कर्नाटक में चुनाव
पूर्वोत्तर के चुनाव के बाद अब दक्षिण के कर्नाटक में चुनाव की घोषणा हो चुकी है

पूर्वोत्तर के चुनाव के बाद अब दक्षिण के कर्नाटक में चुनाव की घोषणा हो चुकी है। बुधवार को चुनाव आयोग ने प्रेस कांफ्रेंस में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा करते हुए बताया कि राज्य में 10 मई को मतदान होगा और 13 मई को नतीजे आएंगे। यानी एक ही चरण में सभी 224 सीटों पर मतदान हो जाएगा और तीन दिनों के भीतर मतगणना पूरी होकर नतीजे भी आ जाएंगे। वैसे तो ईवीएम के कारण चुनाव प्रक्रिया आसान हो गई है, लेकिन फिर भी 70-80 सीटों वाले प्रांतों में मतदान और मतगणना के बीच कई दिनों का अंतर चुनाव आयोग पहले रखते आया है या फिर कई चरणों में चुनाव होते हैं।
ऐसे में खुशी की बात है कि कर्नाटक जैसे बड़े राज्य में एक ही चरण में चुनाव होंगे और नतीजे भी जल्दी आ जाएंगे। चुनाव आयोग ने दावा किया है कि चुनाव में धनबल का इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा। सभी संबंधित एजेंसियों को इसके लिए कार्रवाई का आदेश दिया गया है। चप्पे चप्पे पर एजेंसियां निगरानी करेंगी। पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव के लिए यह जरूरी भी है कि चुनाव हर तरह के दबाव यानी धनबल, बाहुबल और सत्ताबल से बचे रहें। लेकिन चुनाव आयोग जैसी स्वतंत्र, संवैधानिक संस्था को इस बात का आश्वासन देना पड़े, ऐसी नौबत क्यों आई, ये विचारणीय है।
कर्नाटक चुनाव भारत जोड़ो आंदोलन के बाद देश में बदलती राजनीति, अडानी मुद्दे पर घिरी भाजपा और कांग्रेस के बढ़ते प्रभाव की पृष्ठभूमि में हो रहे हैं। राहुल गांधी की सांसदी जाने के बाद विपक्षी दलों में एकता भी बढ़ रही है। इसलिए कर्नाटक चुनाव के नतीजे राज्य में ही नहीं, देश की राजनीति पर प्रभाव डालने वाले साबित होंगे। चुनाव का ऐलान होते ही भाजपा ने जीत का दावा किया है। भाजपा प्रवक्ता केके शर्मा ने कहा है कि हम रिवाज बदलेंगे और दोबारा सरकार बनाएंगे। यह समझना कठिन है कि भाजपा का अतिआत्मविश्वास है या व्यवस्थागत विश्वास की, वह चुनाव घोषणा के साथ ही जीत का दावा कर रही है। अब तक कांग्रेस ने 124 और जेडीएस ने 93 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की है। भाजपा का मुकाबला मुख्य रूप से इन्हीं दो दलों से है। अभी भाजपा के उम्मीदवारों की कोई सूची नहीं आई है, लेकिन उससे पहले ही बहुमत का ऐलान चौंकाता है। भाजपा ने देश की राजनीति में यह नया रिवाज तो बना ही दिया है कि चुनावों में जीत मिले या न मिले, सत्ता किसी न किसी तरह उसके पास आ ही जाती है। कर्नाटक भी इस रिवाज का साक्षी बना है।
2018 के चुनावों में कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई थी। जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन 14 महीने बाद ही इस गठबंधन सरकार को गिरा कर बीएस येदियुरप्पा ने कांग्रेस के बागी विधायकों की मदद से भाजपा की सरकार बनाई थी। हालांकि वे खुद दो साल ही इस पद पर रहे। श्री येदियुरप्पा को हटाकर बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन बोम्मई सरकार में भाजपा कई बड़े विवादों में उलझी। राज्य में हिजाब का मुद्दा उठा, जो अब तक आखिरी फैसले की बाट जोह रहा है।
धार्मिक, सांप्रदायिक तनाव बोम्मई सरकार में कई बार कायम हुए। आरक्षण के मुद्दे पर राजनीति गर्म रही और भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप बोम्मई सरकार पर लगे। भाजपा के एक विधायक को हाल ही में भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया गया है। उनके घर से करीब 8 करोड़ नकद बरामद की गई थी। एक ठेकेदार की खुदकुशी के बाद कर्नाटक सरकार के एक मंत्री को इस्तीफा तक देना पड़ा था। कांग्रेस ने तो बाकायदा पेसीएम जैसा अभियान चलाकर भाजपा को भ्रष्टाचार के मसले पर घेरा है। चुनावों में भी अब भाजपा के खिलाफ भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बनेगा, यह तय है। शायद इसी वजह से भाजपा ने अपने बचाव की तैयारी शुरु कर दी है और विपक्षियों पर उंगली उठाने का सिलसिला शुरु हो गया है।
कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डी के शिवकुमार के एक वीडियो को लेकर भाजपा ने निशाना साधा है, जिसमें वे बस की छत से 5 सौ रूपए के नोट उड़ाते नजर आ रहे हैं। लेकिन असल बात ये है कि कांग्रेस द्वारा आयोजित प्रजा ध्वनि यात्रा में मांड्या जिले के पास बेवनाहल्ली में डी के शिवकुमार ने यात्रा के साथ चल रहे, ढोल-नगाड़े बजाते कलाकारों को 5-5 सौ रूपए के नोट दिए। चूंकि नोट बस की छत से दिए गए, तो उसे नोट उड़ाना कहा गया। लेकिन खास बात ये है कि डी के शिवकुमार ने केवल एक बार ऊपर से नोट दिए। जबकि नोट उड़ाने का मतलब होता कि शिवकुमार चलते-चलते बार-बार हवा में नोटों को उछालते। हिंदुस्तान के कई आयोजनों में ऐसे दृश्य देख चुकी जनता भी समझती है कि नोट देने और उड़ाने में क्या फर्क है। बहरहाल, कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के बाद भी भाजपा अपने ऊपर आई जवाबदेही से बच नहीं सकती है।
भ्रष्टाचार के अलावा सत्तारुढ़ भाजपा के सामने आरक्षण का मसला भी एक बड़ी चुनौती है। पिछले हफ्ते बोम्मई सरकार ने नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण के लिए दो नई श्रेणियों की घोषणा की। सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग मुसलमानों के लिए आरक्षित 4 प्रतिशत कोटा भी खत्म कर दिया। वो 4 प्रतिशत आरक्षण अब वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों के बीच समान रूप से बांटा गया है, जिसके जरिए भाजपा इन दो समुदायों को साधने की कोशिश करेगी। भाजपा ने अनुसूचित जाति श्रेणी के तहत विभिन्न दलित समुदायों के लिए आंतरिक आरक्षण शुरू करने के लिए चार उप-श्रेणियां भी बनाई हैं। माना जा रहा है कि मुसलमानों के लिए निर्धारित आरक्षण संबंधी लाभ को वापस लेने के लिए कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की ओर से कोई सिफारिश नहीं की गई है। भाजपा ने 1995 में मुसलमानों के लिए आरक्षण की शुरुआत को अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का उदाहरण बताया है। चुनाव से पहले आरक्षण नीति में यह बदलाव जाति और धर्म के आधार पर वोट बटोरने की रणनीति को दर्शा रहा है।
लेकिन भाजपा इसके सामाजिक असर को शायद भांप नहीं पाई, क्योंकि अब इस के खिलाफ आवाज उठनी शुरु हो गई है। अनुसूचित जाति में बंजारा समुदाय के लोगों के लिए आरक्षण कम करने के आरोप में अभी पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा के घर पर पथराव किया गया। कांग्रेस को इसमें येदियुरप्पा के खिलाफ भाजपा की साजिश नजर आ रही है, क्योंकि मुख्यमंत्री की जगह प्रदर्शनकारियों ने अपना गुस्सा उनके घर निकाला। लेकिन बोम्मई सरकार इसे कांग्रेस की साजिश बता रही है।
कुल मिलाकर कर्नाटक में चुनाव के पहले ही सियासी हलचल काफी तेज है और अगले दो महीनों में यहां की राजनीति किस ओर करवट लेती है, ये देखना होगा।


