Top
Begin typing your search above and press return to search.

भारत को नीचा दिखाने में लगीं अघोषित शक्तियां

भारत के संविधान को दुनिया के श्रेष्ठ संविधानों में से एक माना जाता है और भारतविरोधी शक्तियां इसी बात से परेशान भी रहीं कि आजादी के बाद भारत निर्माताओं ने ये कितना मजबूत हथियार जनता के हाथ में दे दिया है

भारत को नीचा दिखाने में लगीं अघोषित शक्तियां
X

- सर्वमित्रा सुरजन

भारत के संविधान को दुनिया के श्रेष्ठ संविधानों में से एक माना जाता है और भारतविरोधी शक्तियां इसी बात से परेशान भी रहीं कि आजादी के बाद भारत निर्माताओं ने ये कितना मजबूत हथियार जनता के हाथ में दे दिया है। अब अगर इस संविधान को खत्म करने या बदलने की बात कही जाती है, तो इसके पीछे असल में भारत को खत्म करने की मंशा होती है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जिन छिपे उद्देश्यों के साथ इस कुर्सी पर बिठाने की मुहिम 21वीं सदी के शुरुआती दशक में की गई थी, वो सारे उद्देश्य अब लगभग पूरे होते दिख रहे हैं। संवैधानिक मर्यादा, लोकतांत्रिक तकाजे, समानता, सौहार्द्र, भाईचारे के ख्वाब सब तार-तार होते दिख रहे हैं। भारत को नीचा दिखाने की कोशिश में लगी दुष्ट ताकतें यही तो चाहती थीं।

देश के भीतर और देश के बाहर दोनों जगह काम कर रही ऐसी शक्तियां चाहती थीं कि भारत अब तक अपने जिन मूल्यों और सिद्धांतों की बुनियाद पर मजबूती से खड़ा हुआ है, उन्हें किसी भी तरह लोगों से दूर किया जाए। इन शक्तियों को सबसे ज्यादा तकलीफ इस बात से ही थी कि 1947 में आजाद हुए भारत ने किस तरह खुद को न केवल अपने पैरों पर खड़ा कर लिया बल्कि दुनिया में बाकी प्रगतिशील देशों की अपेक्षा उसकी धाक भी अलग जमी। नेहरूजी के पंचशील और गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत, उससे पहले गांधीजी के सत्य और अहिंसा के नैतिक बल को दुनिया ने पहचाना और सम्मान दिया। हमारे पास बुद्ध, अशोक और अकबर की मिसालें भी रहीं, लेकिन फिर इन महान हस्तियों के बताए रास्ते की अनदेखी और इनके संदेशों को अनसुना करने का नतीजा भारत ने भुगता, एक दो साल नहीं पूरे दो सौ साल की गुलामी में भारत रहा। लेकिन इस गुलामी में ही लोगों ने अपनी गलतियों को समझा और फिर स्वाधीनता आंदोलन के अलग-अलग धड़ों का नेतृत्व कर रहे लोगों की बात सुनी।

देश को आजाद कराने के लिए कई तरह की कुर्बानियां दीं। देश आजाद हुआ तो संविधान बनाने में इस बात का खास ख्याल रखा गया कि जिन रूढ़ियों की वजह से भारत का समाज कमजोर होता है, जनता के अधिकारों का हनन होता है, उन्हें दूर किया जाए। इसलिए संविधान में राजनैतिक, आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक हर पहलू पर बारीकी से ध्यान देकर व्यवस्थाएं बनाई गईं। खास तौर पर भारत के सामाजिक ढांचे और बहुलतावादी संस्कृति को इस तरह समायोजित किया गया कि किसी भी नागरिक को यह न लगे कि उसके साथ अन्याय हुआ है।

भारत के संविधान को दुनिया के श्रेष्ठ संविधानों में से एक माना जाता है और भारतविरोधी शक्तियां इसी बात से परेशान भी रहीं कि आजादी के बाद भारत निर्माताओं ने ये कितना मजबूत हथियार जनता के हाथ में दे दिया है। अब अगर इस संविधान को खत्म करने या बदलने की बात कही जाती है, तो इसके पीछे असल में भारत को खत्म करने की मंशा होती है। मौजूदा हालात इसी तरफ इशारा भी कर रहे हैं। 2014 में जब पहली बार नरेन्द्र मोदी सत्ता पर बैठे थे तो एकदम से कट्टर हिंदुत्व और उग्र राष्ट्रवाद का शोर तेज हुआ था। जातीय और धार्मिक झगड़ों में दंगे पहले भी होते रहे, लेकिन देश में स्पष्ट विभाजन नहीं दिखाई देता था, जो 2014 के बाद खुलकर दिखने लगा। यह भारतीय समाज पर चोट का एक हिस्सा ही था, लेकिन दूसरा हिस्सा ज्यादा खतरनाक था, जिसमें संवैधानिक संस्थाओं को पंगु बनाने पर काम शुरु हुआ।

निर्वाचन आयोग पर भाजपा के लिए काम करने के आरोप लगे, जो अब भी चल ही रहे हैं। प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी और सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों की साख खतरे में आई, क्योंकि विपक्ष के नेताओं पर इनकी कार्रवाई तो खूब हुई, लेकिन उन्हें दोषी साबित करने के मामले गिने-चुने ही रहे। जाहिर है विपक्ष को निशाने पर लेने का मकसद सत्ता में बैठे लोगों की मनमानी के मौके बनाना है। वर्ना इन एजेंसियों का काम देश से भ्रष्टाचार को खत्म करना है और हर दिन की घटनाओं को देखें तो समझ आएगा कि भ्रष्टाचार पहले से कई गुना बढ़ चुका है। सौ में से 90 बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान, यह संवाद 1997 में आई फिल्म यशवंत में नाना पाटेकर ने कहा था। यह बाद में जुमला ही बन गया और इसे लेकर अक्सर कांग्रेस को घेरा जाता था, क्योंकि तब तक सत्ता पर कांग्रेस ही ज्यादा काबिज रही। फिर बीजेपी सत्ता में आई, लेकिन 2004 से 2014 तक फिर से कांग्रेस सत्ता में रही तो भ्रष्टाचार को देश की सबसे बड़ी समस्या के तौर पर प्रस्तुत करने के लिए अन्ना आंदोलन चलाया गया।

आज अन्ना हजारे अपने गांव रालेगण सिद्धि में बैठकर भारत को बर्बाद होते देख रहे हैं और इस समय जिस तरह का भ्रष्टाचार फैला है, उस पर दो शब्द उनके मुंह से नहीं निकलते। इसमें मीडिया भी बड़े भ्रष्टाचारी की तरह ही साथ दे रहा है। किसी संवाद को जुमले की तरह प्रचलित कर उसे सबसे बड़ा सच बनाने की कवायद में सबसे बड़ा हाथ प्रचार तंत्र का ही होता है। सौ में से 90 बेईमान की बात भारत के लोगों के मन में भरने का काम मीडिया के जरिए ही हुआ। लेकिन अब वही मीडिया भ्रष्टाचार के बड़े उदाहरण सामने आने के बाद भी उस पर चर्चा नहीं करता। उसे विपक्ष की खामियों या सांप्रदायिक नफरत फैलाने के लिए खुली छूट दी गई है।

बुधवार को गुजरात में महिसागर नदी पर बना गंभीरा पुल बीच से टूट गया। आणंद और वडोदरा को जोड़ने वाला यह पुल 40 साल पुराना था। बताया जाता है कि इसकी कई बार मरम्मत हो चुकी है। लेकिन पुल दो हिस्सों में टूटकर जिस तरह लटका हुआ है, वह भ्रष्टाचार की गवाही चीख-चीख कर दे रहा है। इससे पहले इसी गुजरात में मोरबी पुल भी इसी तरह टूटा था। क्या फर्क पड़ता है कि तब कितनी जानें गई थीं और अब कितनी जानें गईं। क्योंकि लाशों की गिनती और मुआवजे की घोषणा के बावजूद भ्रष्टाचार का सिलसिला थमने वाला नहीं है। वर्ना प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के शोक संदेशों के साथ इस्तीफे के संदेश भी आते। लेकिन इन लोगों को सत्ता पर बने रहना है, क्योंकि जिन लोगों की मदद से ये सत्ता पर बैठे हैं, उनके काम इन्हें करते रहना है। कायदे से इनका काम जनता के काम करना है।

लेकिन जब ये जनता के काम करते हैं तो इसे सौगात का नाम देते हैं। फलानी परियोजना का उद्घाटन प्रधानमंत्री ने किया, इतने करोड़ की सौगात फलानी जगह को दी, ऐसे ही शीर्षकों से समाचार छपते हैं। जनता को भिखमंगी का एहसास कराया जाता है। लेकिन क्या कभी यह कहते हुए सुना गया कि फलाने उद्योगपति को प्रधानमंत्री ने इतने की सौगात दी, ढिकाने का इतना कर्ज माफ कर उस पर उपकार किया। अरबपति उद्योगपतियों के लिए ऐसी शब्दावली का इस्तेमाल कभी नहीं होगा, क्योंकि सत्ता उनके आगे भिखारियों की तरह हाथ पसारे खड़ी रहती है। सत्ता की सारी हनक आम जनता पर दिखाई देती है, भ्रष्टाचार दूर करने का ज्ञान भी उसी को मिलता है। लेकिन अमीरों से ऐसी बातें कभी नहीं की जाती।

व्यापारियों के बड़े-बड़े संगठनों में मंत्री जाते हैं तो वहां से विकास की बड़ी बातें करते हैं, मानो सारा विकास धनपतियों के बूते ही होता है, आम जनता का उसमें कोई योगदान नहीं रहता। सालों साल ऐसी ही बातें सुन-सुन कर जनता भी यही मानने लगी है कि उसके पास तो किसी चीज की शक्ति है ही नहीं। जब जनता में कुंठा बढ़ने लगती है, तो उसका ध्यान भटकाने के लिए सांप्रदायिकता को औजार की तरह इस्तेमाल किया जाता है। कश्मीर फाइल्स, केरला स्टोरीज़, और अब उदयपुर फाइल्स जैसी फिल्में बनाकर लोगों को आधे-अधूरे सच के साथ नफरत की घुट्टी पिलाई जा रही है।

यह सब भारत को बर्बाद करने की मंशा पाले ताकतों का खिलवाड़ है। हम नहीं जानते कि प्रधानमंत्री मोदी को इस बात का अहसास है या नहीं, लेकिन उनके शासन में यह खिलवाड़ खूब बढ़ा है। जबकि वैश्विक स्तर पर भारत कमजोर हुआ है, इसकी बानगी पहले ट्रंप के लगातार भारत विरोधी बयानों में सामने आई है और अब जिस तरह यमन में भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को सजा ए मौत देने का ऐलान हुआ है, वह भी दिखा रहा है कि भारत की पकड़ कमजोर हो रही है। बेशक यमन में हूती विद्रोहियों की सत्ता है और भारत के उनसे कूटनीतिक संबंध नहीं हैं, लेकिन अभी अपने सारे कूटनीतिक चैनलों का इस्तेमाल कर भारत को अपने नागरिक की जान की रक्षा करनी होगी। आधी से अधिक दुनिया में घूम चुके और 24 देशों में अपना सम्मान करवा चुके नरेन्द्र मोदी के लिए यह बड़ी परीक्षा है। वैश्विक नेताओं से दोस्ती के दावे श्री मोदी करते रहे हैं, तो अब उन दोस्तियों का सही इस्तेमाल करना चाहिए।

घरेलू और वैदेशिक दोनों मोर्चों पर श्री मोदी अपनी उपयोगिता साबित करें, वर्ना यही सिद्ध होगा कि वे देशहित के लिए दूसरों के छिपे हित साधने के लिए सत्ता पर बिठाए गए हैं।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it