केरल में कांग्रेस की जीत का मतलब
2025 में कांग्रेस ने महाराष्ट्र, हरियाणा और बिहार तीन महत्वपूर्ण राज्यों को गंवाया है, जबकि कांग्रेस ने इस बरस को संगठन की मजबूती का साल बनाया था

2025 में कांग्रेस ने महाराष्ट्र, हरियाणा और बिहार तीन महत्वपूर्ण राज्यों को गंवाया है, जबकि कांग्रेस ने इस बरस को संगठन की मजबूती का साल बनाया था। बार-बार उम्मीदों के विपरीत परिणाम आने से कार्यकर्ताओं में थोड़ी निराशा आना स्वाभाविक है। लेकिन फिर साल के जाते-जाते कांग्रेस ने एक महत्वपूर्ण जीत दर्ज की है। केरल के नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेसनीत यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट को बड़ी जीत मिली है। भले यह जीत दक्षिण के एक राज्य की है, लेकिन इसके दूरगामी असर पड़ने की संभावना है।
गौरतलब है कि केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं, इसके साथ-साथ तमिलनाडु, प.बंगाल, पुडुचेरी और असम में भी चुनाव हैं। असम और पुडुचेरी में पहले से भाजपा की सरकारें हैं, शेष तीन पर भी वह स्वाभाविकत: जीत हासिल करने की कोशिश में है। प.बंगाल में ममता बनर्जी के वोटबैंक में भाजपा सेंधमारी की तैयारी में है, यहां अब वाम मोर्चे और कांग्रेस के मुकाबले भाजपा मजबूत हो चुकी है। तमिलनाडु में भाजपा का खास जनाधार नहीं है, एआईएडीएमके के सहारे जो जमीन भाजपा तलाश रही थी, उसमें उसे सफलता नहीं मिली है।
केरल में भी भाजपा कई बरसों से हाथ-पैर मार रही है। पिछले चुनावों में मेट्रो मैन के नाम से मशहूर ई.श्रीधरन को भी भाजपा ने अपने खेमे में शामिल कर इस प्रगतिशील विचारधारा वाले राज्य को प्रभावित करने की कोशिश की थी, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। और अब नगरीय निकाय चुनावों में भी तिरुअनंतपुरम की नगर निगम जीतने के बावजूद भाजपा को केरल से झटका मिला है, क्योंकि यहां कांग्रेस लोगों की पहली पसंद के तौर पर उभरी है।
कांग्रेसनीत यूडीएफ ने कोल्लम, कोच्चि, त्रिशूर और कन्नूर इन चार नगर निगमों के साथ 7 जिला पंचायतों, 54 नगर पालिकाओं, 79 ब्लॉक पंचायतों और 505 ग्राम पंचायतों में जीत हासिल की है। जबकि सत्तारुढ़ एलडीएफ को महज़ एक नगर निगम, सात जिला पंचायतों, 28 नगर पालिकाओं, 63 ब्लॉक पंचायतों और 340 ग्राम पंचायतों में जीत मिली है। एलडीएफ ने साल 2020 में हुए चुनाव में पांच नगर निगमों में जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार उसे सिफ़र् कोझिकोड में ही जीत मिली है। इससे पता चलता है कि लोगों का भरोसा पिनराई विजयन के वाममोर्चे से ज्यादा कांग्रेस पर बढ़ा है। वहीं भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने एक नगर निगम, दो नगर पालिकाओं और 26 ग्राम पंचायतों में जीत दर्ज की है।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर के संसदीय क्षेत्र तिरुअनंतपुरम की नगरनिगम जीतने को भाजपा एक बड़ी जीत बता रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस जीत पर केरल की जनता का धन्यवाद करते हुए कहा कि केरल की जनता यूडीएफ और एलडीएफ से तंग आ चुकी है। वहीं अमित शाह का कहना है कि केरल की जनता ने स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा और एनडीए को भारी जीत दिलाई है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तो तिरुवनंतपुरम में भाजपा की जीत को 'एक नए अध्याय की शुरुआत' बताया है।
अब जिस राज्य में एक अदद सीट के लिए भाजपा सालों साल तरसी है, वहां एक नगरनिगम में अपना महापौर बना लेना उसे बहुत बड़ी जीत लग सकती है। लेकिन अगर भाजपा अपनी मामूली जीत को बहुत बड़ी उपलब्धि बताएगी, तो क्या वह यह मानेगी कि सत्ता के इस सेमीफाइनल में असली बाजी कांग्रेस के हाथ लगी है। क्योंकि उसने न केवल अपनी पिछली सीटें बरकरार रखी हैं, बल्कि सत्तारुढ़ मोर्चे से नयी सीटें भी हासिल की हैं।
राहुल गांधी ने इस जीत के लिए केरल की जनता को सलाम भेजा है। कांग्रेस को उम्मीद है कि अब अगले साल के विधानसभा चुनावों में वह ऐसा ही अच्छा प्रदर्शन करेगी। हालांकि कांग्रेस को अपने पिछले अनुभव देखते हुए काफी फूंक-फूंक कर कदम रखने की जरूरत है। कांग्रेस सांसद शशि थरूर लगातार पार्टी लाइन से अलग हटकर अपनी बात रख रहे हैं। रुसी राष्ट्रपति पुतिन को दिए रात्रि भोज में राहुल गांधी या मल्लिकार्जुन खड़गे को न बुलाकर भाजपा ने श्री थरूर को आमंत्रित किया। इससे पहले ऑपरेशन सिंदूर पर दुनिया के देशों में भारत का पक्ष रखने वाले सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल में शशि थरूर शामिल थे। अभी शीतकालीन सत्र के दौरान राहुल गांधी ने कांग्रेस सांसदों की लोकसभा में प्रदर्शन की समीक्षा के लिए जो बैठक बुलाई, उससे शशि थरूर नदारद थे। और अब अपनी संसदीय सीट के स्थानीय निकाय में भाजपा की जीत को वे लोकतंत्र की खूबसूरती बताते हुए न्यायसंगत ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस को इससे ज्यादा स्पष्ट संकेत नहीं मिल सकते कि अब उसे केरल की इस कमजोर कड़ी पर संभल कर एक्शन ले लेना चाहिए।
वैसे केरल की इस बड़ी जीत का श्रेय राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की मेहनत और चतुर रणनीति को दिया जाना चाहिए। प्रियंका गांधी ने वायनाड जीतने के बाद लगातार केरल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। स्थानीय निकाय चुनाव से पहले पिछले महीने वे कम से कम एक हफ्ता केरल में दौरा करती रहीं। इसी तरह राहुल गांधी ने भी केरल में कांग्रेस की गुटबाजी को रोकते हुए यह सुनिश्चित किया कि कांग्रेस को यहां शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में जनाधार बढ़ाना है।
जहां तक वाममोर्चे का सवाल है, तो यह उनके लिए आत्मचिंतन का विषय है कि पहले प.बंगाल, फिर त्रिपुरा और अब केरल में वो कमजोर क्यों पड़ते जा रहे हैं। क्यों भाजपा यहां शून्य से आगे बढ़ रही है और मामूली जीत को इस तरह दिखा पा रही है कि अब केरल में मुकाबला एलडीएफ और यूडीएफ के बीच ही नहीं है, भाजपा भी विकल्प है। इस किस्म के नैरेटिव बना कर भाजपा ने कई बार जनता को भ्रमित किया है। केरल में भी भाजपा की बढ़त का भ्रम है, या जमीनी स्तर पर पार्टी वाकई मजबूत हुई है, यह परखने और उस हिसाब से रणनीति बनाने पर अब कांग्रेस और वामदलों को सोचना होगा।


