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कायम रहेंगे अमेरिका-भारत के गर्मजोशी भरे रिश्ते

अमेरिका के 47 वें राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रम्प के फिर से चुने जाने के साथ हाल के वर्षों में नई दिल्ली के प्रति वाशिंगटन के सौहार्द्रपूर्ण संबंधों की गर्मजोशी कायम रहने की संभावना है

कायम रहेंगे अमेरिका-भारत के गर्मजोशी भरे रिश्ते
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- मयंक छाया

मार्च 2000 में पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा के बाद से दोनों लोकतंत्रों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में गहरा बदलाव आया है। यह पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर के 1978 में भारत आने के लगभग चौथाई सदी के बाद की बात है। क्लिंटन के उत्तराधिकारियों जॉर्ज डब्ल्यू बुश, बराक ओबामा, ट्रम्प और राष्ट्रपति जो बाइडेन के तहत ये संबंध उत्तरोत्तर मजबूत हुए हैं।

अमेरिका के 47 वें राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रम्प के फिर से चुने जाने के साथ हाल के वर्षों में नई दिल्ली के प्रति वाशिंगटन के सौहार्द्रपूर्ण संबंधों की गर्मजोशी कायम रहने की संभावना है। ट्रम्प और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच बहुचर्चित व्यक्तिगत 'दोस्ती' से द्विपक्षीय कूटनीति में आसानी बढ़ने की उम्मीद है।

बहरहाल, मार्च 2000 में पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा के बाद से दोनों लोकतंत्रों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में गहरा बदलाव आया है। यह पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर के 1978 में भारत आने के लगभग चौथाई सदी के बाद की बात है। क्लिंटन के उत्तराधिकारियों जॉर्ज डब्ल्यू बुश, बराक ओबामा, ट्रम्प और राष्ट्रपति जो बाइडेन के तहत ये संबंध उत्तरोत्तर मजबूत हुए हैं।

एक मायने में वैश्विक परिस्थितियों में आए बदलाव ने भारत-अमेरिका संबंधों को पिछले तीन दशकों में चीन के नाटकीय उदय को समानांतर ढंग से संगठित कर दिया है। अपने वैश्विक प्रभाव में चीन अब व्यावहारिक रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका को टक्कर दे रहा है। चीन के संदर्भ में यह अनुमान लगाया गया है कि यह उम्मीद करना उचित होगा कि व्हाइट हाउस में न तो हैरिस और न ही ट्रम्प वास्तविक रूप से अपनी नीति और दिशा बदलते।

उल्लेखनीय है कि बीजिंग को वाशिंगटन अपना वैश्विक अभिशाप मानता है और जिसके अगले दो दशकों या उससे अधिक समय तक बने रहने की संभावनाएं हैं इसलिए कोई भी अमेरिकी प्रशासन निकट भविष्य में भारत के साथ अपने संबंधों को कमजोर करने का जोखिम नहीं उठाएगा। भारत-चीन ने हाल में चार साल पुराने अपने सीमा विवाद को समाप्त कर दिया है लेकिन संबंधों में हालिया गर्माहट के बावजूद यह स्थिति नहीं बदलेगी। इस समझौते के कारण पैदा हुए नए हालात भारत को अमेरिका के साथ मजबूत रणनीतिक संबंधों, रूस के साथ ऐतिहासिक रूप से मजबूत मित्रता और अब चीन के साथ रिश्तों की अनूठी स्थिति में रखता है।

उम्मीद की जा रही है कि ट्रंप के नए प्रशासन में मोदी सरकार के प्रति निवर्तमान बाइडेन प्रशासन का सोचा समझा व्यावहारिक दृष्टिकोण जारी रहेगा। बाइडेन कई मोर्चों पर भारत-अमेरिका संबंधों को ऊंचा उठाते थे और व्यक्तिगत रूप से गहराई से जुड़े हुए थे। इसके विपरीत ट्रम्प के बारे में धारणा है कि टैक्स के मुद्दे पर अपनी असाधारण आसक्ति के अलावा एक क्षेत्र के रूप में दक्षिण एशिया के साथ और उसके केन्द्र के तौर पर उनके भारत के साथ ज्यादा जुड़ाव की कम उम्मीद है।

ट्रम्प ने द्विपक्षीय व्यापार संबंधों में भारत को च्एक प्रमुख 'उल्लंघनकर्ता' कहा है और भारत सहित दुनिया में कहीं से भी सभी आयातों पर एक पूर्ण टैरिफ संरचना की धमकी दी है। हालांकि यह देखा जाना बाकी है कि क्या वे वास्तव में उस खतरे को अंजाम देंगे जिस हद तक वे सभी देशों पर 20 प्रतिशत और चीन पर 60 फीसदी के बीच दावा कर चुके हैं। इसके अलावा, उनके नई दिल्ली के प्रति मैत्रीपूर्ण होने की संभावना है। व्हाइट हाउस में वापस आने पर अमेरिका को नया रूप देने की उनकी कट्टरपंथी योजनाओं को देखते हुए उनकी योजना में भारत के तुरंत शामिल होने की उम्मीद नहीं है।

ब्लूमबर्ग इकानॉमिक्स के एक अनुमान के अनुसार, ट्रम्प टैरिफ के कारण भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2028 तक 0.1 प्रश कम होगा। यह छोटी संख्या है लेकिन द्विपक्षीय संबंधों पर इसका मनोवैज्ञानिक असर पड़ सकता है।

भारत के संदर्भ में ट्रम्प का एक ऐसा पहलू है जिसे अक्सर नज़रंदाज़ किया जाता है, वह है भारत में उनके व्यावसायिक हित। पुलित्जर पुरस्कार विजेता पत्रकार व लेखक डेविड के जॉनस्टन 1988 के बाद से ट्रम्प को सबसे लंबे समय तक कवर कर रहे हैं और उनका कहना है कि 'उनके कुछ सबसे लाभदायक निवेश भारत में हैं जहां इमारतों पर उनका नाम है। भारत के प्रति रुख का उनके कारोबारी हितों पर मामूली असर पड़ सकता है।'

ट्रम्प प्रशासन के दौरान द्विपक्षीय संबंधों का एक क्षेत्र-इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नालॉजी (आईसीईटी) है जिस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है। तथ्य यह है कि आईसीईटी अंतरिक्ष, सेमीकंडक्टर और उन्नत टेलीकम्युनिकेशन जैसी शक्तिशाली प्रौद्योगिकियों के स्पेक्ट्रम पर रणनीतिक सहयोग पर केंद्रित है और यह एक तरह से इसकी अपनी ढाल है। यह विशेष रूप से इसलिए है क्योंकि चीन इन क्षेत्रों में सफलता हासिल करने के लिए बहुत तेजी से भाग रहा है। इसलिए भारत तथा संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों के लिए सहयोग करना महत्वपूर्ण है ताकि बीजिंग उनसे आगे निकल न जाए। समान रूप से अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र- आर्टिफिशियल इंटलिजेन्स, क्वांटम कंप्यूटिंग, जैव प्रौद्योगिकी एवं क्लीन एनर्जी (क्लीन या कार्बन मुक्त एनर्जी का अर्थ इस प्रकार से विद्युत उत्पादन करने से है जिसमें इस दौरान कार्बन डाई आक्साईड जैसी ग्रीनहाऊस गैसों का सीधा उत्पादन न होता हो) हैं। ये सभी क्षेत्र अगले 100 वर्षों तक दुनिया के काम करने के तरीके को निर्धारित करेंगे।

वैश्विक मुद्दा न होने के कारण भारत के समस्याग्रस्त पड़ोसियों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान तथा कुछ हद तक श्रीलंका और नेपाल की ओर ट्रम्प विशेष ध्यान देगें- इसकी संभावना नहीं है। यदि हैरिस सत्ता में आती है तो यह अलग विषय हो सकता था, भले ही हैरिस ने पद भार संभालने की स्थिति में तुरंत बाद इन मुद्दों को किसी विशिष्ट समय में शामिल करने का विकल्प नहीं चुना हो।

ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में बाइडेन की तुलना में शायद सबसे बड़ा अंतर जलवायु परिवर्तन से निपटने के मामले में होगा जिसके नतीजे भारत और पूरे दक्षिण एशिया में हर दिन महसूस किए जाते हैं। ट्रम्प ने जलवायु परिवर्तन को एक 'धोखाधड़ी' कहा है और वे इसके बारे में ज्यादा परवाह नहीं करते हैं।

इस राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान ऐतिहासिक रूप से भारत का उल्लेख बहुत मामूली रूप से हुआ। ट्रंप ने व्यापार के बारे मे उपहासात्मक तरीके से भारत का नाम लिया जबकि उप राष्ट्रपति कमला हैरिस ने केवल अपनी आधी जातीय विरासत के बारे में बात करते हुए भारत का जिक्र किया।

नई दिल्ली के लिए व्हाइट हाउस में ट्रम्प की मौजूदगी रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में विशेष महत्व रखती हैं। बाइडेन के विपरीत, ट्रम्प यूक्रेन और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में रणनीतिक रूप से निवेश नहीं करते हैं एवं नाटो के बारे में उपेक्षापूर्ण रुख रखते हैं।

भारत के रूस के साथ ऐतिहासिक रूप से मजबूत संबंध रहे हैं इसलिए रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से ही नई दिल्ली को मास्को व वाशिंगटन के बीच संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ी है।

यूक्रेन युद्ध को लेकर बाइडेन प्रशासन का झुकाव मोदी सरकार की ओर माना जाता था और यह मालूम था कि वे अपने पुराने मित्र देश रूस के खिलाफ कुछ नहीं बोलेंगे। ट्रम्प सरकार के तहत यह समाप्त होने की उम्मीद है।
(लेखक शिकागो में पत्रकार है। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)


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