आदिवासियों की विरासत को अधिक समृद्ध बनाने पर जोर
आदिवासियों की सांझी विरासत को और अधिक समृद्ध बनाने के उपायों पर विचार के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी मंगलवार से प्रारंभ हुई
गौरेला। आदिवासियों की सांझी विरासत को और अधिक समृद्ध बनाने के उपायों पर विचार के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी मंगलवार से प्रारंभ हुई।
इस अवसर पर इतिहासकारों ने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में आदिवासियों के विकास की अवधारण को समझने और उनकी जरूरतों के मुताबिक विकासात्मक योजनाओं को तैयार करने पर जोर दिया। कुलपति प्रो. टी.वी.कट्टीमनी ने भारत के महत्वपूर्ण आंदोलनों में आदिवासियों के प्रमुख योगदान का जिक्र करते हुए इसे भारतीय इतिहास में सही स्थान दिलाने पर जोर दिया। पं. शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय, शहडोल के कुलपति प्रो. मुकेश तिवारी ने कहा कि आर्यों के भारतीय होने की बहस बेमानी है क्योंकि वे अपने साथ कोई विरासत लेकर नहीं आए और भारत के होकर रह गए।
उन्होंने कहा कि आदिवासी भले ही आर्थिक संसाधनों में पिछड़े हो मगर सांस्कृतिक मूल्यों में वे समाज के किसी भी भाग से पीछे नहीं हैं। सागर विश्वविद्यालय के प्रो. श्रीकमल शर्मा ने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में आदिवासियों के विकास को परखने पर जोर दिया। उनका कहना था किअब आदिवासियों की संस्कृति को अक्षुण्ण रखने और उन्हें मुख्य धारा में लाने पर जोर दिया जा रहा है जबकि जरूरत उन्हें नई तकनीक के साथ जोड़कर उनकी संस्कृति कोआम लोगों तक पहुंचाने की है। प्रो. आलोक श्रोत्रिय ने आदिवासियों के अतीत को वर्तमान के साथ जोड़कर विकास करने का मुद्दा रखा।
विभागाध्यक्ष डॉ. राकेश सिंह ने आदिवासियों के पिछड़ेपन को ब्रिटिशकाल और उससे पूर्व से चली आर ही विसंगतियों के परिप्रेक्ष्य में परखने को कहा। संगोष्ठी के संयोजक डॉ. हरित कुमार मीना ने संगोष्ठी के आयोजन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। धन्यवाद डॉ. सुनीता मिंज ने दिया और संचालन डॉ. संतोष सोनकर ने किया। इससे पूर्व प्रो. कट्टीमनी ने आदिवासियों पर आधारित पुस्तकों को विमोचन किया।


