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आठ साल बाद भी 20 लाख की बर्न यूनिट का लाभ नहीं

जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी का तोड़ विभाग को नहीं मिल पा रहा

आठ साल बाद भी 20 लाख की बर्न यूनिट का लाभ नहीं
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स्वास्थ्य सुविधाओं में जिला की हो रही उपेक्षा
जांजगीर। जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी का तोड़ विभाग को नहीं मिल पा रहा। परेशान मरीज निजी अथवा बाहरी जिलों पर निर्भरता छुटने का नाम नहीं ले रहा। बरसों पूर्व चांपा में करीब 20 लाख की लागत से निर्मित बर्न युनिट विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी के चलते अनुपयोगी साबित हो रहा है।

इसी तरह जिला चिकित्सालय में भी डॉक्टरों व संसाधन की कमी के चलते मरीजों को बाहर जाने मजबूर होना पड़ रहा है। ऐसे में 16 लाख की अधिक आबादी वाले इस जिले में स्वास्थ्य सुविधा का विस्तार कब होगा यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है। बजट में जांच सुविधा नि:शुल्क किये जाने की घोषणा का भी लाभ जिले वासियों को इसलिए नहीं मिल पायेगा, क्योंकि यहां के सरकारी अस्पतालों में जटिल जांच की सुविधा है ही नहीं।

चांपा नगर में स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर अग्रिदग्धा से पीड़ित मरीजों के लिए बिसाहूदास महंत चिकित्सालय में बर्न यूनिट की स्थापना के लिए सांसद निधी से करीब आठ वर्ष पूर्व 20 लाख रूपए की स्वीकृति मिली थी। जिस पर लोक निर्माण विभाग द्वारा बर्न यूनिट का निर्माण कराया गया था। यह यूनिट के लोकार्पण के समय से ही ग्रहण का शिकार हुआ, जिसका लाभ मरीजों को आज तक नहीं मिल सका है।

लोकार्पण समारोह के दिन ही तत्कालीन उपराष्ट्रपति के निधन के खबर मिली थी और समारोह औपचारिक बनकर रह गया था। तब से लेकर आज तक इस यूनिट के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर व तकनीकी टीम अस्पताल को मुहैया नहीं कराया जा सका है। यह भवन पूरी तरह एसीयुक्त है। भवन का लोकार्पण करने प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सहित अन्य अतिथियों ने शिरकत की थी। कार्यक्रम प्रारंभ ही हुआ था कि पूर्व उपराष्ट्रपति भैरव सिंह शेखावत के निधन की खबर आ गई।

इस वजह से कार्यक्रम को बीच में ही रोकना पड़ गया। इस कार्यक्रम में स्वास्थ्य मंत्री को इसी मंशा के साथ आमंत्रित किया गया था कि वो इस मंच से बर्न यूनिट की मंजूरी दें, ताकि नवनिर्मित भवन का सदुपयोग हो सके। लेकिन नियति को शायद यह मंजूर नहीं था। तब से यह भवन केवल शोभा की वस्तु बनकर रह गया है। गुटबाजी हावी होने के कारण किसी भी कांग्रेस या भाजपा के नेता ने इस भवन में बर्न यूनिट स्वीकृत कराने प्रयास नहीं किया।

नतीजतन, बीस लाख का भवन व्यर्थ साबित हो रहा है। इधर, हर साल जले मरीजों के दर्जनों मामलों को यहां से रेफर कर दिया जाता है। ऐसे मरीजों के उपचार की व्यवस्था बिलासपुर या रायपुर में है, लेकिन वहां पहुंचते कई मरीजों की जान चली जाती है। इसके बावजूद इस ओर ध्यान देने वाला कोई नहीं है।

जिला चिकित्सालय के ब्लड बैंक में भी स्टाफ की कमी
जिला चिकित्सालय जांजगीर में भारी मशक्कत व बरसों की मांग पर ब्लड यूनिट की स्थापना की गई है। मगर यहां भी संसाधन व स्टाफ की कमी के चलते आयेदिन लोगों को भटकना पड़ता है। यहां रखे डीप फ्रीजर में आई खराबी व विशेषज्ञों की कमी के चलते अक्सर रक्तदान का कार्यक्रम विस्तारित नहीं हो पाता, वहीं समय पर मरीजों को संबंधित समूह का रक्त पाने में भी मशक्कत करनी पड़ती है।


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