार्य के लिये अर्द्ध सैनिक बलों की मदद लेेने को कहा है। साथ ही रेलवे व प्रशासन को अनुपालन रिपोर्ट अदालत में पेश करने के निर्देश भी दिये। अदालत ने अपने आदेश में कई अहम बिन्दु भी उठाये और कहा कि सरकारी भूमि पर हरगिज अतिक्रमण नहीं होना चाहिए। ऐसी भूमि का उपयोग जनहित में किया जाना चाहिए। अदालत ने राजनीतिक दलों को भी पाठ पढ़ाते हुए टिप्पणी की कि वोट बैंक के लिये अतिक्रमण को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। साथ ही अदालत ने उम्मीद जताई कि भविष्य में ऐसे अतिक्रमण नहीं होंगे।
अदालत ने इस पूरे प्रकरण में रेलवे की भूमिका पर भी सवाल उठाये हैं और कहा कि रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 147 अतिक्रमण के मामले में काफी सक्षम है और उसका पालन कर अतिक्रमण के खिलाफ कार्यवाही अमल में लायी जानी चाहिए थी। अदालत ने रेलवे के दोषी अधिकारियों के खिलाफ भी कार्यवाही करने बात कही है।
अदालत ने अपने आदेश में अल्फ्रेड लार्ड टेनिसन की कविता का उल्लेख करते हुए कहा कि पुरानी चली आ रही व्यवस्था को भी नये जमाने की उपयोगिता के अनुसार बदलना होगा। जनहित के लिये सभी को अपनी सोच बदलनी होगी। अदालत ने सभी विभागों व अधिकारियों इस कार्य के लिये सांमजस्य के साथ काम करने को कहा है।
उल्लेखनीय कि हल्द्वानी के गौलापार निवासी रविशंकर जोशी ने 29 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण के मामले को एक जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी है। रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण का मामला पहली बार सन् 2013 में उस समय चर्चा में आया जब अवैध खनन के चलते गौला नदी पर बना पुल गिर गया था।
रविशंकर जोशी की ओर से इस मामले को चुनौती दी गयी। अदालत की ओर से नियुक्त न्यायमित्र अधिवक्ता (कोर्ट कमिश्नर) ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि गौला नदी में खनन रेलवे की भूमि पर अवैध रूप से काबिज लोग कर रहे हैं। इसके साथ ही अदालत ने 9 नवम्बर 2016 को आदेश जारी कर 10 हफ्ते में अतिक्रमण हटाने के निर्देश जारी कर दिये।
इसी बीच कांग्रेस सरकार आगे आयी और उसने अतिक्रमणकारियों के पक्ष में समीक्षा याचिका (रिव्यू पीटिशन) दायर कर दीं। सरकान ने कहा कि अतिक्रमित क्षेत्र नजूल भूमि है और उस पर रेलवे का अधिकार नहीं है। अदालत ने जनवरी 2017 समीक्षा याचिका भी खारिज कर दी। इसके बाद राज्य सरकार व अतिक्रमणकारी उच्चतम न्यायालय पहुंच गये।
उच्चतम न्यायालय ने अतिक्रमणकारियों को कोई राहत नहीं दी लेकिन तीन महीने का समय देते हुए उच्च न्यायालय के समक्ष अपना दावा प्रस्तुत करने को कहा। इसके बाद अदालत ने रेलवे का आदेश जारी किया कि पीपी एक्ट का पालन करते हुए अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्यवाही करें। यहां से मामला फिर लटक गया।
इसके बाद याचिकाकर्ता की ओर से रेलवे के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की गयी। फिर यहां से यह मामला जिंदा हुआ। याचिकाकर्ता ने अदालत के निर्देश पर जिन जनवरी 2022 में पुनः एक नयी जनहित याचिका दायर की। इस दौरान रेलवे ने अदालत को बताया कि 4365 परिवारों को सुनवाई को मौका दिया है। किसी के पास भी वैध दस्तावेज नहीं हैं।
इसी बीच कुछ अतिक्रमणकारी अदालत पहुंच गये और कहा कि रेलवे ने उनको सुनवाई का मौका नहीं दिया। अंत में अदालत ने सभी अतिक्रमणकारियों को सुनवाई का मौका दिया और कहा कि अपना दावा अदातल में प्रस्तुत करें लेकिन 10 प्रार्थना पत्रों के माध्यम से अधिकतम तीन दर्जन अतिक्रमणकारी अदालत पहंुचे। अदालत ने सुबूतों के अभाव में सभी प्रार्थना पत्र खारिज कर दिये।


