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मताधिकार खोने का भयानक खेल

बिहार में मतदाता सूची गहन परीक्षण यानी स्पेशल इंटेसिव रिविजन (एसआईआर) के मामले पर सरकार और विपक्ष के बीच छिड़ा विवाद इतने गंभीर स्तर तक जा पहुंचा है कि नौबत चुनाव का बहिष्कार करने जैसे फैसले की घड़ी आ गई है

मताधिकार खोने का भयानक खेल
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बिहार में मतदाता सूची गहन परीक्षण यानी स्पेशल इंटेसिव रिविजन (एसआईआर) के मामले पर सरकार और विपक्ष के बीच छिड़ा विवाद इतने गंभीर स्तर तक जा पहुंचा है कि नौबत चुनाव का बहिष्कार करने जैसे फैसले की घड़ी आ गई है। बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने साफ कहा है कि जब चुनाव में धांधली ही करनी है तो वैसे ही बिहार सरकार को एक्सटेंशन दे दो। उन्होंने कहा कि महागठबंधन में सभी दल चुनाव बहिष्कार के बारे में बात कर सकते हैं। हमारे पास यह विकल्प है और हो सकता है कि इस पर जल्द चर्चा भी हो। यह बयान अपने आप में काफी गंभीर है। विपक्ष सरकार से मुद्दों पर बहस कर सकता है, उसके फैसलों की खामियां निकाल सकता है, उसे किसी मसले पर राय दे सकता है, लेकिन जब पिछले दरवाजे से चुनाव जीतने की कोशिशें हों और यह तय किया जाए कि विपक्ष की हर बात को काटना ही है, तब लोकतंत्र का क्या अर्थ रह जाता है। खेद है कि इस समय देश में यही सियासी माहौल बना हुआ है। संसद के तो वे दिन लद गए जब सत्र पूरी तरह चला करते थे, जरूरी विषयों पर पूरी चर्चा के बाद ही विधेयक पारित कराने की प्रक्रिया होती थी, किसी भी मुद्दे पर विपक्ष को अपनी बात पूरी तरह रखने का अधिकार मिलता था। अब ये सारी बातें आकाशकुसुम बन चुकी हैं। संसद में सरकार पूरी मनमानी करने की फिराक में रहती है और सत्र न चलने देने के लिए विपक्ष पर जिम्मा डालती है। यही वजह है कि इस मानसून सत्र के 4 दिन भी लगभग बेकार ही गए हैं। हर दिन विपक्ष एसआईआर के खिलाफ संसद परिसर में मोर्चा खोलकर खड़ा रहा। पूछता रहा कि आखिर किसलिए बिहार चुनाव से पहले ही यह काम करवाया जा रहा है। राहुल गांधी ने बाकायदा महाराष्ट्र और कर्नाटक में हुई धांधलियों के उदाहरण दिए। उधर बिहार विधानसभा में भी चार दिनों से इसी बात पर हंगामा खड़ा है। लेकिन इन तमाम विरोध प्रदर्शन पर अब मुख्य चुनाव आयुक्त का जवाब आया है कि क्या हम फर्जी मतदाताओं को जोड़े रखें, क्या विदेशी नागरिकों को वोट डालने दे, क्या मृत मतदाताओं के नाम सूची से नहीं हटाए जाने चाहिए। ज्ञानेश कुमार ने साफ कहा है कि चुनाव आयोग राजनैतिक दल के दबाव में आकर डरने वाला नहीं है।

बड़ी अच्छी बात है कि मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव आयोग की संवैधानिक ताकत और ओहदे का एहसास है, लेकिन क्या उनका बयान केवल इंडिया गठबंधन के दलों के लिए था या भाजपा के लिए भी उनकी सोच वही है। क्योंकि अभी लगातार दिख रहा है कि चुनाव आयोग और भाजपा एक-दूसरे का सहारा बन कर खड़े हैं, एक पर सवाल उठता है, तो दूसरा बचाव में आ जाता है। मुख्य चुनाव आयुक्त ने एसआईआर पर चल रहे विरोध प्रदर्शन पर अपने सवाल तो खड़े कर दिए, लेकिन उन्हें बताना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट तक ने जब यह कहा है कि आप आधार कार्ड को इसमें शामिल करने पर विचार करें, तो फिर यह कदम क्यों नहीं उठाया गया है। विदेशी नागरिकों का मुद्दा भी बिल्कुल सही है, लेकिन यहां तेजस्वी यादव की बात भी सही है कि अगर बिहार में नेपाल, बांग्लादेश या किसी और देश के नागरिक वोट डालते आए हैं तो फिर यह गलती नरेन्द्र मोदी या नीतीश कुमार के जिम्मे क्यों नहीं मढ़ी जाती। विपक्ष यह सवाल भी उठा रहा है कि अगर अब तक वोटर लिस्ट गलत थी तो इतने चुनाव जो हुए हैं, क्या उनके नतीजों को भी गलत माना जाए?

विपक्ष के तर्कों का चुनाव आयोग या भाजपा के पास कोई जवाब नहीं दिख रहा है और इसलिए बौखलाहट भरे कुतर्क आ रहे हैं। लेकिन अब 28 जुलाई को जब सुप्रीम कोर्ट में फिर से यह मामला उठेगा, तब तक क्या चुनाव आयोग कोई बड़ा कदम उठा चुका होगा, यह एक गंभीर चिंता इस समय की है। तेजस्वी यादव ने तो न केवल चुनाव का बहिष्कार करने की बात कही है, बल्कि यह भी कहा है कि 1 अगस्त से असली खेला शुरु होगा। यानी उन्हें संदेह है कि तब तक लाखों नाम काटे जा चुके होंगे और जिन इलाकों में पहले भाजपा हारी है, वहां नए नाम वोटर लिस्ट में जुड़ जाएंगे जिनके वोट आखिर में भाजपा को ही जाएंगे। यह खुलेआम लोकतंत्र की लूट है, इसलिए तेजस्वी यादव को कहना पड़ा है कि जब सब पहले ही तय है, तो फिर विपक्ष के चुनाव लड़ने का ही क्या मतलब है। उन्होंने यहां चंडीगढ़ वाकये की याद दिलाई है, जिसमें चुनाव अधिकारी के पद पर बैठे अनिल मसीह ने मतपत्र पर छेड़खानी की थी और यह सब कैमरे में दर्ज हुआ था। उस वीडियो को देख सुप्रीम कोर्ट भी दंग रह गया था और इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया था। लेकिन इस हत्या के दोषियों को कोई सजा मिलते देश ने नहीं देखा। बल्कि अनिल मसीह चुनाव आयोग से निकल कर अब भाजपा के ही पार्षद बन चुके हैं।

जब ऐसी धांधली के सबूत सामने हैं, और धोखेबाजों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, तब क्या भरोसा कि हरियाणा, महाराष्ट्र और अब बिहार में वैसी ही गड़बड़ी नहीं की जाएगी। तेजस्वी यादव ने साफ पूछा है कि जब लोकतंत्र में जनता को वोट ही नहीं देने दिया जाएगा तो फिर हम चुनाव लड़कर क्या करेंगे?

अब इस चुनाव बहिष्कार के बयान को निर्दलीय सांसद पप्पू यादव, जेएमएम सांसद महुआ मांझी, कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी, टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी समेत कई लोगों का समर्थन मिल रहा है। हालांकि राहुल गांधी ने कहा है कि चुनाव आयोग यह न सोचे कि वह इस तरह बच जाएगा, हम उसके पीछे लगेंगे यानी यह लड़ाई अभी लंबी चलेगी। और गुरुवार को सोनिया गांधी का विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए मैदान में उतरना इस बात का सबूत है कि यह लड़ाई अब भाजपा को भारी पड़ सकती है।

राज्यसभा सांसद सोनिया गांधी बेशक चुनावी राजनीति में अब नहीं हैं लेकिन भाजपा को यह याद होगा ही कि 2004 में सत्ता के उसके अहंकार को तोड़ने का काम सोनिया गांधी के नेतृत्व में ही हुआ था। यह करिश्मा 2009 में फिर उन्होंने दोहराया।

हालांकि बेईमानी रोकने के नाम पर अन्ना हजारे के चेहरे पर भाजपा ने एक ऐसी चाल चली कि देश इसे समझ ही नहीं पाया। अन्ना हजारे का साथ देने वाली जनता को लगा कि वह देश से भ्रष्टाचार को दूर करने की मुहिम में अपना योगदान दे रही है, अब समझ आ रहा है कि असल में वह लोकतंत्र को खत्म करने और इसके लिए अपने मताधिकार को खोने के भयावह खेल में अनजाने में मोहरा बन गई।


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