Top
Begin typing your search above and press return to search.

सड़क निर्माण करवाने की अनोखी कहानी

मध्यप्रदेश की लीला साहू का संघर्ष रंग लाया, सड़क निर्माण शुरु हुआ। लीला के संघर्ष का दिखा असर, अब गांव तक पहुंचेगी एंबुलेंस, सड़क बननी शुरु

सड़क निर्माण करवाने की अनोखी कहानी
X

मध्यप्रदेश की लीला साहू का संघर्ष रंग लाया, सड़क निर्माण शुरु हुआ। लीला के संघर्ष का दिखा असर, अब गांव तक पहुंचेगी एंबुलेंस, सड़क बननी शुरु। कुछ इसी तरह के शीर्षकों के साथ यह समाचार देखने मिला। मामला मध्यप्रदेश के सीधी जिले का है, जहां रामपुर नैकिन विकासखंड इलाके के खड्डीखुर्द के बगैयाटोला से गजरी को जोड़ने वाली सड़क पिछले 10 सालों से बेहद खराब स्थिति में है। लेकिन अब उस सड़क का निर्माण शुरु हुआ है। हालांकि इसके पीछे सरकारी तंत्र से भिड़ने की कथा संलग्न है। इस इलाके में सड़क के नाम पर उबड़-खाबड़ रास्ते पर वाहनों का आना मुश्किल है। जब बुनियादी सुविधाओं के नाम पर वोट दिया है, तो फिर सरकार अपने वादों को पूरा क्यों नहीं करती, इस सवाल के साथ लीला साहू नाम की महिला पिछले एक साल से लगातार संघर्ष कर रही थीं। उन्हें सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर भी बताया जाता है। गांव की खराब सड़क के वीडियो बनाकर लीला साहू ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किए और सीधी जिले के कलेक्टर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, राज्य के मुख्यमंत्री मोहन यादव, लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह और सांसद राजेश मिश्रा से सड़क निर्माण की मांग की। श्रीमती साहू ने सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल कर सड़क की दुर्दशा दिखाई, जिससे भाजपा सरकार की काफी किरकिरी हुई। लीला साहू का कहना था कि खराब सड़क होने से गांव की छह गर्भवती महिलाओं को अस्पताल जाने के लिए एंबुलेंस उनके घर तक नहीं पहुंच पाएगी। बता दें कि लीला साहू खुद गर्भवती हैं, लिहाजा उन्हें खुद के सही सलामत अस्पताल पहुंचने की चिंता तो है ही, अपने इलाके की अन्य गर्भवती महिलाओं की तरफ से भी उन्होंने आवाज उठाई।

लीला साहू ने कहा कि मैंने आपको अपना वोट दिया है। देश और प्रदेश में डबल इंजन की सरकार है। इसके बावजूद हमारे गांव में अभी तक सड़क नहीं बन पाई है। इतनी अपील के बावजूद सरकार की तरफ से कोई भी जनप्रतिनिधि एवं अधिकारी इस सड़क को देखने नहीं आए हैं। इस गांव में 6 महिलाएं गर्भावस्था में हैं। अगर उनको एंबुलेंस की सुविधा नहीं मिली अगर कुछ भी हो सकता है। जिसकी जिम्मेदारी सरकार और प्रशासन पर होगी। मेरा प्रसव का समय आ रहा है। देखना है कि आपकी कितनी सुविधाएं मिलती हैं।

जब लीला साहू का वीडियो वायरल हुआ और इस पर प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह और सांसद डॉ. राजेश मिश्रा से पत्रकारों ने सवाल किए तो बदले में बेतुके जवाब मिले। लीला साहू की मांग पर राजेश मिश्रा ने कहा था कि चिंता की क्या बात है। हमारे पास एंबुलेंस है, अस्पताल है, आशा कार्यकर्ता है, हम व्यवस्था करेंगे। डिलीवरी की एक संभावित तिथि होती है, बताएं तो हम एक हफ्ते पहले उठा लेंगे, अस्पताल में भर्ती करवा देंगे। वहीं राकेश सिंह ने कहा था कि अगर सोशल मीडिया पर कोई कुछ भी पोस्ट कर देगा तो क्या हम वहां सड़क बना देंगे? हर चीज के नियम होते हैं। ऐसे तो हर कोई वीडियो बनाकर समस्या बताने लगेगा। उन्होंने कहा कि ऐसे कई स्थान हैं जहां सड़क की मांग है। पीडब्ल्यूडी या किसी भी विभाग के पास इतना बजट नहीं होता कि किसी की सोशल मीडिया पोस्ट पर हम सीमेंट-कांक्रीट या डंपर लेकर सड़क बनाने पहुंच जाएं। कौन-सी सड़क कौन बनाएगा, इसकी व्यवस्था तय है। विभाग की अपनी सीमाएं हैं।

बहरहाल, इन जवाबों पर भी भाजपा के रवैये पर सवाल उठे और आखिरकार जिला प्रशासन ने बारिश के समय सड़क निर्माण का प्रारंभिक कार्य शुरू कर दिया है। लीला साहू ने खुद सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट कर जेसीबी मशीन और रोलर के साथ सड़क निर्माण कार्य दिखाया और खुशी जाहिर की है। लेकिन क्या इस मामले को अंत भला तो सब भला कहकर समाप्त माना जाए या फिर इसे लोकतंत्र में एक नए अध्याय की शुरुआत कहा जाए, जिसमें अब जनता को खुद तमाम तरह के जोखिम मोल लेकर सरकार और प्रशासन को आईना दिखाना पड़ेगा, उन्हें याद दिलाना पड़ेगा कि उनकी जिम्मेदारी क्या है। जैसी सड़कें सीधी जिले की हैं, वैसे देश भर के गांवों की सड़कें हैं, यदा-कदा कोई अपवादस्वरूप अच्छी सड़क दिख जाए, तो अलग बात है। सड़कों के साथ-साथ सरकारी अस्पतालों, शिक्षण संस्थानों, परिवहन विभाग के वाहनों, पुल-पुलियों, हर जगह इतनी बदहाली है जिनके बारे में लिखते हुए पोथियां भर जाएं। मोदी सरकार की तरह इसके लिए हम केवल 11 सालों के शासन को दोषी नहीं ठहरा सकते, बल्कि आजादी के बाद से यही हाल है कि आम जनता बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य इन सब बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करती आ रही है। इस दौर में केंद्र और राज्यों में कांग्रेस, भाजपा जैसे बड़े दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों और गठबंधनों की सरकारें रहीं, इसलिए किसी एक पर दोष नहीं मढ़ा जा सकता। लेकिन इसमें व्यवस्था को सुधारने की जगह नियति मान लेने की जो मानसिकता बन गई है, उसे अवश्य दोषी ठहराया जा सकता है।

इस नियति को मानने से इंकार करते हुए कहीं दशरथ मांझी पहाड़ तोड़कर सड़क बनाते हैं, तो कहीं अरविंद पिल्लालमरी और रवि कुचिमांची जैसे लोग अपने गांव में बिजली लाने की व्यवस्था करते हैं (2004 में आई फिल्म स्वदेश इन्हीं से प्रेरित है) और कहीं लीला साहू अब सोशल मीडिया के जरिए सरकार तक अपनी समस्या पहुंचाती हैं। बीते कुछ समय से सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर बनने का नया चलन निकल पड़ा है और हर उम्र के लोग खुद को स्क्रीन पर दिखाने के शौक इसके जरिए पूरा कर रहे हैं। इसमें कई बार अश्लीलता और नैतिकता जैसे सवालों पर विवाद भी खड़े होते हैं। हालांकि सोशल मीडिया का बेहतर इस्तेमाल कैसे हो सकता है यह लीला साहू ने दिखाया है, इसके लिए उन्हें साधुवाद। नेता इस सवाल को उठा सकते हैं कि ऐसे तो कोई भी सोशल मीडिया पर समस्या दिखाए तो क्या हम उसे सुलझाने पहुंच जाएं। लेकिन उसका जवाब यही है कि जब लोकतंत्र में राजनीति का पेशा आपने चुना है तो फिर उसकी जिम्मेदारियां निभाने तैयार होना ही पड़ेगा। सोशल मीडिया पर समस्या उठे, इससे पहले उन्हें अपने इलाके की समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। हमारी सीमाएं हैं, ऐसा कहकर नेता अपनी जिम्मेदारी से बरी नहीं हो सकते। और तब तो बिल्कुल नहीं जब सरकार आपकी हो।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it