क्रिसमस पर उत्पात
दुनिया भर में क्रिसमस मनाने की खबरों के बीच भारत में ईसाईयों पर बढ़ते हमले चर्चा में आ गए हैं

दुनिया भर में क्रिसमस मनाने की खबरों के बीच भारत में ईसाईयों पर बढ़ते हमले चर्चा में आ गए हैं। खुद को हिंदू धर्म के रक्षक कहने वाले लोग जमकर अपने ही धर्म और संविधान दोनों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। संविधान सभी धर्म के लोगों को बराबरी का हक देता है, लेकिन नरेन्द्र मोदी के बनाए नए भारत में ईसाइयों के लिए कोई जगह नहीं है, ऐसा हिंदुत्ववादी गुंडे कह रहे हैं। ओडिशा, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, राजस्थान, छत्तीसगढ़ ऐसे तमाम भाजपा शासित राज्यों से ईसाइयों को प्रताड़ित करने, चर्च में तोड़-फोड़ करने या उन लोगों पर हमले की खबरें आई हैं, जिन्होंने ईसाई न होते हुए भी क्रिसमस की खुशियां मनाई हैं।
रायपुर के मैग्नेटो मॉल में क्रिसमस के लिए की गई सजावट को गुंडों ने तोड़-फोड़ कर नष्ट कर दिया। इसमें जो आर्थिक नुकसान हुआ वो तो अलग ही है, लेकिन उससे ज्यादा शहर की धार्मिक सद्भाव वाली छवि को क्षति पहुंची है। रायपुर में हमेशा से सभी धर्मों के लोग मिल जुल कर रहते आए हैं। होली और क्रिसमस, ईद या मोहर्रम सब परंपरागत तौर पर मनाए जाते रहे, लेकिन इस बार यहां की धार्मिक सद्भाव की चादर तार-तार होती दिखी है। राज्य में पहले भी 15 साल भाजपा की सरकार रही, मगर अभी जो नकारात्मक बदलाव दिखा है, क्या उसके पीछे केंद्र की मोदी सरकार का बढ़ावा है, यह विचारणीय है। इसी तरह ओडिशा भी अब फिर से धार्मिक भेदभाव को लेकर चर्चा में है। इसी ओडिशा में कुष्ठ रोगियों की सेवा करने वाले फादर ग्राहम स्टेंस को उनके दो मासूम बच्चों के साथ जिंदा जला दिया गया था। अब फिर से वैसी ही नफरत उभरती दिख रही है। सड़क किनारे सैंटा की टोपी बेचने वाले गरीब रेहड़ीवालों को गुंडे धर्म के नाम पर धमकाते दिखे। उत्तरप्रदेश के बरेली में चर्च में न केवल तोड़फोड़ की गई, बल्कि वहीं हनुमान चालीसा का पाठ भी किया गया, मानो इन गुंडों के लिए मंदिरों के दरवाजे बंद हो गए हैं। मध्यप्रदेश के जबलपुर में तो भाजपा की जिला उपाध्यक्ष अंजू भार्गव ने चर्च जाकर क्रिसमस के जश्न में दखल डाला और आरोप लगा कि नेत्रहीन छात्रों को ईसाई बनने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है जिसमें अंजू भार्गव एक नेत्रहीन महिला से हाथापाई करती नज़र आ रही हैं। हालांकि अब उस महिला ने भी कहा है कि क्रिसमस मनाने से धर्म नहीं बदल जाता, और वहां किसी ने कोई दबाव नहीं डाला। उन्होंने कहा कि वो क्रिसमस मनाती हैं, इसका मतलब ये नहीं कि उन्होंने अपना धर्म बदल लिया है।
ये सारी घटनाएं नरेन्द्र मोदी की जानकारी में ही हो रही हैं, क्योंकि देश के प्रधानमंत्री होने के नाते उन तक तो सारी खबरें पहुंचती ही होंगी। पता नहीं फिर कैसे वो इन हमलों से आंख फेरकर खुद चर्च जाकर क्रिसमस मनाते हुए फोटो खिंचवाते हैं और बताते हैं कि ईसाई समुदाय से उनका नाता कितना पुराना है। अगर नरेन्द्र मोदी ये सोचते हैं कि ऐसा करने से दुनिया में उनकी छवि धार्मिक सद्भाव वाले नेता की बनेगी तो वे गलत हैं। क्योंकि उनकी चर्च की तस्वीरों के साथ वो वीडियो भी दुनिया भर में पहुंच गए हैं, जिनमें भारत में ईसाइयों को डराया-धमकाया जा रहा है। आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं कि मोदी शासनकाल में अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़े हैं।
29 नवंबर, 2025 को 18 ईसाई संगठनों के संयुक्त आह्वान पर करीब दिल्ली में संसद के पास एक प्रदर्शन हुआ था जिसमें शिकायत की गयी कि सरकार ईसाइयों के खिलाफ़ बढ़ती हिंसा और भेदभाव को रोकने में नाकाम रही है। यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) ने दावा किया है कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में ईसाइयों के खिलाफ़ हमलों में 500 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। फ़ोरम का आरोप है कि-2014 में ईसाइयों के खिलाफ़ हिंसा की घटनाएं 139 थीं, जो 2024 तक बढ़कर 834 हो गईं यानी करीब 500 प्रतिशत की वृद्धि हुई। पिछले 10 वर्षों में देशभर में ईसाइयों के खिलाफ़ 4,959 घटनाएं दर्ज की गई हैं, यानी औसतन हर साल लगभग 70 मामले सामने आए हैं। ईसाई संगठनों के प्रतिनिधियों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से बार-बार हिंसा रोकने की अपील की गई,लेकिन अब तक कोई नतीजा नहीं निकला।
मोदी का यह नया भारत और इस नए भारत का हिंदू धर्म उस हिंदू धर्म से तो बिल्कुल अलग है, जिसकी व्याख्या प्राचीन ग्रंथों में की गई है, जिसके बारे में 11 सितंबर 1893 को शिकागो की विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि- 'मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूँ जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति दोनों का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, बल्कि सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।'
इसके बाद 1900 में लॉस एंजिल्स में स्वामीजी ने कहा था कि 'पूरब के व्यक्ति के रूप में अगर मुझे नासरत के यीशु की पूजा करनी हो तो मेरे पास केवल एक ही तरीका है - उन्हें भगवान के रूप में पूजना, और कुछ नहीं! ज्यदि मैं फिलिस्तीन में रहता, उन दिनों में जब नासरत के यीशु जीवित थे, तो मैं उनके चरणों को अपने आँसुओं से नहीं, बल्कि अपने हृदय के रक्त से धोता!'
स्वामीजी ने यीशु के चरणों को अपने हृदय के रक्त से धोने की इच्छा जताई थी, लेकिन मोदी शासन में पल रहे हिंदुत्ववादी गुंडे दूसरे धर्म के लोगों का रक्त बहाने को आतुर हैं। क्योंकि वो स्वामी विवेकानंद को नहीं गोलवलकर को मानते हैं। गोलवलकर की किताब बंच ऑफ थॉट्स के अध्याय इंटरनल थ्रेट्स यानी आंतरिक खतरे में मुसलमानों, ईसाइयों और कम्युनिस्ट्स को भारत के लिए आंतरिक खतरा बताया है। गोलवलकर लिखते हैं कि ईसाई और मुस्लिम 'विदेशी ताक़त' हैं, जो हिंदू संस्कृति को स्वीकार नहीं करते। उन्हें या तो हिंदू संस्कृति स्वीकार करना होगा देश छोड़ना होगा।
अब नरेन्द्र मोदी बताएं कि उनकी राय में स्वामी विवेकानंद सही हैं या गोलवलकर का आह्वान सही है कि हिंदू संस्कृति न मानने वाले लोगों को देश से बाहर किया जाए। और हिंदू संस्कृति क्या है, इसका फैसला धार्मिक गुरु, शंकराचार्य आदि करेंगे या भाजपा तय करेगी।


