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राज्यसभा में उज्ज्वल निकम

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राज्यसभा के लिए वरिष्ठ वकील उज्ज्वल निकम, केरल के समाजसेवी और शिक्षाविद सी. सदानंदन मास्टे, पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला और इतिहासकार मीनाक्षी जैन इन चार लोगों को नामित किया है

राज्यसभा में उज्ज्वल निकम
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राज्यसभा के लिए वरिष्ठ वकील उज्ज्वल निकम, केरल के समाजसेवी और शिक्षाविद सी. सदानंदन मास्टे, पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला और इतिहासकार मीनाक्षी जैन इन चार लोगों को नामित किया है। संविधान के अनुच्छेद 80 में प्रावधान है कि राष्ट्रपति राज्यसभा में 12 ऐसे सदस्यों को नामित कर सकते हैं जो साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे क्षेत्रों में विशेष ज्ञान या अनुभव रखते हों। यह कदम संसद को विविध क्षेत्रों की विशेषज्ञता से समृद्ध करता है। हालांकि विगत कई वर्षों से ये 12 नामांकन भी दलगत सोच से ही प्रभावित होने लगे हैं। अभी नामित 4 सदस्यों में सी. सदानंदन मास्टे और उज्ज्वल निकम तो घोषित तौर पर भाजपा के सदस्य रहे हैं। श्री सदानंदन केरल में भाजपा इकाई से जुड़े रहे हैं। केरल में भाजपा अपने पैर जमाने के लिए खूब हाथ-पैर मार रही है, लेकिन उसे लगातार नाकामी मिली है। अब प्रियंका गांधी के केरल पहुंचने के बाद भाजपा को अगले साल होने वाले चुनावों में चुनौतियों के बढ़ने का अंदाजा है। हाल ही में उपचुनावों में भी प्रियंका गांधी की मौजूदगी का असर भाजपा ने महसूस किया है। इसलिए अब राज्यसभा मनोनयन के जरिए भाजपा केरल में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती है।

वहीं उज्ज्वल निकम को 2024 लोकसभा चुनावों में भाजपा ने मुंबई नार्थ सेंट्रल से उम्मीदवार बनाया था, जिसमें वे कांग्रेस की वर्षा गायकवाड़ से हार गए थे। तब श्री निकम संसद नहीं पहुंच पाए तो अब भाजपा ने उन्हें दूसरे रास्ते से संसद तक पहुंचाने का रास्ता बना लिया। इसका फायदा भाजपा को महाराष्ट्र और खासतौर पर मुंबई में अपनी पकड़ और मजबूत बनाने में मिलेगा। उज्ज्वल निकम ने इस मनोनयन के बाद मीडिया से बात करते हुए बताया कि आधिकारिक सूचना आने से एक दिन पहले ही नरेन्द्र मोदी ने उन्हें फोन कर इसकी जानकारी दी थी और इस बातचीत में मराठी में ही पूछा था कि हिंदी में बात करूं या मराठी में। यह कोई सामान्य सवाल नहीं है, बल्कि इसके गहरे अर्थ महाराष्ट्र में खड़े हुए भाषा विवाद में देखे जा सकते हैं। प्राथमिक शिक्षा में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने का फैसला फड़नवीस सरकार ने लिया था, लेकिन उद्धव ठाकरे की शिवसेना और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने इस फैसले का भारी विरोध किया।

भाजपा की कवायद ने दोनों ठाकरे बंधुओं को एक साथ कर दिया, नतीजा यह हुआ कि फड़नवीस सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा। इसे भाजपा की एक बड़ी हार के तौर पर देखा जा रहा है अब शायद नरेन्द्र मोदी हिंदी बोलूं या मराठी, यह सवाल खड़ा करके इस हार की खीझ मिटा रहे हैं। हालांकि इस तंज भरे सवाल के बावजूद यह तथ्य नहीं बदलेगा कि महाराष्ट्र में पहले सत्ता चुराने और फिर विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत दर्ज करने के बावजूद ठाकरे गुट की शिवसेना के आगे भाजपा की घबराहट बरकरार है। अब अगली चुनौती बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कारपोरेशन यानी बीएमसी चुनावों की है और यहां भी शिवसेना का ही दबदबा रहा है। बीएमसी का सालाना बजट 74 हजार करोड़ से ज्यादा का होता है और यह देश में सबसे बड़े बजट वाला नगरीय निकाय है। 2014 से देश की सत्ता पर काबिज भाजपा ने कई विधानसभा और नगरीय निकायों के चुनाव जीते हैं, लेकिन बीएमसी पर कब्जे का उसका सपना अब तक पूरा नहीं हुआ है। पिछले चुनाव 2017 में हुए थे, तब अविभाजित शिवसेना को ही जीत मिली थी। शिवसेना तब एनडीए का हिस्सा थी, लेकिन बीएमसी में उसने अकेले चुनाव लड़ा था। इस बार भी शिंदे गुट की शिवसेना भाजपा से अलग ही बीएमसी चुनाव लड़ सकती है, लेकिन उद्धव ठाकरे के साथ तब एकनाथ शिंदे थे तो अब राज ठाकरे हो सकते हैं। यानी उनकी ताकत अब भी बड़ी रहेगी। ऐसे में नरेन्द्र मोदी अब दूसरे उपायों को आजमाने में लगे हैं, जिससे मुंबई पर पकड़ बढ़े।

उज्ज्वल निकम का मनोनयन ऐसा ही एक उपाय दिख रहा है। श्री निकम 1991 का कल्याण बम धमाका, 1993 का मुंबई सीरियल ब्लास्ट, 2003 का गेटवे ऑफ इंडिया बम धमाका, 26/11 मुंबई आतंकी हमला, प्रिया दत्त अपहरण कांड और नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड जैसे कई हाई-प्रोफाइल मामलों में अभियोजन का नेतृत्व कर चुके हैं। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा में उज्ज्वल निकम तब आए, जब उन्होंने कहा था कि मुंबई हमलों के दोषी अजमल कसाब को जेल में बिरयानी खिलाई जा रही है। गौरतलब है कि इस हमले में शामिल सारे आतंकवादी मारे गए थे, लेकिन अजमल कसाब को मुंबई पुलिस में बतौर सहायक इंस्पेक्टर तैनात रहे तुकाराम ओंबले ने जिंदा पकड़ा, हालांकि इसमें खुद उनकी जान चली गई, क्योंकि कसाब अपनी एके 47 से अंधाधुंध गोलियां बरसा रहा था, जबकि श्री ओंबले के पास केवल एक लाठी थी, जिससे उन्होंने कसाब को रोके रखा, खुद गोलियां खाईं, लेकिन उसे पकड़ लिया।

शहीद तुकाराम ओंबले को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया है। उनकी बहादुरी और सर्वोच्च त्याग से भारत पर हुए बड़े आतंकी हमले के दोषी को पकड़ा जा सका, जिससे इस हमले के कई भेद सामने आए। कसाब को पूरी न्यायिक प्रक्रिया के बाद 21 नवंबर 2012 को फांसी दे दी गई। लेकिन इन चार सालों में जब तक कसाब जेल में रहा, यूपीए सरकार के खिलाफ इस बात को लेकर नाराजगी बनी कि उसने एक आतंकी को जेल में बिरयानी खिलाई है। जबकि इस झूठ के बारे में 2015 में खुद उज्ज्वल निकम ने खुलासा किया है। जयपुर में आतंकवाद विरोधी अंतररराष्ट्रीय सम्मेलन में हिस्सा लेने आए श्री निकम ने कहा था कि , 'कसाब ने कभी भी बिरयानी की मांग नहीं की थी और न ही सरकार ने उसे बिरयानी परोसी थी। मुकदमे के दौरान कसाब के पक्ष में बन रहे भावनात्मक माहौल को रोकने के लिए मैंने इसे गढ़ा था।' श्री निकम के मुताबिक कसाब को आतंकवादी मानने पर कुछ लोग सवाल उठा रहे थे, उसके लिए मीडिया में सहानुभूति बन रही थी। श्री निकम ने कहा कि जब उन्होंने मीडिया से यह सब कहा तो एक बार वहां फिर पैनल चर्चाएं शुरू हो गईं और मीडिया दिखाने लगा कि एक खूंखार आतंकवादी जेल में मटन बिरयानी की मांग कर रहा है, जबकि न उसने बिरयानी मांगी, न सरकार ने उसे बिरयानी खिलाई थी।

उज्ज्वल निकम ने तो बड़ी आसानी से झूठ बोलकर उसका खुलासा भी कर दिया, लेकिन इसके कारण कांग्रेस सरकार और खासकर सोनिया गांधी पर कीचड़ उछालने का मौका भाजपा को मिला और यूपीए सरकार को सत्ता से हटाने में मदद मिली। सियासी स्तर पर तो यह घिनौना खेल भाजपा ने खेला ही, खुद उज्ज्वल निकम ने एक खूंखार आतंकी के लिए ऐसा झूठ बोलकर देश की आतंकविरोधी नीति के साथ खिलवाड़ किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को दागदार किया। भाजपा 2014 में सत्ता में आई और 2016 में ही उज्जवल निकम को पद्म श्री से सम्मानित किया गया था, फिर 2024 में चुनाव का टिकट मिला और अब सीधे राज्यसभा का मनोनयन। भाजपा में झूठ बोलने वालों को सम्मानित किया जाता है, यह बात खुद नरेन्द्र मोदी ने इस बार साबित की है।


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