Top
Begin typing your search above and press return to search.

विज्ञान शिक्षा के लिए सपर्पित थे विनोद रायना

वैज्ञानिक और शिक्षाविद होने के साथ-साथ उनकी पर्यावरण व जनांदोलनों में गहरी रूचि थी

विज्ञान शिक्षा के लिए सपर्पित थे विनोद रायना
X

- बाबा मायाराम

वैज्ञानिक और शिक्षाविद होने के साथ-साथ उनकी पर्यावरण व जनांदोलनों में गहरी रूचि थी। उनका सामाजिक सरोकार से जुड़ाव अंत तक बना रहा। वे हमेशा जनांदोलनों में विज्ञान की भूमिका देखते थे। जहां भी जनांदोलन उभरते थे, वे अपना समर्थन देते थे। विनोद भाई की मौजूदगी ऐसे आंदोलनों को एक अलग आयाम देती थी। वे देश के कई इलाकों में चल रहे जनांदोलन में कई बार मुझसे टकराए।

मैं अपने छात्र जीवन में जिनसे मिला, और प्रभावित हुआ, उनमें से विनोद रायना भी एक हैं। दरअसल, हमारे गांव में ही किशोर भारती नामक स्वयंसेवी संस्था थी, जिसमें उन दिनों देश के अलग-अलग कोनों से शिक्षा, समाज व ग्रामीण विकास में रूचि रखने वाले संभावनाशील लोग आते रहते थे। सबसे पहले विनोद रायना से किशोर भारती के परिसर में ही मेरी मुलाकात हुई। बाद में तो कई बार उनसे मिलता होता रहा। आज इस कॉलम में विनोद रायना के बारे में बताना चाहूंगा, जिन्होंने विज्ञान शिक्षा में अनूठा योगदान दिया, साथ ही समाज, पर्यावरण, जलवायु बदलाव और देश दुनिया में उभरते जनांदोलनों को भी ताकत दी।

मेरे मानस पटल पर विनोद रायना की कई छवियां उभर रही हैं। लेकिन जो छवि उनकी खास पहचान थी. वो उनकी घनी दाढ़ी, गोल चश्मा और सदाबहार मृदु मुस्कान। किशोर भारती में लगातार होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम की बैठकें, होशंगाबाद में लम्बे शिक्षक प्रशिक्षण, भोपाल व इन्दौर में उनके बौद्धिक व्याख्यान इत्यादि।
सत्तर के दशक में विनोद रायना का किशोर भारती आना-जाना लगा रहता था। यह वही समय था, जब किशोर भारती व फ्रेंड्स रुरल सेंटर,रसूलिया द्वारा होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम का विकसित हो रहा था। इस कार्यक्रम के तहत सरकारी स्कूलों में 6 वीं से 8 वीं तक विज्ञान का पाठ्यक्रम बनाया जा रहा था, जिसे ये दोनों संस्थाएं और शिक्षक और वैज्ञानिक मिलकर बना रहे थे। इसमें दिल्ली विश्वविद्यालय व अन्य स्थानों से भी वैज्ञानिक व विज्ञान शिक्षक व छात्र मदद कर रहे थे। उनमें विनोद रायना भी शामिल थे।

किशोर भारती, मध्यप्रदेश के होशंगाबाद ( अब इस जिले का नाम नर्मदापुरम है) जिले के पूर्वी छोर पर स्थित थी। किशोर भारती जाने के लिए बनखेड़ी रेलवे स्टेशन उतरना पड़ता था और वहां से किशोर भारती 7 किलोमीटर दूर थी, यहां तक पहुंचने के लिए कोई वाहन नहीं चलते थे, तो बनखेड़ी से किराये की साइकिल से जाना पड़ता था। अक्सर विनोद भाई जैसे लोगों को साइकिल चलाते देखा जा सकता था। गांवों में ऐसे दृश्य कौतूहल पैदा करते थे।

जब भी मैं कभी किशोर भारती जाता था, तब वहां देखता था कि शिक्षक प्रशिक्षण हो रहा है, कोसम वृक्षों के नीचे प्रयोग हो रहे हैं, बातचीत और बहसें हो रही हैं। चाय पीते लोग गपशप कर रहे हैं। किताबों के चैप्टर बनाए जा रहे हैं, चित्र बनाए जा रहे हैं। दरी पर टोलियों में बैठकर प्रयोगों के आंकड़े जमा कर रहे हैं। निष्कर्षों से विज्ञान के सिद्धांतों को समझने की कोशिश कर रहे हैं।

बाद में जब एकलव्य संस्था बनी, जो अब भी कार्यरत है। मेरे ख्याल से साल 1982 की बात है, तो विनोद रैना भी उनके संस्थापक सदस्यों में एक थे। वे ही इसके चेहरा भी बने। जब होशंगाबाद विज्ञान का विस्तार हुआ, तो एकलव्य की जिम्मेदारी बढ़ी। शुरूआत में यह 16 स्कूलों में था, फिर पूरे जिले के लगभग 250 स्कूलों के बाद अन्य जिलों में भी फैला। इस काम को व्यवस्थित करने के लिए कुछ जगह क्षेत्रीय केन्द्र भी शुरू किए गए।

एकलव्य बनने के कुछ समय बाद ही भोपाल में सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना हुई। यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी से जहरीली गैस निकली, जिससे भोपाल में कई लोग मरे और कई बीमारियों से ग्रस्त हुए। इस पूरे मुद्दे पर गैस पीड़ितों की सेहत, अधिकार और गैस के असर पर विनोद रायना ने उनके साथियों के साथ उपयोगी सामग्री प्रकाशित की और इस लड़ाई को ताकत दी। पोस्टर प्रदर्शनी तैयार की, प्रभावित बच्चों के बीच काफी रचनात्मक गतिविधियां भी की गईं।
जब बच्चों के लिए चकमक पत्रिका प्रकाशित होने लगी तो मेरा पहला लेख इस बाल पत्रिका के पहले अंक में उन्होंने ही छापा था। यह 1985की बात है। इसके बाद भी लिखने के लिए प्रोत्साहन देते रहे।

विज्ञान शिक्षा में विनोद रायना और एकलव्य संस्था का योगदान अमूल्य है, क्योंकि उन्होंने विज्ञान को एक प्रयोगशाला से निकालकर एक सोच के रूप में लोगों के सामने रखा। सवाल उठाने और जिज्ञासा को किसी भी खोज और प्रयोग के लिए आवश्यक बताया। मौजूदा शिक्षा जो केवल रटकर परीक्षा में उगल देने की कला है, उसे समझने व सीखने का माध्यम बताया। विषयों को बांटकर नहीं, समग्रता से सीखने पर जोर दिया।

शिक्षकों और छात्रों के लिए विज्ञान को एक दिलचस्प विषय बनाया। बाल विज्ञान के छात्रों व शिक्षकों को खेत-खलिहानों में पत्तियां व फूलों के अंगों को पहचानने, प्रयोग के लिए मिटटी के नमूने एकत्र करते व खरपतवारों की पहचान करते देखा जा सकता था। ऐसा अद्भुत दृश्य मेरे आंखों के सामने तैर रहा है क्योंकि मुझे भी इस विज्ञान को पढ़ने का मौका मिला है। और कई विज्ञान प्रशिक्षणों को देखने व शामिल होने का अवसर भी मिला है।

एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम की देश-दुनिया में सराहना हुई। भारत की शिक्षा में यह अनूठा प्रयोग सरकारी स्कूलों में करीब तीन दशकों तक चला, जिससे विनोद रैना न केवल जुड़े रहे बल्कि उनकी इसमें प्रमुख भूमिका रही। हालांकि अब यह कार्यक्रम सरकारी स्कूलों में बंद कर दिया गया है, पर इससे इसका महत्व कम नहीं होता है।

वैज्ञानिक और शिक्षाविद होने के साथ-साथ उनकी पर्यावरण व जनांदोलनों में गहरी रूचि थी। उनका सामाजिक सरोकार से जुड़ाव अंत तक बना रहा। वे हमेशा जनांदोलनों में विज्ञान की भूमिका देखते थे। जहां भी जनांदोलन उभरते थे, वे अपना समर्थन देते थे। विनोद भाई की मौजूदगी ऐसे आंदोलनों को एक अलग आयाम देती थी। वे देश के कई इलाकों में चल रहे जनांदोलन में कई बार मुझसे टकराए।

चाहे वह बड़े बांधों के खिलाफ नर्मदा बचाओ का आंदोलन हो या सुदूर छत्तीसगढ़ में लोहे की खदानों के मजदूरों का आंदोलन, चाहे वह भोपाल के गैस पीड़ितों का आंदोलन हो या फिर होशंगाबाद के विस्थापित आदिवासियों का आंदोलन। वे सभी जगह सक्रिय रहे। वे उनमें शामिल तो होते ही थे, बल्कि शोध व जानकारी एकत्र कर आंदोलनों को मजबूती प्रदान करते थे। वे किसी भी मुद्दे की तह में जाकर उसे समझते और फिर जनता के सामने तार्किक ढंग से अपने अनूठे अंदाज में रखते थे, जो कि एक शिक्षक व वैज्ञानिक की शैली होती है।

बाद में वे पीपुल्स साइंस मूवमेंट, भारत ज्ञान विज्ञान समिति, वर्ल्ड सोशल फोरम और अनेक जनांदोलनों से जुड़े रहे। साक्षरता अभियान को फैलाया। भारत ज्ञान विज्ञान समिति के माध्यम से कई महत्वपूर्ण प्रेरणादायक किताबों का प्रकाशन में मदद की। इन किताबों का चयन, अनुवाद, संपादन में टायमेकर के नाम से प्रसिद्ध अरविंद गुप्ता ने किया है। इन किताबों में शांति, पर्यावरण, शिक्षा, विज्ञान और समाज से जुड़े कई मुद्दों पर किताबें हैं। ऐसी बहुमूल्य किताबें दुर्लभ हैं। उनका सबसे बड़ा योगदान शिक्षा के अधिकार को तैयार करने, पारित करवाने की पैरवी और उस पर देश भर में सहमति बनाने का भी है।

विनोद रायना, एक उम्दा गायक भी थे। शिक्षक प्रशिक्षणों व व्यस्त बैठकों के दौरान रात्रि को वे उनकी डायरी से गीत व कविताएं सुनाया करते थे, जिससे माहौल सहज होता था। ये गीत समाज की बेहतरी के गीत थे। ऐसी संगीत की शामों में मुझे भी उन्हें सुनने का मौका मिला है।

वे काफी सहज व्यक्ति थे। रोजाना के काम खुद करते भी देखा था। कपड़े धोने से लेकर झाड़ू लगाने का काम करते थे। एक बार उन्हें मैंने किशोर भारती में शर्ट में बटन लगाते भी देखा था। यानी सिर्फ बौद्धिक बहस ही नहीं, साधारण कामों को भी वे उसी लगन से करते थे। यह उन्हें साधारण से असाधारण बनाता है।

वे हिन्दी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखते और बोलते थे। बहुत ही अच्छे वक्ता थे। चूंकि वे शिक्षक रहे थे, इसलिए उनका समझाने का तरीका बहुत सरल व संप्रेषणीय होता था। बहुत ही मिलनसार व्यक्तित्व था। उनकी दुनिया बड़ी थी। देश-दुनिया की घटनाओं पर उनकी टिप्पणी व विचार बहुत ही महत्वपूर्ण होते थे। वे नई-नई जानकारियों व विश्लेषण के स्रोत थे।

संयोग है कि मैं उसी गांव का रहने वाला हूं, जहां किशोर भारती संस्था स्थित थी। होशंगाबाद के इसी गांव में आकर विनोद भाई ने एक अलग राह पकड़ी, जो दिल्ली जैसे महानगरों में न जाकर मध्यप्रदेश के दूरदराज के गांवों तक जाती थी। उन्होंने मध्यप्रदेश को अपना कार्यक्षेत्र बनाया और यहां के स्कूलों में शिक्षा का काम किया जो मिसाल बन गया।

उनका काम वैसा ही है, जैसा कि किसी खेत की मिट्टी को किसान द्वारा तैयार करना, अगर मिट्टी अच्छी होगी तो फसल भी होगी, यानी अगर समाज में वैज्ञानिक सोच, जागरूकता और चेतना होगी तो समाज भी बेहतर बनेगा। अब विनोद रायना नहीं हैं, उनका निधन 12 सितंबर, 2013 में हो गया, पर क्या हम उनके काम व सोच से सीखकर इस दिशा में अग्रसर होना चाहेंगे?


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it