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नरेंद्र मोदी सरकार अमीरों पर सुपर टैक्स लगाने के मुद्दे पर चुप क्यों

नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के दूसरे बजट को संसद में पेश किये जाने में दो महीने से भी कम समय बचे हैं

नरेंद्र मोदी सरकार अमीरों पर सुपर टैक्स लगाने के मुद्दे पर चुप क्यों
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- नित्य चक्रवर्ती

भारत अब राजनीतिक रूप से स्थिर है और दुनिया के अन्य देशों की तुलना में विकास दर आरामदायक है। लेकिन असली समस्या असमानता का बढ़ना और भारी बेरोजगारी है। मोदी सरकार का बेरोजगारी पैदा करने वाला विकास मॉडल अपने तीसरे कार्यकाल में भी जारी है। मोदी सरकार के पास इस बार 2025-26 के बजट प्रस्तावों में सुपर अमीरों पर कर लगाकर भारी संसाधन जुटाने और उन अतिरिक्त निधियों को रोजगार सृजन और वंचितों की आय में सुधार के लिए सुनियोजित करने का एक बड़ा अवसर है।

नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के दूसरे बजट को संसद में पेश किये जाने में दो महीने से भी कम समय बचे हैं। वित्त वर्ष 2025-26 के इस केन्द्रीय बजट को अगले साल फरवरी में संसद में पेश किया जाना है। वित्त मंत्रालय में बजट की कवायद जारी है और विकास व्यय को पूरा करने के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था की दो प्रमुख चुनौतियों में बड़े पैमाने पर नौकरियों का सृजन और निचले स्तर के लोगों की आय में सुधार शामिल है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे बेरोजगारों, खासकर महिलाओं और शिक्षित युवाओं के लिये नयी नौकरियों के सृजन के कार्यक्रमों के वित्तपोषण के लिए सुपर अमीरों से अतिरिक्त संसाधन जुटायें।

मुकेश अंबानी परिवार और कुछ अन्य व्यवसायियों और फिल्मी सितारों के परिवारों में हाल ही में हुई शादी की धूमधाम ने दिखाया है कि एक सुपर अमीर व्यक्ति अपने बेटे या बेटी की शादी के लिए किस हद तक धन खर्च कर सकता है। भारत में सुपर अमीरों का एक ट्रिलियन डॉलर का विवाह उद्योग है। इनमें उद्योगपति, खिलाड़ी, फिल्मी हस्तियां और उच्च पदस्थ राजनेता शामिल हैं। उनकी शादी के खर्चों की जांच की जानी चाहिए और एक सीमा से अधिक कर लगाया जाना चाहिए।
एक अनुमान के अनुसार, भारत में 170 से अधिक डॉलर-अरबपति हैं और यह संख्या तेजी से बढ़ रही है। दो प्रतिशत कर से 1.5 लाख करोड़ रुपये मिलेंगे। यह राशि श्रम प्रधान परियोजनाओं में रोजगार सृजन सहित विकास कार्यकज्ञ््रमों पर खर्च की जा सकती है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ प्रणब बर्धन द्वारा किये गये विश्लेषण के अनुसार, सरकार द्वारा संपन्न लोगों को दी जाने वाली प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सब्सिडी को कम करके अतिरिक्त संसाधन उत्पन्न किये जा सकते हैं।

भारत में, विरासत और संपत्ति कर शून्य है और पूंजीगत लाभ कर संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में बहुत कम है। कर प्रणाली अभी भी अमीरों के पक्ष में झुकी हुई है। उदाहरण के लिए, महामारी के संदर्भ में मोदी सरकार ने एक ही झटके में कॉर्पोरेट टैक्स की दर कम कर दी और सरकारी खजाने को 18.4 खरब रुपये का नुकसान हुआ। डॉ. बर्धन का अनुमान है कि 10 खरब रुपये के फंड से भारत में 200 लाख नौकरियां पैदा की जा सकती हैं।

भारत के लिए, सुपर रिच पर विशेष कर लगाना बहुत समय से लंबित है। इस साल जनवरी में जारी नवीनतम ऑक्सफैम रिपोर्ट सहित सभी हालिया रपटों से पता चलता है कि असमानता लगातार बढ़ रही है। महामारी और महामारी के बाद के वर्षों में, बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के गरीब लोगों की जीवन स्थिति दयनीय है, जबकि उच्च मध्यम वर्ग और अमीरों की आय में वृद्धि हुई है। असमानता के बढ़ने का भारत में विशेष प्रभाव पड़ता है क्योंकि आम नागरिकों को पश्चिम और लैटिन अमेरिका के कई अन्य देशों और अन्य विकासशील देशों की तरह सामाजिक सुरक्षा उपायों के माध्यम से संरक्षित नहीं किया जाता है।

ऑक्सफैम रिपोर्ट के अनुसार, भारत केवल पांच हाथों में बढ़ते औद्योगिक संकेन्द्रण का सामना कर रहा है, और अरबपतियों, निजी इक्विटी फंडों और मित्र पूंजीपतियों को समृद्ध कर रहा है, जिससे लोगों के बीच असमानता और गरीबी का अभूतपूर्व स्तर बढ़ रहा है। दलितों को निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में उच्च और असहनीय आउट-ऑफ-पॉकेट शुल्क का सामना करना पड़ रहा है। निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में वित्तीय बहिष्कार और दोनों में खुला भेदभाव।

कई वर्षों से ऑक्सफैम ने बढ़ती और अत्यधिक असमानता के बारे में चिंता जतायी है। 2024 में, सबसे बड़ा खतरा यह है कि ये असाधारण चरम सीमाएं नयी सामान्य स्थिति बन जायेंगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि कॉर्पोरेट और एकाधिकार शक्ति एक निरंतर असमानता पैदा करने वाली मशीन है, साथ ही यह भ ी कहा गया है कि हम एक दशक के विभाजन की शुरुआत के दौर से गुजऱ रहे हैं: सिर्फ तीन वर्षों में, हमने एक वैश्विक महामारी, युद्ध, जीवन-यापन की लागत का संकट और जलवायु परिवर्तन का अनुभव किया है। प्रत्येक संकट ने खाई को चौड़ा किया है - अमीरों और गऱीबी में रहने वाले लोगों के बीच ही नहीं, बल्कि कुलीनतंत्र और विशाल बहुमत के बीच भी।
सुपर रिच पर कर लगाने के बारे में जी-20 शिखर सम्मेलन की ऐतिहासिक घोषणा निष्पक्ष, पारदर्शी और प्रगतिशील कराधान की वैश्विक खोज में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। कर सहयोग पर एक नया संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन नियम आधारित प्रणाली को तैयार करने के लिए आयोजित किया जा रहा है जो विकासशील देशों, विशेष रूप से अफ्रीकी देशों के लिए बहुत फ़ायदेमंद होगा। ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा के नेतृत्व में जी-20 की अध्यक्षता की मजबूत स्थिति ने नवंबर के शिखर सम्मेलन में अमीर देशों को समावेशी विकास को बढ़ावा देने और अफ्रीकी देशों को अधिक संसाधनों के हस्तांतरण के लिए प्रभावी रूप से प्रतिबद्ध होने के लिए मजबूर किया।

नवंबर शिखर सम्मेलन में, जी-20 राष्ट्रों ने यह सुनिश्चित करने के लिए सहयोग करने पर सहमति व्यक्त की कि सुपर-रिच पर कर लगाया जाये। जी-7 ने भी कम से कम इस बात पर सहमति व्यक्त की कि सुपर-रिच पर कम कर लगाना एक समस्या है जिसे ठीक किया जाना चाहिए। यूनाईटेड किंगडम सरकार ने एक बजट पेश किया जिसमें करोड़पतियों और निगमों पर उचित कर लगाना शामिल है, और फ्रांस की रूढ़िवादी सरकार ने शीर्ष पर बैठे लोगों के लिए योगदान करने की आवश्यकता पर सहमति व्यक्त की। संयुक्त राज्य अमेरिका में, राष्ट्रपति चुने गए डोनाल्ड ट्रम्प सुपर रिच पर कर लगाने के पक्ष में नहीं हैं, बल्कि वे वास्तव में अपनी मेगा (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) नीति के एक हिस्से के रूप में कर कटौती की वकालत कर रहे हैं। लेकिन आर्थिक और राजनीतिक संकट से जूझ रहा जर्मनी अगले साल की शुरुआत में राष्ट्रीय चुनावों के बाद नये गठबंधन के सत्ता में आने के बाद इस मुद्दे पर फैसला ले सकता है।

भारत अब राजनीतिक रूप से स्थिर है और दुनिया के अन्य देशों की तुलना में विकास दर आरामदायक है। लेकिन असली समस्या असमानता का बढ़ना और भारी बेरोजगारी है। मोदी सरकार का बेरोजगारी पैदा करने वाला विकास मॉडल अपने तीसरे कार्यकाल में भी जारी है। मोदी सरकार के पास इस बार 2025-26 के बजट प्रस्तावों में सुपर अमीरों पर कर लगाकर भारी संसाधन जुटाने और उन अतिरिक्त निधियों को रोजगार सृजन और वंचितों की आय में सुधार के लिए सुनियोजित करने का एक बड़ा अवसर है। 2025-26 के बजट में इस कर को लागू करने की मांग में इंडिया ब्लॉक पार्टियों को भी समान रूप से मुखर होना चाहिए। एक बार में भारी मात्रा में अतिरिक्त संसाधन जुटाने का यही एकमात्र तरीका है।


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