सर्कस में हाथियों के करतब दिखाई नहीं देंगे
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से देश भर के सभी 23 सर्कसों में हाथियों के रखने की मान्यता रद्द कर दिये जाने के बाद अब इनके द्वारा दिखाये जाने वाले करतब बीते जमाने की बात हो गयी है।

नयी दिल्ली। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से देश भर के सभी 23 सर्कसों में हाथियों के रखने की मान्यता रद्द कर दिये जाने के बाद अब इनके द्वारा दिखाये जाने वाले करतब बीते जमाने की बात हो गयी है।
केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत नियमों का उल्लंघन और अत्यधिक क्रूरता करने के मद्देनजर सभी सर्कसों में हाथी रखने की मान्यता हाल रद्द कर दी है। प्राधिकरण की टीम ने पशु अधिकार समूहों, पशु चिकित्सकों की सहायता से अपने नवीनतम मूल्यांकन में हाथियों के खिलाफ क्रूरता और दुरुपयोग का पर्याप्त प्रमाण पाया है।
भारतीय हाथी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची एक के तहत सूचीबद्ध है। प्राधिकरण के सदस्य सचिव डी एन सिंह ने यूनीवार्ता को बताया कि हाथियों को रखने के लिए जो नियम-कायदे बनाये गये थे उस पर कोई भी सर्कस खरा नहीं उतरा। प्राधिकरण की ओर से सर्कस के मालिकों द्वारा हाथियों के रख-रखाव में की जारी मनमानी और लापरवाही के बारे में समय-समय पर सचेत किया गया। प्राधिकरण के अधिकारियों ने सर्कसों का निरीक्षण भी किया और मालिकों को इसमें सुधार को लेकर तमाम हिदायतें भी दीं लेकिन उनकी कार्य प्रणाली में कोई सुधार नहीं आया।
सिंह ने बताया कि लंबी जांच के बाद हाथियों के रखने की मान्यता रद्द करने की प्रक्रिया शुरू की गयी थी। सर्कस में हाथियों के साथ ठीक व्यवहार नहीं किया जा रहा था। उन्हें ठीक से नहीं रखा जा रहा था। निरीक्षण के दौरान सर्कस नियमों की अवहेलना करते पाए गए। हाथियों को न तो भर पेट भोजन मिलता था और न ही उन्हें सुबह नियमित रुप से टहलाया जाता था।
कई जगह हाथियों के पैर लोहे की चैन से आपस में बंधे हुए मिले। साथ ही उनकी नियमित जांच व बीमार होने पर इलाज का रिकॉर्ड भी नहीं मिला। इसलिए हाथी रखने की मान्यता रद्द कर दी गयी। इससे पहले सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 1998 में सभी सर्कसों से अन्य जानवरों भालू, बंदर, शेर, तेंदुआ और बाघों को हटाने के लिए अधिसूचना जारी किया था।
इस अधिसूचना के बाद प्राधिकरण ने 1999-2001 के दौरान अलग-अलग राज्यों के सर्कसों से 375 बाघों, 96 शेरों, 21 तेंदुओं, 37 भालूओं तथा 20 बंदरों को निकाला। इन जानवरों के लिए सात केंद्र की स्थापना की गयी जिसमें इनके जीवन भर देखभाल करने की व्यवस्था की गयी।
ये केंद्र जयपुर, भोपाल, चेन्नई, विशाखापट्टनम, तिरुपति, बेंगलुरु और साउथ खैराबाड़ी बनाये गये। वर्तमान में इन राहत केंद्रों में 51 शेर और 12 बाघ बचे हैं। श्री सिंह ने कहा कि इन जानवरों को किसी चिड़ियाघर में नहीं रखने की सबसे बड़ी वजह ये संकरित (हाइब्रिड) थे तथा इनके प्राकृतिक स्वभाव भी काफी अलग थे।


