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गाजियाबाद में शिक्षा से खिलवाड़

लाखों रुपये वेतन लेने वाले उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक छात्रों को चार में दो का भाग देना भी नहीं सिखा पा रहे हैं

गाजियाबाद में शिक्षा से खिलवाड़
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गाजियाबाद। लाखों रुपये वेतन लेने वाले उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक छात्रों को चार में दो का भाग देना भी नहीं सिखा पा रहे हैं। यही नहीं स्कूल में पढ़ाने वाली शिक्षिकाओं को यह भी नहीं पता है कि लासा यानि लघुत्तम समापवर्तक क्या है। यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) विनय कुमार की औचक निरीक्षण रिपोर्ट कह रही है। उन्होंने नगरीय क्षेत्र के कई स्कूलों का औचक निरीक्षण किया। स्कूलों में पंजीकृत छात्रों की उपस्थिति संख्या आधे से भी कम होने पर स्कूलों से स्पष्टीकरण मांगा है। बुधवार को बीएसए ने दुहाई के उच्च प्राथमिक विद्यालय में निरीक्षण किया।

स्कूल में 51 बच्चे पंजीकृत हैं, जबकि मात्र 17 बच्चे उपस्थित थे। कक्षा छह से आठ तक कई बच्चों से बीएसए ने 4 में 2 का भाग नहीं दे पाए, जबकि 0.5 और 1/2 में कौन सी संख्या बड़ी होने के बारे में पूछने पर कई छात्रों ने बताया कि 0.5 बड़ा बताया। वहीं प्राथमिक विद्यालय में कई छात्र ऐसे थे जो अंग्रेजी तो दूर की बात हिंदी भी नहीं पढ़ पाए। स्कूल में दो शिक्षिकाएं मौजूद नहीं थीं, हालांकि निरीक्षण के दौरान ही प्राधानाध्यापिका सोनिया स्कूल में पहुंच गई और उन्होंने बताया कि स्कूल के काम से बैंक में गई थीं, जिस पर बीएसए ने कहा कि कार्य दिवस में स्कूल से बाहर जाने के बारे रजिस्टर में लिखकर जाना चाहिए था।

पंजीकृत 85 बच्चों में 55 बच्चे अनुपस्थित होने पर स्पष्टीकरण मांगा गया। बीएसए ने स्कूल में सौंदर्यीकरण कराने का भी निर्देश दिया। उखलारसी प्रथम विद्यालय में 183 छात्रों में मात्र 114 बच्चे उपस्थित पाए गए। इस स्कूल में शिक्षकों एवं प्रधानाध्यापक में तालमेल नहीं पाया गया। एक शिक्षिका नीतू का अटैचमेंट समाप्त कर उन्हें मूल स्कूल में भेजा गया। इस स्कूल में शिक्षिका को भी नहीं पता था कि लघुत्तम समापवर्तक क्या होता है।

बीएसए ने तीन अलग-अलग स्कूलों में क्लास लेकर बच्चों को पढ़ाया और शिक्षकों को शैक्षिक गुणवत्ता सुधार के निर्देश दिए। यह स्थिति तब है जब प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में शैक्षिक स्तर में सुधार करने के लिए छात्रों को पढ़ाई से लेकर कॉपी-किताब, ड्रेस और जूता-मोजा और बैग निशुल्क दिया जा रहा है। इसके बावजूद शिक्षा गुणवत्ता में सुधार की गुंजाइश नहीं दिखाई दे रही है।


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