ट्रंप और नेतन्याहू ईरान के आगे झुके
नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली, यह बात इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर चरितार्थ हो रही है

ट्रंप और नेतन्याहू ईरान के आगे झुकेनौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली, यह बात इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर चरितार्थ हो रही है। ट्रंप के खिलाफ उनके पहले कार्यकाल में दो बार महाभियोग प्रस्ताव लाया जा चुका है, कई कानूनी पचड़ों में ट्रंप फंसे हैं, कब ट्रंप सच बोलते हैं, कब दुनिया को बरगलाते हैं इसका ठिकाना नहीं, लेकिन अब वो इजरायल और ईऱान को धर्म और सत्य के मार्ग से भटका हुआ बताकर उन्हें सद्बुद्धि देने की प्रार्थना ईश्वर से कर रहे हैं।
दरअसल भारतीय समयानुसार सोमवार देर रात से लेकर मंगलवार तक ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ट्रुथ पर कम से कम 10 पोस्ट किए, जिसमें उन्होंने ईरान और इजरायल के बीच युद्धविराम का ऐलान किया। एक पोस्ट में ट्रंप ने कहा, 'इजराइल और ईरान लगभग एक साथ मेरे पास आए और 'शांति' की अपील की। मुझे यह पता था कि अब शांति का समय आ गया है। दुनिया और मध्य पूर्व ही असली विजेता हैं!'
उन्होंने लिखा है, 'दोनों देश भविष्य में जबरदस्त प्रेम, शांति और समृद्धि देखेंगे. उन्हें बहुत कुछ हासिल करना है और अगर वे धर्म और सत्य के मार्ग से भटक गए तो उन्हें बहुत कुछ खोना पड़ेगा।'
एक अन्य पोस्ट में ट्रंप ने लिखा-सभी को बधाई! इजरायल और ईरान के बीच पूरी तरह से सहमति बन गई है कि 12 घंटों के लिए पूर्ण और संपूर्ण युद्ध विराम होगा (अब से लगभग 6 घंटे बाद, जब इजरायल और ईरान अपने अंतिम मिशनों को पूरा कर लेंगे!), इसके बाद ईरान-इजरायल के युद्ध को समाप्त माना जाएगा! आधिकारिक तौर पर ईरान युद्ध विराम की शुरुआत करेगा और 12वें घंटे में इजरायल युद्ध विराम की शुरुआत करेगा। 24वें घंटे में 12 दिवसीय युद्ध के आधिकारिक अंत को दुनिया द्वारा सलामी दी जाएगी।
मैं दोनों देशों इजरायल और ईरान को बधाई देना चाहता हूं कि उनके पास 12 दिवसीय युद्ध को समाप्त करने के लिए सहनशक्ति, साहस और बुद्धिमत्ता है। यह युद्ध सालों तक चल सकता था और पूरे मध्य पूर्व को नष्ट कर सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और न ही कभी होगा!
इसी तरह के कई और पोस्ट ट्रंप ने लिखे हैं, जिसमें जाहिर हो रहा है कि वो एक तरफ दुनिया का सुप्रीम लीडर खुद को मान चुके हैं और दूसरी तरफ उन्हें हर हाल में नोबेल शांति पुरस्कार चाहिए। पता नहीं ट्रंप के मन में ये कैसी कुंठा है कि वे हर वक्त अपना वर्चस्व दिखाने के साथ-साथ दूसरों से अपने लिए तारीफें सुनना चाहते हैं। पाकिस्तान जैसे देश ट्रंप की इस ख्वाहिश को पूरा भी करते हैं।
ट्रंप ने जिस अंदाज में इजरायल और ईरान के बीच युद्धविराम का ऐलान किया, उसी तरह भारत और पाकिस्तान के बीच भी किया था। जिसमें पाकिस्तान तो पूरी तरह अमेरिकी पाले में दिखा, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अब तक इसका खुलकर विरोध नहीं किया है। पिछले हफ्ते ट्रंप से फोन पर हुई चर्चा में दावा है कि श्री मोदी ने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं किया, मगर अमेरिका ने ऐसा कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया और अब भी ट्रंप यही दावा कर रहे हैं।
इधर इजरायल ने युद्धविराम मान तो लिया है, लेकिन उसकी अकड़ अब भी दिख रही है, इजरायल के प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से कहा गया है कि सेना ने अपने सभी लक्ष्य साध लिए हैं। साथ ही ईरान को चेतावनी दी है कि अगर वह युद्धविराम का उल्लंघन करेगा तो फिर जवाबी कार्रवाई होगी। वहीं ईरान ने इजरायल पर ट्रंप के ऐलान के बाद कुछ और हमले किए और बता दिया कि अपने लिए फैसला वह खुद लेगा। ईरान के विदेश मंत्री सईद अब्बास अराग़ची ने साफ कहा है कि अगर इजरायल ने सैन्य अभियान बंद कर दिया, तो 'हमारा भी किसी तरह की जवाबी कार्रवाई करने का कोई इरादा नहीं है।' ईरान का साफ कहना है कि हमले की शुरुआत इजरायल ने की, तो रोकने की पहल भी उसे ही करनी होगी।
बहरहाल, डोनाल्ड ट्रंप सोमवार तक ईरान को परिणाम भुगतने और सत्ता बदलने की धमकी दे रहे थे, फिर एक दिन में उनके विचार कैसे बदल गए, इसके प्रत्यक्ष तौर पर तीन कारण दिखाई देते हैं। पहला, ईरान पर हमले के बाद अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में ट्रंप का विरोध शुरु हो गया। दूसरा, ईरान ने होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने का फैसला लिया, जिसके बाद वैश्विक बाजार में घबराहट दिखी, कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने लगीं। फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से जोड़ने वाले इस संकरे से जलमार्ग से 20-25 प्रतिशत तेल और गैस विश्व में भेजा जाता है। इसे बंद करने से एशिया, यूरोप, उत्तरी अमेरिका सब पर असर पड़ता। अमेरिका ने तो इसके बाद सीधे चीन से अपील की थी कि वह होर्मुज का रास्ता बंद करने से ईरान को रोके। और तीसरा बड़ा कारण ईरान का कतर के अल उदैद एयरबेस पर हमला करना था, जो मध्यपूर्व में अमेरिका का अहम सैन्य अड्डा है। कुछ दिनों पहले ही अमेरिका ने यहां से अपने विमान हटा लिए थे। पिछले महीने ही डोनाल्ड ट्रंप ने इस बेस का दौरा भी किया था। अमेरिका के लिए रणनीतिक तौर पर अहम इस बेस को निशाना बनाकर ईरान ने जाहिर कर दिया कि वह न केवल इजरायल बल्कि अमेरिका पर भी हमला कर सकता है और उसे किसी तरह भी झुकाया नहीं जा सकता। इसके बाद ही डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से युद्ध विराम की बात कही जाने लगी।
हालांकि कतर ने इस हमले को अपनी स्वतंत्रता, संप्रभुता पर हमला बताया तो ईरान ने साफ कर दिया कि उसका मकसद केवल अमेरिकी ठिकाना है, और कुछ नहीं। जाहिर है ईरान ने एक बार फिर इजरायल और अमेरिका को गलत साबित किया है, जो दूसरों की संप्रभुता की धज्जियां उड़ाते हुए हमले करते हैं। इजरायल-ईरान हमले में ईरान के साथ मध्यपूर्व के दूसरे देशों को भी अपने अस्तित्व की चिंता होने लगी और उन्हें संभवत: यह समझ आ गया कि ट्रंप किसी के सगे नहीं हैं। आज वे उनसे लाभ ले रहे हैं और कल को उन पर भी हमला बोल सकते हैं। ट्रंप ने जिस तरह ईरान को फिर से महान बनाने के लिए सत्ता परिवर्तन की बात कही थी, उससे भी खाड़ी देश सावधान हो गए। इसी तरह यूरोप के देश भी जो अमूमन अमेरिका के साथ खड़े रहते हैं, इस बार उन्होंने हाथ पीछे खींच लिए, क्योंकि उन्हें समझ आ गया कि ट्रंप अकारण दुनिया को युद्धों में उलझा रहे हैं और खुद शांति की बात करते हैं। ईरान ने पिछले 13-14 दिनों में जिस तरह सिर ऊंचा रखकर इस लड़ाई को लड़ा है, उससे एक तरफ छोटे देशों में नया स्वाभिमान जागा है और अमेरिका का डर दूर हुआ है। वहीं इजरायल के अभेद्य होने का जो गुब्बारा फुलाया गया था, वह भी फूट गया। कुल मिलाकर वियतनाम का इतिहास फिर दोहाराया जा रहा है।


