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भारत-नाइजीरिया संबंधों में विस्तार की असीम संभावनाएं

नाइजीरिया संघीय गणराज्य के राष्ट्रपति बोला अहमद टीनूबू के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 16 और 17 नवंबर को नाइजीरिया की यात्रा पर गए थे

भारत-नाइजीरिया संबंधों में विस्तार की असीम संभावनाएं
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- डॉ.पार्वती वासुदेवन व डॉ. ए वासुदेवन

नाइजीरिया ने अफ्रीकी देशों को कई तरह की मदद दी है जिसके कारण नाइजीरिया के आर्थिक प्रभुत्व पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। इसकी अनुमानित आबादी 23.46 करोड़ है जो भारत की अनुमानित आबादी का लगभग 16 प्रतिशत और अमेरिकी आबादी का करीब 60 फीसदी से है। यह महाद्वीप की सबसे बड़ी आबादी है और यही कारण है कि नाइजीरिया को 'अफ्रीकी भीम' कहा जाता है।

नाइजीरिया संघीय गणराज्य के राष्ट्रपति बोला अहमद टीनूबू के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 16 और 17 नवंबर को नाइजीरिया की यात्रा पर गए थे। 17 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की इस यात्रा ने नाइजीरिया के साथ भारत की 'रणनीतिक साझेदारी' को आगे बढ़ाया है। नाइजीरियाई अर्थव्यवस्था अफ्रीकी महाद्वीप में सबसे तेजी से बढ़ती और चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।

अगर 21वीं सदी वास्तव में वैश्विक दक्षिण से संबंधित है तो भारत और नाइजीरिया के बीच संबंधों को शैक्षिक छात्रवृत्ति, कच्चे तेल और सैन्य प्रशिक्षण के चश्मे से परे देखा जाना चाहिए। इन संबंधों में एक नया अध्याय तब शुरू हुआ जब 2023 में नई दिल्ली में आयोजित जी-20 सम्मेलन ने उच्च तालिका में स्थायी स्थान के साथ अफ्रीकी प्रतिनिधित्व का स्वागत किया।

भारत और नाइजीरिया के पास मानव गतिविधियों के सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में एक-दूसरे को देने के लिए बहुत कुछ है। नाइजीरिया इस समय अफ्रीका में तीसरा सबसे बड़ा विनिर्माण क्षेत्र है जो और आगे बढ़ना चाहता है। अन्य क्षेत्रों में भी तेजी से प्रगति हुई है। उदाहरण के लिए डांगोट रिफाइनरियों के आगमन के कारण पेट्रोलियम वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए तैयार नाइजीरिया के साथ भारत और बाकी दुनिया के साथ इसके अंतरराष्ट्रीय संबंधों की प्रकृ ति अनिवार्य रूप से एकदम बदल जाएगी। यह कायापलट किसी सीमा तक उन विचारों द्वारा निर्देशित होगी जो अमेरिका में नए ट्रम्प प्रशासन की विशेषता होगी।

भारतीय नजरिए से देखें तो मध्य पूर्व में तनाव, यूक्रेन-रूस संघर्ष और अपनी विस्तारवादी नीतियों के साथ चीनी कूटनीति के अनिश्चित आयामों के कारण दुनिया की भू-राजनीति पर असर की वजह से अफ्रीकी महाद्वीप के साथ नए संबंधों बनाने के लिए भारत विवश हुआ है।

नाइजीरिया ने अफ्रीकी देशों को कई तरह की मदद दी है जिसके कारण नाइजीरिया के आर्थिक प्रभुत्व पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। इसकी अनुमानित आबादी 23.46 करोड़ है जो भारत की अनुमानित आबादी का लगभग 16 प्रतिशत और अमेरिकी आबादी का करीब 60 फीसदी से है। यह महाद्वीप की सबसे बड़ी आबादी है और यही कारण है कि नाइजीरिया को 'अफ्रीकी भीमÓ कहा जाता है। देश में वैज्ञानिक और शैक्षणिक क्षेत्रों में प्रगति के बहुत मौके हैं। इसके पास जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग कर कौशल, आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक सुधार, सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र आतंकवादी समूहों- मुख्य रूप से बोको हरम की हिंसा पर लगाम लगाने के अवसर हैं।

फिर भी नाइजीरिया की प्रगति में एक और बाधा का वहां का कमजोर राजनीतिक और आर्थिक शासन है जिसमें भ्रष्टाचार व्याप्त है। न्याय व्यवस्था भी अन्य संस्थानों की तरह शक्तिशाली अभिजात वर्ग की कैद में हैं। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि पिछले दस वर्षों में नाइजीरिया के आर्थिक संकेतकों में उच्च मुद्रास्फीति दर, कम वृद्धि और विदेशी मुद्रा भंडार के अपेक्षाकृत अल्प भंडार का बोलबाला है। इस वक्त वार्षिक मुद्रास्फीति 30 प्रति सैकड़ा से अधिक, वार्षिक वृद्धि लगभग 3 प्रश और विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 40 अरब अमेरिकी डॉलर है। विदेशी मुद्रा बाजार दर 1660 नायरा प्रति 1 अमेरिकी डॉलर से अधिक की होने के कारण आर्थिकविविधीकरण और नाइजीरिया की उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कच्चे माल और इनपुट के आयात के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं देती है।

इसके बावजूद जैसा कि ईंधन सब्सिडी के उन्मूलन से स्पष्ट है कि वर्तमान प्रशासन यह उम्मीद दिलाता है कि प्रतिबद्धता हो तो विरोध के बाद भी सुधार किए जा सकते हैं। बैंकों के दबदबे वाला वित्तीय क्षेत्र पहले से बेहतर स्थिति में है। यह नई तकनीकों को अपना सकता है तथा साइबर धोखाधड़ी और हमलों को दूर करने के लिए निश्चित उपायों के साथ भुगतान के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।

भारत ने पिछले 10 वर्षों में उल्लेखनीय आर्थिक रिकॉर्ड बनाया है और 2030 से पहले दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखा है। करीब 4 फीसदी दर के साथ मध्यम अवधि में मुद्रास्फीति के सालाना 7-8 प्रश की दर से बढ़ने की उम्मीद है। वर्तमान विदेशी मुद्रा भंडार 700 अरब अमेरिकी डॉलर के करीब है। नई प्रौद्योगिकियां बहुत विकसित हैं और मध्यम से दीर्घकालिक अवधि के भीतर पूरे आर्थिक स्थान पर कब्जा कर लेंगी। तो भी इस स्थिति पर पहुंचने में कच्चे माल और ऊर्जा आपूर्ति की कमी महत्वपूर्ण बाधा है।

इस पृष्ठभूमि पर प्रधानमंत्री की यह यात्रा भारत और नाइजीरिया के संबंधों को आगे बढ़ा रही है। यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि दोनों देशों को सुधारों व आर्थिक सुशासन की एक विस्तृत श्रृंखला पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा। उन्हें आर्थिक बहिष्कार को खत्म करने, रोजगार की संभावनाओं को बढ़ाने तथा आर्थिक असमानताओं को कम करने में भी निवेश करना होगा।

दोनों देशों के बीच सहयोग कुछ मुद्दों पर आधारित है जिन्हें अबुजा में भारत और नाइजीरिया की सरकारों के प्रमुखों की बैठक में उठाया गया था। उनमें से मध्यम अवधि में ऊर्जा की आपूर्ति है। इसका मतलब यह है कि जब तक नाइजीरिया पेट्रोलियम उत्पादों के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं हो जाता तब तक उसे भारत से पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर निर्भर रहना होगा जबकि भारत अपनी बढ़ती तेल मांग को पूरा करने के लिए कच्चे तेल का आयात कर सकता है।

दोनों देशों को चिप्स और सेमी-कंडक्टर के वर्चस्व वाले नए तकनीकी विश्व में विकास के लिए महत्वपूर्ण खनिजों की उपलब्धता का पता लगाने की आवश्यकता है। नाइजीरिया में मिले भूगर्भीय खोजों की जानकारी आसानी से उपलब्ध नहीं होती और यहीं भारत के सहयोग पर नाइजीरिया निर्भर रह सकता है।

नाइजीरिया में इस्पात और बसों, मेट्रो व इंटरसिटी रेलवे सहित सार्वजनिक परिवहन जैसे बुनियादी ढांचे वाले कुछ महत्वपूर्ण उद्योग ज्यादा सक्रिय तथा विकसित नहीं हैं। इन क्षेत्रों में श्रम सुधार, भ्रष्टाचार के रिसाव व लूटमार को जड़ से खत्म करने के लिए सख्त पेशेवर प्रतिबद्धता मजबूत करने की भी आवश्यकता है।

इन क्षेत्रों में सहयोग संधि में कुछ गारंटी खंडों को प्रभावी कर भारत पर नाइजीरिया निर्भर हो सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि स्टील और सार्वजनिक परिवहन दोनों क्षेत्रों में नाइजीरिया का अनुभव काफी निराशाजनक रहा है। दोनों देशों के बीच साझेदारी में रक्षा, सैन्य हथियार और प्रशिक्षण से संबंधित मुद्दे प्रमुख रूप से बने हुए हैं। फिर भी, आपसी विश्वास के आधार पर सार्थक सहयोग में सुधार के लिए दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान को आगे बढ़ाना होगा।

(पार्वती वासुदेवन मुंबई विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर थीं। ए वासुदेवन आरबीआई के कार्यकारी निदेशक और सेंट्रल बैंक ऑफ नाइजीरिया के गवर्नर के विशेष सलाहकार थे। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)


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