हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतराता
गालिब की तरह राम भी खासे परेशान हैं कि उनके नाम पर हर तरह के अधर्म का डंका बजाया जा रहा है

- सर्वमित्रा सुरजन
गालिब की तरह राम भी खासे परेशान हैं कि उनके नाम पर हर तरह के अधर्म का डंका बजाया जा रहा है। जिन राम ने मर्यादा के उच्च मापदंड स्थापित किए, उनकी कथा कहने-सुनाने के नाम पर तमाम तरह के अमर्यादित बयान कुमार विश्वास दे रहे हैं और राम को लाने का दावा करने वाले मोदी राज की जनता ऐसी कि अपने देश की महिलाओं पर हो रही ओछी टिप्पणियों पर हंस-हंस तक ताली बजा रही है। कलयुग आने पर हंस के दाना चुगने और कौवे के मोती खाने पर भी अब उतना खौफ़ नहीं होता, जितना डर ये देखकर लगता है कि धर्म और संस्कृति के अवैध ठेकेदारों ने समाज को कितना निर्लज्ज बना दिया है।
गालिब परेशान हैं, जिंदगी भर तंगहाल रहे, लेकिन शायरी के दम पर जो रुतबा कायम किया वो डेढ़ सौ साल बाद भी कायम ही है, अलबत्ता अब राजीव कु मार नाम के एक उभरते शायर उन्हें चुनौती देने की फिराक में नजर आते हैं। अपने समकालीन शायर शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ से भी गालिब की शायराना होड़ा होड़ी चलती थी, जिसमें गालिब कहते हैं-
हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतराता।
वगरना शहर में 'ग़ालिब' की आबरू क्या है।।
हालांकि ज़ौक और गालिब दोनों ही ये मानते थे कि मीर उनसे महान शायर थे। गालिब ने मीर के लिए भी लिखा है कि-
रेख्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब'।
कहते हैं अगले ज़माने में कोई 'मीर' भी था।।
लेकिन इन नए उभरते शायर महाशय को अगले-पिछले किसी जमाने की परवाह नहीं है। यहां तक कि उन्हें अपनी शायरी पर इतना गुमान है कि वे रदीफ और काफिया की परवाह भी नहीं करते। इसलिए भरी महफिल में बेखौफ़, बिना फरमाइश के, वे शायरी सुना देते हैं। आप उनसे सवाल कीजिए, वो बदले में आपको शायरी सुना देंगे। सवाल गुम, जवाब नदारद, और शायरी पर बिन मांगी वाह-वाह, इससे अधिक शह और उनके मुसाहिब को और क्या चाहिए। लोकतंत्र, निष्पक्ष चुनाव, बेईमानी, आचार संहिता का पालन, ऐसे सारे सवालों को हाशिए पर डालने का इससे बेहतरीन नुस्खा हो ही नहीं सकता। गालिब को टक्कर देने का दुस्साहस करने वाले शायर की पंक्तियों पर मुलाहिज़ा फरमाएं-
सब सवाल अहमियत रखते हैं जवाब तो बनता है।
आदतन कलमबंद जवाब देते रहे,
आज तो रू-ब-रू भी बनता है
क्या पता हम कल हो न हो, आज जवाब तो बनता है।।
कुछ और पंक्तियां देखिए-
कर न सके इकरार तो कोई बात नहीं,
मेरी वफा का उनको ऐतबार तो है।
शिकायत भले ही उनकी मजबूरी हो,
मगर सुनना, सहना और सुलझाना हमारी आदत है।।
इन बेतुकी पंक्तियों को किस कोण से शायरी कहा जा सकता है, इस सवाल का जवाब तो उर्दू के जानकार ही देंगे, लेकिन देश के मीडिया को जी-हुजूरी की इतनी आदत पड़ गई है कि इन पंक्तियों पर दाद देने का सिलसिला चल रहा है। लिखा जा रहा है कि राजीव कुमार की मीडिया से बातचीत को उनकी शायरी का यह अंदाज खास बनाता है। खैर, पसंद अपनी-अपनी खयाल अपना-अपना। हालांकि राजीव कुमार की ऐसी पंक्तियों पर मिली दाद से फिर गालिब ही याद आते हैं, जिन्होंने लिखा-
थी ख़बर गर्म कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुज़ेर्।
देखने हम भी गए थे प तमाशा न हुआ।।
गालिब इसीलिए परेशान हैं, क्योंकि तब जो तमाशा नहीं हुआ, अब वो सरेआम हो रहा है। अब गालिब के पुर्जे़ उड़ रहे हैं, उड़ाए जा रहे हैं और महफिलें लूटने का दावा भी हो रहा है। कुछ दिनों पहले गायक दिलजीत दोसांझ प्रधानमंत्री मोदी से मिलने गए थे और वहां उन्होंने चंद पंक्तियां गाई थीं, जब वे गा रहे थे तो मोदीजी बगल में रखी मेज को तबला बनाकर संगत करने की कोशिश में दिखे। सुर और ताल का कोई मेल नहीं बना, लेकिन मीडिया ने वाह मोदीजी वाह जैसी दाद दी थी, हालांकि दिलजीत शायद हैरान हो रहे होंगे कि जैसी संगत उन्हें अपने किसी कार्यक्रम में, किसी मंच पर नहीं मिली, वो मोदीजी ने कैसे मुमकिन कर दिखाई।
राहुल गांधी ने मोदीजी को बिल्कुल सही पहचाना है, उन्होंने एक बार कहा था कि वे भगवान को भी समझा सकते हैं कि उन्हें दुनिया कैसी चलानी है। दिलजीत दोसांझ के साथ बे ताल हो रहे मोदीजी को देखकर यही बात याद आई। वैसे दिलजीत दोसांझ जिस तरह काले कपड़ों में, काले आवरण में लिपटे गुलदस्ते को लेकर मोदीजी से मिलने गए थे, उसका जवाब मोदीजी इसी तरह दे सकते थे कि तुमने किसानों की बात की, अब तुम मेरा तबला वादन सुनो। दिलजीत को जवाब देने के बाद अब मोदीजी को फटाफट अपनी कविता की नयी किताब भी प्रकाशित करवा लेनी चाहिए, क्योंकि कौन जानता है कि उनके बचाव में शायरी सुनाते-सुनाते राजीव कुमार महाशायर का दर्जा हासिल कर लें और श्रीमान मोदी की महाकवि वाली छवि को चुनौती पेश हो जाए।
प्रसून जोशी को तो भरपूर मौका मोदीजी ने दिया, अब उन्हें एक मौका कुमार विश्वास को भी देना चाहिए। कितने दिनों से नज़र में आने की कोशिश कर रहे हैं और घटियापन की नयी-नयी मिसालें पेश कर रहे हैं। मोदीजी का एकाध साक्षात्कार कुमार विश्वास को मिल जाए, तो शायद उनका जीवन सफल हो जाए, मोदीजी के कवित्व को नया मुकाम मिल जाए और शायद राम को भी थोड़ी राहत मिले।
गालिब की तरह राम भी खासे परेशान हैं कि उनके नाम पर हर तरह के अधर्म का डंका बजाया जा रहा है। जिन राम ने मर्यादा के उच्च मापदंड स्थापित किए, उनकी कथा कहने-सुनाने के नाम पर तमाम तरह के अमर्यादित बयान कुमार विश्वास दे रहे हैं और राम को लाने का दावा करने वाले मोदी राज की जनता ऐसी कि अपने देश की महिलाओं पर हो रही ओछी टिप्पणियों पर हंस-हंस तक ताली बजा रही है। कलयुग आने पर हंस के दाना चुगने और कौवे के मोती खाने पर भी अब उतना खौफ़ नहीं होता, जितना डर ये देखकर लगता है कि धर्म और संस्कृति के अवैध ठेकेदारों ने समाज को कितना निर्लज्ज बना दिया है। इस निर्लज्जता को कोई आईना दिखाए तो उस पर एफआईआर हो जाती है। अभी साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता, गोवा के लेखक दत्ता दामोदर नाइक पर आरोप लगा कि उन्होंने एक साक्षात्कार में मंदिर के पुजारियों को 'लुटेरा' कहा था, जिससे धार्मिक भावनाएं आहत हुईं। उन पर एफआईआर दर्ज हुई, हालांकि श्री नाइक ने कहा कि वे कट्टर नास्तिक हैं और ऐसी एफआईआर से डरते नहीं हैं। परसाई जी होते तो उन पर भी ऐसी ही कार्रवाइयां शायद होती। परसाई जी ने लिखा था कि -मंदिर लूटने का मुहकमा मुसलमान राजाओं के यहां नहीं था। हिन्दू राजाओं के शासन में बाकायदा मंदिर लूटने का मुहकमा था। यह रिकॉर्ड है। मंदिर धर्म के कारण नहीं, धन के कारण लूटे जाते थे। सबसे ज्यादा मंदिर राजा हर्ष ने लूटे। परसाई जी ने मोदी शासन नहीं देखा, लेकिन कई दशक पहले उन्होंने लिखा था कि - देश एक कतार में बदल गया है। चलती-फिरती कतार है- कभी चावल की दुकान पर खड़ी होती है, फिर सरक कर शक्कर की दुकान पर चली जाती है। आधी जिन्दगी कतार में खड़े-खड़े बीत रही है।
हालांकि यहां थोड़ा सुधार करना पड़ता कि आधी नहीं पूरी जिन्दगी कतार में बीते, यही मोदी सरकार की कोशिश है। नोटबंदी से शुरु हुआ सिलसिला अब पांच किलो राशन लेने तक बना हुआ है और प्रधानमंत्री शीशमहल बनाम राजमहल का मुद्दा खड़ा करके घर-घर का खेल कर रहे हैं। इस बीच उनके घर (गृह) मंत्री यह देख रहे हैं कि जनता का ध्यान इधर-उधर भटकता रहे। इसलिए कभी एक योजना, कभी दूसरी योजना लाई जा रही है।
मंगलवार को भारत पोल पोर्टल लॉन्च हुआ है, जो विदेशों में छिपे भारत के अपराधियों की खोज का काम करेगी। ये काम पहले भी होता था, अब इंटर पोल की तर्ज पर भारत पोल बनाकर इसे तेज किया जाएगा। भारत पोल मेहुल चौकसी, नीरव मोदी जैसों को भी ढूंढ लेगा क्या, ये सवाल अब पूछे जा रहे हैं। वैसे भारत के साथ पोल की जगह खोज का शब्द युग्म होता तो बेहतर लगता। लेकिन भारत खोज बनाने से लोगों को भारत एक खोज की याद आ जाती और फिर नेहरू भी याद आते। वैसे भी नेहरू को भुलाने की सारी कोशिशें नाकाम ही हो रही हैं, ऊपर से भारत खोज हो जाता तो और मुश्किल हो जाती। इसलिए पोल ही ठीक है, कम से कम पोल खुलने से बची रहेगी। बाकी गालिब से लेकर परसाई तक सब परेशान हैं, मगर नेहरू मुस्कुरा रहे हैं। मोदी भारत खोज तक नहीं पहुंच पाए हैं।


