मोहित के घर दिया कौन जलाएगा
सारे देश की दीपावली एक तरफ और अयोध्या की दीपावली एक तरफ

- सर्वमित्रा सुरजन
अन्याय और शोषण के कारण देश के लाखों-करोड़ों लोग सूनी और उदास आंखों के साथ जीवन गुजार रहे हैं। उनके जीवन में न दीपावली से उजियारा आएगा, न होली से रंग भरेंगे। यह सूनापन तभी दूर होगा, जब सरकारें आम लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए ईमानदारी से काम करेंगी और हर बात पर धर्म का तमाशा नहीं बनाएंगी।
सारे देश की दीपावली एक तरफ और अयोध्या की दीपावली एक तरफ। बात त्रेतायुग की होती तो, इसमें कोई आश्चर्य नहीं होता, क्योंकि पौराणिक कथाएं तो यही बताती हैं कि रावण का नाश करने के बाद, सीता जी को लेकर राम जी जब छोटे भाई लक्ष्मण, हनुमानजी और बाकी लोगों के साथ अयोध्या वापस लौटे तो बरसों से उनकी प्रतीक्षा कर रही जनता ने उनके स्वागत में दीए जलाए और तब से दीपावली मनाई जाती है। मगर नरेन्द्र मोदी और आदित्यनाथ योगी के शासन में कलयुग में, 21वीं सदी में अयोध्या के नाम पर त्रेतायुग की वापसी देश में करवाई जा रही है। साल दर साल अयोध्या के दीपोत्सव में दीयों की संख्या बढ़ रही है, हर बार एक नया विश्व रिकार्ड कायम हो रहा है। रामलीला में लोग राम, सीता, लक्ष्मण के किरदारों में दिखाई देते हैं, दशहरे के दिन नामी-गिरामी राजनैतिक हस्तियां हाथों में तीर-धनुष लेकर रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों पर वार करके राम जैसा महसूस करने का सुख हासिल करती हैं, इतना ही काफी नहीं था, जो अब अयोध्या में हर साल राम, सीता और लक्ष्मण का भेस धरे कलाकारों का स्वागत-सत्कार होता है। स्वयं मुख्यमंत्री उनका तिलक करते हैं, संत समाज इस तरह के आयोजन पर गदगद होता है कि सनातन की सेवा हो रही है और बाकी हिंदू समाज सरकार को हिंदुत्व की सेवा में रत देखकर यह इत्मीनान कर लेता है कि हिंदू आखिर जाग ही गया है।
लेकिन जागने का एक अर्थ तो यह भी है कि आप सोने से पहले जहां थे, वहां से अब कुछ आगे बढ़ गए हैं। कलयुग के बाद तो शायद कोई और युग नहीं आएगा। लेकिन 21वीं सदी के बाद अभी आगे और सदियां आनी हैं, जिनकी तैयारी दुनिया के विकसित देश कर भी चुके हैं। इन देशों में धर्म के नाम पर कौन सो रहा है, कौन जाग रहा है, इससे ज्यादा फिक्र इस बात की हो रही है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए पढ़ाई-लिखाई का इंतजाम रहे, युवा शक्ति का इस्तेमाल रचनात्मकता के लिए हो, उन्हें रोजगार मिले और जिंदगी को समझने का अपना नजरिया विकसित हो। विज्ञान के प्रसार और तकनीकी के विकास से जीवन को हर तरह से बेहतर बनाया जाए, इसके लिए वहां दिन-रात काम हो रहा है। विज्ञान के क्षेत्र में हर साल नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वालों के नाम ही देख लें, तो समझ आ जाएगा कि कितनी अबूझ बातों की गुत्थी सुलझाने के लिए परिश्रम किए जा रहे हैं और उसका फायदा केवल उन देशों या समाजों को ही नहीं आगे जाकर पूरी दुनिया को मिलता है।
ऐसा नहीं है कि भारत में इतनी मेहनत करने वाले या प्रखर मेधा के धनी लोगों की कमी है। दुनिया को आगे ले जाने में जो देश इस समय अग्रणी हैं, वहां भारतीय लोगों की बुद्धि और प्रतिभा को न केवल काम करने के अवसर दिए जा रहे हैं, बल्कि उनका समुचित सम्मान भी हो रहा है। जबकि अपने देश में वे कहीं न कहीं इस कमी को महसूस कर रहे हैं, इसलिए हर साल भारत की नागरिकता छोड़कर विदेशी नागरिकता हासिल करने वालों की संख्या भी बढ़ रही है, बाहर जाकर काम करने और पढ़ने वालों की गिनती में भी इजाफा हो रहा है। इन लोगों में सत्तारुढ़ दल भाजपा के बहुत से नेताओं के बच्चे भी शुमार है, जिसका सगर्व प्रदर्शन वे अक्सर सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर करते हैं। विचारणीय मुद्दा है कि अगर इन प्रतिभाओं को अपने देश में ही पूरी तरह फलने-फूलने का मौका मिलता तो फिर वे किसी दूसरे देश में, दोयम दर्जे के नागरिक के तौर पर क्यों जाते। इस सवाल का जवाब सत्ता में बैठे लोगों से किया जाए, तो आपको राष्ट्रवाद की खुराक दी जाएगी। याद कीजिए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि बाहर जाकर पढ़ने की क्या जरूरत है। हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी यही कहा कि विदेश में जाकर पढ़ने और रहने के सपने देखने की नयी बीमारी लग गई है। पहले जिसे ब्रेन ड्रेन कहा जाता था, अब उसे बीमारी बताकर आगे बढ़ने की चाह रखने वालों का अपमान किया जा रहा है। लेकिन इससे पहले कि देश इस बारे में सोचे और आपत्ति करे, उसे त्रेतायुग के गौरव में गुम किया जा रहा है।
भाजपा के कई समर्थक दावा कर चुके हैं कि देश को असली आजादी 2014 के बाद मिली। अब शायद यह दावा भी किया जाए कि देश में दीपावली मनाने की शुरुआत भी तभी हुई, जब आदित्यनाथ योगी ने 2017 में पदभार संभाला और अयोध्या के स्थानीय उत्सव को अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों तक पहुंचाया। अन्याय और अत्याचार का अंत करके रामजी अयोध्या वापस लौटे थे, और जिस सिंहासन पर बैठने के वे अधिकारी थे, उस पर आसीन होने का वक्त आ गया था, 14 वर्षों के कठिन वनवास को पूरी मर्यादा के साथ उन्होंने पूरा किया और अपने सामर्थ्य का पूरा इस्तेमाल उन लोगों के हितों की रक्षा के लिए किया जो शोषित, पीड़ित और कमजोर थे। इस नाते उनकी वापसी की खुशी मनाना स्वाभाविक ही था। अयोध्या की सत्ता संभालने के बाद भी उन्होंने हर तरीके से राजधर्म का पालन किया। लेकिन क्या आज के सत्ताधीश रामराज की मर्यादाओं पर चल रहे हैं। क्या त्रेतायुग की तस्वीर दिखाकर आज की हकीकत को झुठलाया जा सकता है।
दीपावली के चंद दिनों पहले ही उत्तरप्रदेश में पुलिस हिरासत में मोहित पांडे नामक शख्स की मौत हो गई। कुछ सौ रुपयों के विवाद के कारण हुए झगड़े में मोहित को पुलिस ने गिरफ्तार किया था और हिरासत में उनकी तबियत बिगड़ी, उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन जान बचाई नहीं जा सकी। इस घटना के कुछ दिन पहले एक अन्य शख्स अमन गौतम की भी पुलिस हिरासत में ही मौत हो गई। 15 दिनों के भीतर हुई इन दो मौतों पर अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर पुलिस प्रशासन किस तरह से कार्य कर रहा है।
क्या कानून अपने हाथ में लेकर आरोपियों को सजा देने का काम पुलिस कर रही है। उत्तर प्रदेश पुलिस पर फर्जी मुठभेड़ों को लेकर भी आरोप लगते रहे हैं, क्योंकि कई आरोपियों को मुठभेड़ के दौरान मार दिया गया और हर मुठभेड़ के साथ एक कहानी भी पेश होती है कि किस तरह आरोपी पुलिस गिरफ्त से भाग रहा था या उसने हमला किया और बदले में पुलिस ने गोली चलाई। कुछ दिन इन घटनाओं पर मीडिया में सवाल उठते हैं, फिर अचानक हिंदू को जगाने वाला कोई नया मुद्दा आ जाता है और ये सवाल दब जाते हैं। कई बार सरकार अपना मानवीय चेहरा दिखाने के लिए मृतकों के परिजनों को मुआवजा देती है, या उनसे मुलाकात कर न्याय मिलने का भरोसा दिलाती है। अभी मोहित पांडे प्रकरण में भी ऐसा ही हुआ, उनकी मौत पर सरकार पर सवाल तेज हुए तो अब उस पर अफसोस जताया जा रहा है। मोहित पांडे की पत्नी और बच्चों से हाल में मुख्यमंत्री योगी ने मुलाकात की, उन्हें 10 लाख रुपए का मुआवज़ा, एक आवास, बच्चों को मुफ़्त शिक्षा और दूसरी सरकारी सुविधाएं देने का निर्देश दिया। अच्छी बात है कि एकदम से बेसहारा हो गए परिवार की सुध सरकार ने ली। लेकिन इस मुलाकात की एक तस्वीर ने ध्यान खींचा, जिसमें मुख्यमंत्री के साथ खड़े मोहित पांडे के बच्चों के हाथ में कैडबरी चॉकलेट का डिब्बा है। जाहिर है बच्चों को दुलारने के लिए श्री योगी ने उन्हें चॉकलेट दी हो, लेकिन पिता को असमय खो चुके उन तीनों बच्चों के चेहरे की उदासी, आंखों का खालीपन बता रहा था कि कुछ लाख रुपए या चॉकलेट से उनके जीवन की रिक्तता भरी नहीं जा सकती।
अन्याय और शोषण के कारण देश के लाखों-करोड़ों लोग सूनी और उदास आंखों के साथ जीवन गुजार रहे हैं। उनके जीवन में न दीपावली से उजियारा आएगा, न होली से रंग भरेंगे। यह सूनापन तभी दूर होगा, जब सरकारें आम लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए ईमानदारी से काम करेंगी और हर बात पर धर्म का तमाशा नहीं बनाएंगी। रामजी आज अगर सचमुच अयोध्या लौटते तो वे भी सवाल करते कि मोहित के घर में दीया कौन जलाएगा?


