सलमान-संतोष की अनूठी दोस्ती
हाल ही में एक दिलचस्प खबर देखने और पढ़ने मिली, जिससे कई और प्रसंग याद आ गए

- सर्वमित्रा सुरजन
नपे-तुले शब्दों में डीएसपी संतोष पटेल ने सब्जी विक्रेता सलमान के लिए अपनी कृतज्ञता भी प्रकट की और एक मिसाल उन तमाम लोगों के लिए कायम कर दी, जो संघर्ष कर के आगे बढ़ते हैं, दूसरों के कंधों को सीढ़ियों की तरह इस्तेमाल करते हैं, मगर जब उन्हें मंजिल मिल जाती है, तो फिर संघर्ष के अपने साथियों और मददगारों को पहचानते भी नहीं हैं। संतोष पटेल और सलमान खान की इस अनूठी दोस्ती की चर्चा सोशल मीडिया पर खूब हुई।
हाल ही में एक दिलचस्प खबर देखने और पढ़ने मिली, जिससे कई और प्रसंग याद आ गए। मध्यप्रदेश में डीएसपी संतोष पटेल ने एक वीडियो अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स पर डाला और लिखा- ये हैं सलमान ख़ान जो कि भोपाल के अप्सरा टॉकीज इलाके में सब्•ाी का ठेला लगाते हैं। वर्ष 2009 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने गये थे तो सब्ज़ी भाजी ख़रीदते वक्त इनसे मुलाक़ात हुई थी। ये भाई हमारी भावनाओं को समझकर रात को ठेले उठाते वक्त सब्ज़ी भाजी दे दिया करते थे। जेब में जितने रुपये होते थे इतने में ही सलमान भाई ख़ुश हो जाते थे और कई बार उधार कर लेते थे और अनेक बार भटा, टमाटर फ्री में दिये। 14 साल बाद जब अचानक पुलिस की गाड़ी के पास बुलाया तो सलमान हल्का सा डरा हुआ महसूस कर रहा था लेकिन वो पहचान गया था। मुलाक़ात हुई तो हम दोनों को बहुत अच्छा लगा। बुरे समय में जिन्होंने साथ निभाया, उन्हें भुलाना किसी पाप से कम नहीं है। इतना ही कहता हूं कि बंदे में एक दोष न हो, बंदा एहसान फ़रामोश न हो। संघर्ष के दिनों में साथ निभाने वालों के लिए वादा करता हूं कि हम वो नहीं जो मुश्किलों में आपका साथ छोड़ दें, हम वो हैं ज़रूरत पड़ी तो आपकी सांसों से अपनी सांसें जोड़ दें।
नपे-तुले शब्दों में डीएसपी संतोष पटेल ने सब्जी विक्रेता सलमान के लिए अपनी कृतज्ञता भी प्रकट की और एक मिसाल उन तमाम लोगों के लिए कायम कर दी, जो संघर्ष कर के आगे बढ़ते हैं, दूसरों के कंधों को सीढ़ियों की तरह इस्तेमाल करते हैं, मगर जब उन्हें मंजिल मिल जाती है, तो फिर संघर्ष के अपने साथियों और मददगारों को पहचानते भी नहीं हैं। संतोष पटेल और सलमान खान की इस अनूठी दोस्ती की चर्चा सोशल मीडिया पर खूब हुई, बहुत से लोगों ने उनकी मुलाकात के वीडियो को शेयर किया है। इस वीडियो में दिख रहा है कि संतोष पटेल बेहद सहजता से सलमान खान से पूछते हैं कि मुझे पहचानते हो, और सलमान खान कहते हैं, क्यों नहीं पहचानेंगे। दरअसल संतोष पटेल सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहते हैं और सलमान खान उनकी खबर सोशल मीडिया के जरिए ही रखते थे कि वे कहां हैं और क्या कर रहे हैं। लेकिन उन्हें इस बात की उम्मीद शायद नहीं रही होगी कि कभी इस तरह श्री पटेल उनसे मिलने पहुंच जाएंगे। हालांकि जब सलमान खान ने अपने ठेले के सामने पुलिस की गाड़ी देखी तो एकबारगी वे घबरा गए, मगर फिर संतोष पटेल को देखकर उनकी घबराहट चली गई।
आज प्रेमचंद होते तो शायद संतोष और सलमान की मित्रता पर गुल्ली-डंडा जैसी कोई और मशहूर कहानी लिखते। पाठक जानते हैं कि गुल्ली-डंडा कहानी में बचपन के साथियों के बड़े होकर फिर से मिलने और खेलने का सुंदर चित्रण प्रेमचंद ने किया है, जिसमें सामाजिक और आर्थिक ओहदा दोस्ती पर भारी पड़ता हुआ दिखता है। इस कहानी में नायक जब बचपन के साथी गया से फिर मिलता है तो मन में सोचता है कि मैं उसकी ओर लपकना चाहता था कि उसके गले लिपट जाऊं, पर कुछ सोचकर रह गया. बोला-कहो गया, मुझे पहचानते हो?
गया ने झुककर सलाम किया-हां मालिक, भला पहचानूंगा क्यों नहीं!
कहानी की ये पंक्तियां संतोष पटेल और सलमान खान की मुलाकात में चरितार्थ हुई हैं। फर्क इतना ही है कि संतोष पटेल ने सलमान खान को बिना झिझके गले लगा लिया और दोनों के बीच एक सरकारी अफसर और सब्जी विक्रेता के ओहदे का फर्क होने के बावजूद पुराने रिश्तों की गर्माहट दिखी।
2017 में मप्र लोकसेवा आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद डीएसपी बने संतोष पटेल ने 2009 से लेकर 2013 तक भोपाल में रहकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। उस समय कई बार उनके पास पैसे नहीं होते थे, ऐसे में सलमान खान रात को दुकान समेटते समय बैंगन और टमाटर मुफ्त में दे दिया करते थे। संतोष पटेल के मुताबिक सलमान खुद गरीब थे, लेकिन मुझे मुफ्त में सब्ज़ियां दिया करते थे। पढ़ाई पूरी करने और डीएसपी बन जाने के बाद उनका काम के सिलसिले में भोपाल आना हुआ तो वे पुरानी यादों को ताजा करने और खास तौर पर सलमान खान को तलाशने के लिए अप्सरा टॉकीज के पास के इलाके में आए और यहां उनकी तलाश पूरी भी हुई।
आज के दौर में जब जीवन से अपनापन, सहजता, निस्वार्थ रिश्ते गायब होते जा रहे हैं, तब संतोष-सलमान की इस जीवंत कथा को उम्मीद की तरह देखा जाना चाहिए। इस प्रकरण से ललित सुरजन जी (मेरे पिता) का सुनाया एक वाकया याद आ गया कि तंगी के दिनों में उनके मित्र एडव्होकेट जमालुद्दीन की मां ने दीवाली पर दिए जलाने और मिठाई खरीदने के लिए उन्हें पैसे दिए थे, जबकि रायपुर की चूड़ी लाइन में खुद उनकी छोटी सी दुकान थी। इसी तरह जमाल चाचा की बेटी की शादी का अवसर आया, तो कार्ड में जमाल चाचा ने बाबूजी (स्व.मायाराम सुरजन) का नाम डलवाया, क्योंकि वे उन्हें घर का बुजुर्ग मानते थे। अपनी बेटी के साथ-साथ जमाल चाचा ने एक अनाथ लड़की का विवाह भी संपन्न करवाया था।
मुझे यकीन है कि हमारे घर ही नहीं, हिंदुस्तान के हजारों-लाखों घरों में ऐसे प्रसंग पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाए, बताए जाते रहे होंगे। कृष्ण-सुदामा से लेकर गुल्ली-डंडा और सलमान-संतोष की कहानी तक में सदियों से सांस लेते भारत को महसूस किया जा सकता है। गंगा-जमुनी सभ्यता केवल मुहावरा नहीं है, यही हिंदुस्तान का सच भी है। मगर अब इसमें कागज दिखाने, कपड़ों से पहचान करने और दुकानों पर नाम लिखने की राजनीति हावी की जा रही है। लव जिहाद, जमीन जिहाद, आर्थिक जिहाद, शिक्षा जिहाद, वोट जिहाद की नफरती सोच समाज में भरने की सायास कोशिशें हुई हैं। इसका विस्तार बंटेंगे तो कटेंगे और एक रहेंगे, सेफ रहेंगे तक किया जा चुका है। अखिलेश यादव ने बिल्कुल सही कहा है कि बंटेंगे तो कटेंगे सबसे नकारात्मक नारा है और इतिहास में यह निकृष्टतम नारे के तौर पर दर्ज होगा।
राहुल गांधी ने भी मंगलवार को गोंदिया की अपनी सभा में लव यू वाले नारे और इसके पीछे की राजनीति का खुलासा करते हुए कहा कि भारत जोड़ो यात्रा के वक्त नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान का नारा निकला था। राहुल गांधी के मुताबिक राजनीति में सिर्फ नफरत, हिंसा और गुस्सा ये चीजें फैलाई जा रही थीं। इसलिए हमने सोचा कि अगर दूसरी साइड ने नफरत का ठेका ले रखा है, तो हम मोहब्बत का ठेका ले लेते हैं। उसमें फायदा भी है। नफरत में भाई भाई से लड़ता है, नफरत को नफरत नहीं काट सकती है। कोई आपसे नफरत करता है, आप उससे जाकर और नफरत करो, तो बात नहीं कटती लेकिन कोई भी आपसे नफरत करें और आपने उसे मोहब्बत दिखा दी, में नफरत खत्म हो जाती है। यह कांग्रेस पार्टी की सोच है, महात्मा गांधी की सोच है।
राहुल गांधी का यह भाषण भले चुनावी मंच से दिया गया, लेकिन असल में इसमें भारत के विचार का दर्शन होता है। वो दर्शन जिसे गांधीजी ने दुनिया के सामने रखा और आज उस पर न चलने का नुकसान भी देखा जा रहा है। राजनीति के जरिए नफरत और हिंसा को बढ़ाने का खामियाजा अंतत: समाज भुगत रहा है, क्योंकि आपसी प्रेम और सौहार्द्र की जगह शक ने ले ली है। लेकिन इस वक्त भी सलमान खान और संतोष पटेल जैसे लोग समाज में मौजूद हैं, जो नेकी, भाईचारे, कृतज्ञता और दोस्ती जैसे शब्दों को चरितार्थ कर रहे हैं।


